Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 57
________________ मांक | तत्श्रुत्वा हृष्टमनसा मृगालेनैव सत्वरम् / दत्तानि वनपालाय वस्त्राणि भूषणानि च // 62 // | चरित्रम् ___ अर्थ:-ते सांभळीने हर्षित थयेलुं छे मन जेनुं एवा मृगांकभूपाले तुरतज वस्त्र अने आभूपणो वनपालने आप्या. || // 56 // ततश्चचाल तत्स्थानात भूपालोऽद्भुतभावतः। संयुतः सर्वलोकांपैर्वन्दित्वा निषसाद सः // 63 // ___ अर्थ:-त्यारबाद मृगांकभूपाल अति भावथी अने घणा लोको सहित त्यां जइने भूरिमहाराजने वांदीने यथास्थाने बेठो. / / 63 // पश्चात्सूरिमहारम्या-मारेभे धर्मदेशनाम् / श्रोत्रयोः सुखदां नित्यं भव्याम्भोरुहभासिनीम् // 64 // ___ अर्थः-बाद सूरिमहाराजे पण उत्तम, कर्णने सुख आफ्नारी अने भविकजनरूपी कमळने विकसावनारी धर्म-देशना आपवा मांडी. // 64 // देशनान्ते मृगाङ्गोऽपि पप्रच्छ स्वामिनं प्रति। कथं लब्धा गता लक्ष्मीः पुनः प्राप्तेति कारणं // 65 // ___ अर्थः-देशना बाद मृगांकभूषाले सूरिमहाराजने पूछ्यु के शुं कारणथी मने मळेली. लक्ष्मी गइ अने पाछी फरीने ते प्राप्त थइ ? // 65 // खाम्यूचे भववृत्तान्तं पुरे गुणपुराभिधे / हंसपालाभिधो क्षत्री पत्नी लीलावती वरा // 66 // Jun Gun Aaradhak Trust || // 56 // P.P.AC. Sunratnasuri M.S.

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