Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक चरित्रम् // 6 // :-तेमनी पाटे उत्तम एवा दिल्लीपति ( अकबर ) ने मनोहर वाणीथी बोधीने छ मासमधि अमारी पळावनार, शास्त्ररूपी समुद्रनो पार पामेला, पृथ्वीपर रहेला तीर्थोना करने छोडावनारा, गया छे रोगों जेना अने महोटा पुण्यना उत्क-! र्षने करवावाळा तेमज सुख आपनारा श्री भानुचंद्रोपाध्याय हमेशां जयवंता वर्तो ? / / 85 // .. .. "तस्य वर्यपदाम्भोज-शिलीमुखानुकारिणा / सपर्यासक्तचित्तेन ऋद्धिचन्द्रेण निर्मितम् // 86 // अर्थः-तेमना उत्तम एवा चरणकमळमां आसक्त चित्ते भ्रमरचं अनुकरण करनार श्री ऋद्धिचंद्र (महाराजे ) आ|| चरित्र रच्यु. // 86 // इदं विश्वे प्रसिद्धस्य भावांम्मोरुहभाखतः / सच्चरित्रं मृगाङ्कस्य श्लोकाभ्यासनहेतवे // 87 // __ अर्थ:-आ जगत्मसिद्ध एबुं अने भावरूपी कमळने विकसावनारुं श्री मृगांकनुं चरित्र श्लोकना अभ्यास माटे बनाव्यु. पण्डितव्राजकोटी रैरुदयचन्द्रधीधनैः। शुद्धीकृतमिदं सम्यक् चरित्रं चित्तसात्कृतम् // 8 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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