Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HINE चरित्रा Serving JinShasan A // श्री जिनाय नमः / / (गुर्जर भाषांतर सहित) // श्री मृगांक चरित्रं प्रारभ्यते / (कना-श्री ऋधि चंद्रजी) 200000 छापी प्रसिध करनार-विठल जी हीरालाल मान (जाम नशर बाळा) 086647 gyanmandirokobatirth.org P/2158 P. 12058 न आ पुस्तक पोताना भास्करोदय प्रेसमा छाप्j R Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रो जिनाय नमः / . मृगांक || चरित्रम् // 1 // (गूर्जरभाषांतरसहित) // श्री मृगांकचरित्रं प्रारभ्यते // (कर्ता-श्रीऋद्धिचंद्रजी) छापी प्रसिद्ध करनार-विठलजी हीरालाल लालन--(जामनगरवाळा) श्रीपार्श्वः प्रत्यहं जीयात् स श्रीमान् वसुधातले। प्रोद्यद्गुणालिसद्धाम पार्श्वसेवितपार्श्वकः // 1 // यो ददाति महद्भद्रं भव्यानां भीतिभञ्जनः / भाखद्भानुसमाकारो निजवंशमरुत्पथे॥२॥ युग्मं // ___ अर्थः-सकल गुणना धाम, पार्थ नामना यक्षथी सेवायेला छे पडखां जेना, भव्यात्माओनी भीतिने भांगवावाला, महान् कल्याणकारी, पोताना वंशरुपी आकाशमा देदीप्यमान सूर्यसमान एवा श्रीमान् पार्थप्रभु हमेशां जयवंता वर्तो ? // 1-2 // भारति! भारती स्फारां दद्यास्त्वमेव सत्वरम् / सुराणामपि शर्मोघप्रदामेवामृतप्रभाम् // 3 // // 1 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - मृगांक বমি // 2 // l अर्थः-हे सरस्वति ! देवताओने पण सुखना समूह आफ्नारी, अमृत जेवी अने विस्तारवाळी एवी वाणी तं मने / | तुरत आप? // 3 // सच्चरित्रं मृगाङ्कस्य करिष्येऽहं जनप्रियम् / नत्वा स्वगुरुपादाब्जं निर्मलद्युतिभासुरम् // 4 // ___ अर्थः-निर्मल कांतिथी देदीप्यमान एवा पोताना गुरुमहाराजना पदकमलने नमीने सज्जन-प्रिय एवं मृगांकनुं चरित्र हुं करीश. // 4 // नाला 3 शिध्यानी 204} Hel तिHिRainitio| सरिर PAROLD जम्बूद्वीपेऽत्र भरतक्षेत्रं विश्वविभूषणम् / नदीपर्वतसग्रामद्रङ्गश्रेणिसमन्वितम् // 5 // ___ अर्थः-आ जंबूद्वीपमां जगत्ना भूषणसमान नदी, पर्वत, सारां गाम तथा सुंदर शहेरोना समुदायें करी युक्त एवं भरतक्षेत्र छे. // 5 // तत्रास्ति नगरी रम्या वाराणसी जनाकुला | प्रोत्तालवप्रपरिखा वापीकूपसरोऽन्विता // 6 // ___ अर्थः-ते भरतक्षेत्रमा सुंदर, जन-समूहथी अलंकृत तथा उंचा किल्लाओ, खाइओ, वावो, कुवाओ अने सरोवरोधी युक्त एवी वाराणसी नामे नगरी हती. // 6 // विहारवर्णवामाङ्गीवाग्मीवारणवाजिभिः। वणिग्वाचंयमवृन्दवैद्यैश्च परिशोभिता // 7 // यतः- // 2 // M P P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust RANT Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 3 // ___ अर्थः-वळी ते नगरी बगीचाओथी, अढारे वर्णथी, स्त्रीओथी, वक्ताओथी, हस्तिओथी, घोडाथी, वणिकोथी, || मुनिवृंदोथी अने वैद्योथी अत्यंत शोभती हती. // 7 // कयुं छे केवापीवप्रविहारवर्णवनिता वाग्मी वनं वाटिका, वैद्यो विप्रकवारिवादिविबुधा वेश्या वणिग् वाहिनी। विद्या वीरविवेकवित्तविनया वाचंयमा वल्लिका, वस्त्रं वारणवाजिवेसरवरं राज्यं च वैः शोभते // 8 // ____ अर्थ:-चाव, किल्ला, बाग, अढारे