Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 61
________________ .. मृगांक // 6 // . अर्थ:-समयांतरे मृगांकभूपाल अने तेनी सी आ दुष्ट संसारथी चवीने मुखमाटे बारमे देवलोके गया. // 81 // | चरित्रम् पुनः खर्गात् समागत्य भुक्त्वा च मानुषं भनं / मृगाको मुक्तिगेहे हि मानिन्या सह यास्यति // 2 // अथे:-वळी स्वगेथी चवीने मनुष्यभव भोगवीने मृगांकनो जीव स्त्री सहित मोक्षे जशे. // 82 / / / एवं विभाव्य भो भव्याः ! दानं दत्त सुभावतः / पात्रापात्रे यथा शक्त्या निदानं सुखसन्ततः // अर्थः-ए प्रमाणे जाणीने हे भव्य लोको! पात्रापात्रनो विचार करीने शक्ति प्रमाणे सुख-संततिना कारणभूत एवं दान सद्भावथी आपq / / 83 // श्रीमत्तपगणगगने गगनमणिविजयसेनसूरीशः / तस्यानुक्रमपट्टे गुरुर्विजदेवसूरिवरः // 84 // ' अर्थ:-श्रीमत्तपागच्छरूपी आकाशमां सूर्यसमान विजयसेनसूरीश्वर नामे आचार्य थया, तेनी पाटे अनुक्रमे विजयदेवसूरीश्वर थया. // 84 // तद्गच्छे सततं जयन्तु सुखदाः श्रीभानुचन्द्राश्चिरम् / षण्मासाऽभयदायकाः क्षितिपतिं दिल्लीपति पेशलम् // सदाग्भिः प्रतिबोध्य शास्त्रजलधेः पारंगता भूतले। तीर्थेशाऽकरकारका गतगदाः प्राग्भा // // 60 // रपुण्योत्कराः // 5 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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