Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक / ततस्तो च सुरागारे पालयित्वा निजायुषम् / जग्मतुर्दो सदाकारो पूर्वपुण्यानुभावतः // 76 // // .... अर्थ:- बाद ते बन्ने स्वायुः पूर्ण करीने पूर्व करेलां पुण्योदयथी देवलोकमां उत्पन्न थया. // 76 // .. // 59 // देवलोकान्मृगाङ्कत्वे-नोत्पन्नः श्रेष्टिनो गृहे / लीलावत्यपि संजाता श्रेष्ठिनः सदने सुता // 77 // .. अर्थः-देवलोकमांथी चवीने तुं (कुसुमसार ) शेठने घरे मृगांकपणे थयो, अने लीलावती पण श्रेष्टि-गृहे पुत्रीरूपे थइ. पूर्वरागेण सम्बन्धो मिलितो हि परस्परम् / पात्रदानात्सुखमाप्त-मसुखं तु कुभावतः // 78 // ___ अर्थः-पूर्वना रागथी तमारो संबंध परस्पर मल्यो, पात्र-दानथी सुख मल्यु अने कुमनोरथथी असुख प्राप्त थयु.॥७८॥ पुनः सुखं हि सद्भावात् संप्राप्तं वसुधाधिप ! / देशनामिति श्रुत्वा स धर्म चकार भावतः // 79 // . अर्थः-वळी हे राजन ! उत्तम भावथी फरीने मुख मल्यु. एवी रीतनी धर्म-देशना सांभलीने ते मृगांकभूपाल भावपूर्वक धर्मोद्यम करतो हवो. // 79 // .. जीर्णोद्धारप्रतिष्ठादि जिनबिम्ब-जिनालयम् / इत्यादिधर्मकृत्यानि चकार धरणीपतिः // 8 // ___ अर्थ:-जीर्णोद्धार, जिन-बिंब, जिन-प्रतिष्ठा अने जिन-मंदिर विगेरे धर्म-कृत्यो मृगांकभूपाल करतो हवो. // 8 // || एकस्मिन् समये च्युत्वा द्वादशे हि दिवालये / द्वावपि दुष्टसंसाराद् जग्मतुः सुखहेतवे // 81 // || // 19 // P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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