वर्ण, स्वीओ, वक्ता, वन, वाडी, वैद्य, विम, जलाशयो, पंडितो, वेश्या, वणिक्, सेना, विद्या, वीर, विवेक, धन, विनय, मुनिवर, नटीओ, वस्त्र, हाथी, घोडा, खच्चर विगेरेथी राज्य शोभे छे. // 8 // राज्यं चकार तस्यां सद् मकरध्वजभूपतिः / रूपेण जितकन्दर्पः प्रताप्राकान्तभास्करः // 9 // ' अर्थः-त्यां प्रतापे करीने दबावेलो छे सूर्यने जेणे, अने रुपे करीने कामदेवने जीत्यो छे जेणे एवो मकरध्वज नामे राजा राज्य करतो हतो. // 9 // न्यायवल्लीपयोवाहः कामधार्थतत्परः / विशुद्धकुलसम्भूतः शस्त्रशास्त्राब्धिपारगः // 10 // अर्थ:-ते राजा न्यायरुपी वेलडीने पोषण करवामां मेघसमान, धर्म अर्थ अने काममा तत्पर, विशुद्ध कुळमां उत्पन्न | || थयेली अने शस्त्र तथा शास्त्ररूपी समुद्रनो पारंगत हतो. // 10 // // 3 // P.P. Ac Giratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // चरित्रम् . .. fil तस्करो यस्य देशेषु बन्धनं नास्ति कुत्रचित् / रोगश्शोककरश्चैव भयं वैरं परस्परम // 11 // ___ अर्थ:-जेना देशमा तस्कर, बंधन, रोग, शोक, कर, भय अने परस्पर वैरभाव विगेरे कंइ नहोतुं. // 11 // सचिवस्तस्य विख्यातो वर्त्ततेस्म महीपतेः। सुबुद्धिरिति नाम्ना हि कुशाग्रबुद्धिऋद्धिभृत् // 12 // // 4 // ___ अर्थः–ते राजाने कुशाग्र बुद्धिवाळो अने सुप्रसिद्ध एवो सुबुद्धि नामे प्रधान हतो. // 12 // राज्यभारधरो नित्यं सर्वशास्त्रविशारदः। परचित्तस्य सडल्पज्ञाता भोग्यकभोगका ___ अर्थ-वळी ते प्रधान राज्यभारने हमेशां वहन करवावाळो, सर्व शास्त्रमा पारंगत, परना ह्रदयने जाणवावाळो तथा भोग्य वस्तुने भोगवनारो हतो. // 13 // निम्नसागरगम्भीरो बुट्या च धीषणोपमः / समग्रगुणसंयुक्तो जनानां मोहकारकः // 14 // ___अर्थ:-वळी ते प्रधान महान् सागरजेवो गंभीर, बुद्धिमां बृहस्पति जेवो अर्थात् सर्व गुणोए करी सहित एवो लोकोने मोह पमाडनारो हतो. // 14 // Lyo- 24 HOTo Mn 4gdigo तस्य राज्ञः प्रिया रेजे नाना मदनवल्लभा / समग्रगुणमञ्जूषा रूपेण मदनप्रिया // 15 // .' अर्थ:-ते राजानी सर्व गुणनी पेटीरुप तथा रुपे करी रतिजेवी मदनवल्लभा नामे मिया शोभती हती. // 15 // // 4 // // // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् || तस्या वदनमाभाति रजनीशसमप्रभम् / सुधौतधामसद्धाम पद्मपत्रसुलोचनम् // 16 // // . अर्थः-तेणीनुं वदन चंद्रमानी कांतिजेवु तथा अमृतना भाजनसरखं तेजस्वी अने पद्मपत्र जेयां छे लोचन जेनां एवं शोभतुं हतुं. // 16 // सा भाति भुवने रम्या शीलेन जनकात्मजा / सर्वशङ्गारसंयुक्ता चातुर्यगुणशोभिता // 17 // ... अर्थः-वळी तेणी सर्व मकारना शृंगारथी संयुक्त, चातुरीयर्थी शोभितो तथा शीलथी सीतानीपेठे महलमा शोभती हती. // तस्याः सूनुः सदा रेजे रूपसुन्दरनामतः / विनयादिगुणाधारः समग्रसुकलान्वितः // 18 // __ अर्थः-तेणीनो विनयादि गुणोवाळो तथा सर्व उत्तम कळाओथी युक्त एवो रुपसुंदर नामे पुत्र हमेशां शोभतो हतो.॥