Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 58
________________ मृगांक // 57|| ___ अर्थः-त्यारे गुरुमहाराजे पण तेना पूर्वभवतुं वृत्तांत कोई के-गुणपुर नामे नगरमां हंसपाल नामे क्षत्री रहेतो हतो, IL तेनी लीलावती नामे उत्तम स्त्री हती. // 66 // एकस्मिन् वासरे त्वं हि परदेशेषु जग्मिवान् / धनोपार्जनकार्यार्थ-मुत्कलाप्य मृगेक्षणाम् // 67 // __ अर्थः-एक दिवसे हंसपाल स्त्रीने कहीने धन उपार्जन करवामाटे परदेशमा गयो. // 67 // भ्रमितः सर्वदेशे त्वं नातं किंचिद् धनं त्वया। पश्चात् त्वं प्रतिसंस्त्यायं चलितः प्रेमप्रेरितः // 6 // ___ अर्थः-सर्व देशमा फर्यो, पण तेने क्यांय धन प्राप्त न थवाथी मेमथी मेरायेलो एवो ते पोताना घर तरफ पाछो वळ्यो. मार्गेऽप्यागच्छता दृष्टः श्वेतपुष्पलाशकः / तन्मुले खनिते आप्तं भाण्डं द्रव्यसमन्वितम् // 69 // __ अर्थः-मार्गगां चालतां तेणे धोळां पुष्पोवाळु खाखरानुं झाड दीखें, तेना मूळमां खोदवाथी द्रव्यथी भरेलुं एक ठाम मल्यु. / / 69 // क्रमेण सदने गत्वा कान्तायै भाण्डमर्पितम् / सा प्राप परमानन्दं विवेकविनयान्विता // 7 // __ अर्थः-अनुक्रमे पोताने घरे जइने स्त्रीने ते ठाम आप्यु तेथी तेणी पण विवेक अने विनयपूर्वक परम आनंदित थइ. तया हि परमान्नं च कृतं भोजनमुत्तमम् / तस्मिन् मासोपवासी चा-जगतः सद्मनि पुण्यतः॥॥॥५॥ P.P.Ac, GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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