| रूपेण जितदेवेन्द्रः शस्त्रविद्याविभूषितः। शास्त्रालङ्कारशिल्पज्ञः प्रसिद्धबुधसेवितः // 19 // . अर्थः-वळी रुपवडे करीने देवेंद्रने पण जीतवावाळो, शस्त्रविद्याथी अलंकृत, शास्त्रालंकार तथा शिल्पकळा जाणवावाळो ते कुमार प्रसिद्ध पंडितोथी सेवित हतो. // 19 // तस्य शरीरमाभाति रम्भाग तिकोमलम् / लसल्लक्षणसंयुक्तं कल्याणविमलद्युति // 20 // . अर्थ:-ते कुमारनुं शरीर केळना गर्भसमान कोमल, देदीप्यमान गुणोथी संयुक्त अने सुवर्णना जेवी कातिवाल्लं || / / शोभतुं हतुं. // 20 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रम् मृगांक ||| तस्यां वसति दाता हि श्रेष्ठी कुसुमसारकः / परिवारेण संयुक्तः विख्यातः क्षितिमण्डले॥ 21 // // . - अर्थः - ते नगरमां परिवारथी वीटलायेलो अने जगत्मां सुप्रसिद्ध तथा खरेखर दानेश्वरी एवो कुसुमसार नामे शेठ वसतो हतो. // 21 // जनबजेषु कल्पद्रुर्द्रव्येण धनदोपमः / धर्मकर्मविधो दक्षः रूपेण रतिवल्लभः // 22 // ___ अर्थः-वळी ते शेठ माणसोना समूहमां कल्पवृक्षजेवो, द्रव्यमा कुबेरजेवो, धर्मकार्यमां दक्ष अने रुपमा कामदेवजेवो हतो. // 22 // - - तस्यास्ति रमणी रम्या स्वयंप्रभाभिधा शुभा। केलीवत्कोमलाङ्गी च कलाकलापधारिका // 23 // . अर्थः–ते शेठनी कदलीजेवा कोमल अंगवाळी अने शुभ कळाओमां पारंगत तथा सुंदर स्वयंमभा नामे पत्नी हती. विराजते मुखं तस्या विकखरकजप्रभम् / सद्दन्तनयनैर्युक्तमर्चितं जनंदक्कः // 24 // . अर्थः -तेणीनुं मुख दांत अने चक्षुथी युक्त विकस्वर कमळना जेवू माणसोनी दृष्टिरुपी कमळोथी अर्चित थयु थकुं शोभतुं हतुं. // 24 // . तस्याः कुक्षौ समुत्पन्नो मृगाको मृगनेत्रजित् / गत्या तर्जितमत्तेभो वक्त्रेण यामिनीपतिः // 25 // .P.P.AC. GunratnasuriM.S. . : Jun Gun Aaradhak Trust Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक | चरित्रम् // 7 // अर्थः-तेणीनी कृतिथी नेत्रोवडे मृगने जीततो, गतिथी मत्त हस्तिनो तिरस्कार करतो अने चहेराए करी चंद्रमाने || | हरावतो मृगांक नामे पुत्र उत्पन्न थयो. // 25 // वृद्धिं प्राप कुमारोऽसौ यावदेवाष्टवार्षिकः / मुक्तः पित्रा गुरूपान्ते कलाग्रहणहेतवे // 26 // यतः___अर्थः- अनुक्रमे वृद्धि पामीने ए कुमार ज्यारे आठ वर्षनो थयो त्यारे पिताए कळा शीखवा माटे तेने गुरुपासे मोकल्यो. // 26 // केमकेमाता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः / न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा // 27 // . अर्थः-जे माता पिता बालकने भणावता नथी ते शत्रु समजवा, कारणके हंसना टोळामां जेम कागडो तेम ते अपठित बाळक पण शोभतो नथी. // 27 // लालयेत् पञ्च वर्षाणि अष्ट वर्षाणि पाठयेत् / प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रं समाचरेत् // 28 // ___ अर्थः-पुत्रनुं पांच वर्ष सुधि लालन करवू, आठमे वर्षे अभ्यास कराववो अने शोळ वर्षनो ज्यारे पुत्र थाय त्यारे मित्रनी समान गणवो. / / 28 // अथ तत्रैव नगरे धनञ्जयो महर्द्धिकः / वसति प्रमदा तस्य प्रिया धनवती शुभा // 29 // अर्थ:-हवे तेज नगरमा एक धनंजय नामे शेठ रहेतो हतो, तेने धनवती नामे सुंदर पत्नी हती. // 29 // / P.P.AC.Gunratnasun M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 8 // गा। तयोः पुत्री गुणश्रेणिः पद्मावती कजेक्षणा। तदिने सापि मुक्ता च पठनाय निरालसा // 30 // I n अर्थ: तेओनी गुणनी श्रेणि रुप अने कमलिनी जेवो चक्षुवाळी पद्मावती नामे पुत्री हती. तेणीने पण तेज दिवसे | त्यांज भणवा मोकली // 30 // .. पद्मावतीमृगाडी तो कलाभ्यासं प्रकुर्वतः / क्षीरनीरनिभा नित्यमासीत्प्रीतिस्तयोमिथः // 31 // यतः__ अर्थः-कलाभ्यास करतां पद्मावती अने मृगांक बच्चे परस्पर क्षीर अने नीरनी पेठे प्रीति थइ. // 31 // केमके"पय पानी उपर मिले अंतर मिलो नहीर / किं उमराल नोरह तजी कि उ गही पीइ सुषीर // 32 // षीरवारि स्युं प्रीति अति इह जानत सब कोय।करत जुदाई हसखल खलथिं कहा. न होय"?॥३३॥ . अर्थी-खीर अने नीर साथे मळेल होय तेमां पण हंस छे ते नोरने तजीने खीर पी जाय छे. खीर अने नीरनी भीति अति छे एम सहु कोइ जाणे छे, पण खल एवो हंस जूदा करे छे, केमके खलथी शुं नथी यतुं ? // 32-33 // | एकस्मिन्समये तस्मिन्ननध्यायः समागतः / छात्रपठनशालायां स्थिता पद्मावती स्वयम् // 34 // . अर्थः-एक दिवसे रजानो दिवस आव्यो त्यारे ते शाळामा मात्र पद्मावती एकली बेठी हती. // 34 // || पुत्रः कुसुमसारस्य क्रीडां कर्तुं गृहे गतः / स्मृत्वा पद्मावती चित्ते चलितः स्नेहनोदितः // 35 // // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक अर्थ-ते समये कुसुमसार शेठनो पुत्र मृगांक क्रीडा करवाने घरे गयेलो त्यांची पावतीने संभारीने स्नेहथी स्फुरित | || थयो धको चाल्यो. // 35 // . वजन् मागे च मिलितः धनञ्जयो धनैर्भूतः / अशीतिकपर्दान् तस्मै स ददौ स्वसुताकृते // 36 // // 9 // ___ अर्थः-मार्गे चालतां धनवान् शेठ धनंजय मल्या, तेणे मृगांकने एंसी कोडीओ पोतानी पुत्री पद्मावती माटे आपी. गृहीतस्तेन कूष्माण्डपाको वर्त्मनि गच्छता। कथयिष्यति सा कि मामिति विचिन्त्य भक्षितः // 37 // ___- अर्थः-रस्ते चालतां ते कोडीओ वेचीने मने ते शुं कहेवानी हती एम विचारीने कोलां-पाक लइने खाइ गयो. // 37 // पद्मावतीसमीपे स भक्षयित्वा गतस्ततः। तया प्रश्नः कृतस्तस्य, भक्षितं भोस्त्वयाय किम् ? // 38 // ____ अर्थः-ते खाइने पद्मावती पासे गयो त्यारे तेणीए पूछ्यु के अरे! ते आजे | खाधुं छे ? // 38 // कुमारस्तामुवाचैवं दत्ताशीतिकपर्दकाः / तव पित्रा त्वदर्थं च मम हस्तेऽतिरागतः // 39 // ___ अर्थः-त्यारे कुमारे कीधुं के तारा पिताए स्नेहथी मने तारा माटे एसी कोडी आपेल, // 39 // | विक्रीय तान् मया सर्वान लात्वा कूष्माण्डपाककम् / भक्षितः स्वादतो नूनं भुक्त्वा चाहमिहायतः॥ In अर्थ:-ते सर्व कोडीओ वेचीने में कोलां-पाक लीयो अने स्वादपूर्वक खाइने हुँ अहिं आव्यो मु. // 40 // P.P: Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक Naयासाला Fes! -मित्रता३यान15 da-pngs lyrig-2 - Andhan aintaintinu47 == || तत् श्रुत्वा कुपिता सा चोवाच वक्त्रेण तत्पुरः / नैतत् कार्यं हि मित्राणामेकाकित्वेन भोजनम् // // ___अर्थः-ते सांभळीने कोपातुर थइ थकी रोषयुक्त मुखथीं तेणी बोली के एकाकी भोजन करी लेबु ते मित्रनुं कार्य नथी. // 10 // पश्चादुवाच सा बाला मृगाङ्ककुमरं प्रति / पुनः किं ते मया वाच्यं स्वोदरं भरितं त्वया // 12 // अर्थः-वळी तेणीए मृगांककुमारने की पोतानं पेट भरीने हवे तं मने कहे छे. तेम // २२॥भावालपेयजल પેટ ભરામાટે છે કેभक्ष्यलेशोऽपि मह्यं च न दत्तस्त्वयकाऽधम ! / शिक्षा ददामि किं ते च नूनं मैत्र्यात् पुनः पुनः॥ __ अर्थः-वळी हे अधम ! जरा पण खावानुं मने न आप्यु तेथी खरेखर हवे तने मित्रता होवाथी शुं शिक्षा करुं? // 43 // यदा भवन्ति मत्पावें कपर्दाः कुमर ! शृणु / तदाहं भूषणं रम्यमकार्षे कर्णकुण्डलम् // 44 // अर्थः-जो मारा पासे ते कोडीओ होत तो हे कुमार! सांभळ ? के हुँ तेना कानना सुंदर कुंडलो करावत. // 44 // श्रुत्वेति वचनं तस्याः खेदखिन्नोऽभवच्छिशुः / अनया मयि मित्रत्वं साम्प्रतं न विचारितम् // 45 // ___ अर्थः-एम सांभळीने ते मृगांककुमार खेदवान् थयो थको विचारवा लाग्यो के आ मारी मित्रतानो हाल विचार करी शके तेम नथी. // 45 // / विमृश्येत्येव स शावो मौनं कृत्वा स्थितस्ततः। भविष्यति मदायत्ता शिक्षा दास्ये यदा तदा // 6 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. अर्थः-एम विचारोंने मुंगांककुमार मौन रहीने विचार्य के ज्यारे ते मारी थशे त्यारे तेणीने शिक्षा आपीश. // 46 // // मृगांक // इति चिन्तयतः प्रीतिर्बभूव मनसा विना / कलाकुशलतां सम्यक् तो प्राप्ती गुरुभक्तितः // यतः॥११॥ ___ अर्थः-एवी रीते तेओ वच्चे मन विनानी प्रीति थइ, अने गुरुभक्तिथी तेओ बन्ने सारीरीते कळा-कुशल थया. // 47 // कयं छे के- सना R agani Kap Apr . YAYA Hौर, // .... "वाति कीइं कवण गुण जिहां नवि मलिडं मन्नं / मन्नविहुणो प्रेमरस जाणे अलुणो अन्न // 48 // ___ अर्थः-ज्यां मन नथी मल्युं त्यां वात करवाथी शुं ? केमके मनविनानो प्रेम ते लुण विनानी रसवती जेबो थाय छे. मनु तोलो तनु ताजवी हे सखी ! नेह केता मण होय। लंगते लेखं नहीं टूटइ टांक न होय” // ____ अर्थ:-हे सखि ! मनरुप तोलांथी तनरुप कांटामां स्नेहने तोळीए तो केटला मण थाय ? लाखे लेखु नहि, पण स्नेह टुटथे एक टांक पण थाय नहिं. // 49 // . पद्मावतीमृगाको तौ स्वस्वधानि गतावुभौ / पठित्वा सर्वशास्त्राणि गुरुनिर्देशतो मुदा // 50 // - अर्थः-बाद पद्मावती अने मृगांककुमार सर्व शास्त्रोनी अभ्यास करीने गुरुनी रजा लेइने हर्षथी पोतपोवाने घेर गया.॥ // क्रमेण यौवनं प्राप कुमारः कमलेक्षणः 1 पिता तस्य कृते कन्या लोकयामास तत्पुरे // 5 // PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 12 // 'अर्थः-अनुक्रमे कमलजेवी चक्षुओवाळो मृगांककुमार यौवनवय पाभ्यो, त्यारे तेनो पिता तेना. माटे ते नगरम मृगांक गरमा . | कन्यानो शोध करवा लाग्यो. // 51 // चरित्रम् एकस्मिन् दिवसे श्रेष्ठो पद्मावती ददर्श च / समग्रगुणमञ्जूषां शोलालङ्कारधारिणीम् // 52 // . __ अर्थः-एक दिवसे शेठे सर्व गुणनी पेटीरुप अने शीलरुपी अलंकारने धरवावाळी पद्मावतीने दीठी. // 52 / / धनञ्जयसमीपे स वाङ्गजाथै ययाच ताम् / कुमारसदृशां चैव वयसा विद्यया गुणैः // 53 // ____ अर्थः-अने धनंजयनी पासे पोताना पुत्र मृगांककुमार माटे वयथी, विद्याथी अने गुणथी योग्य ते पद्मावतीनी याचना / / करी. / / 53 // धनञ्जयस्तद्वचनमङ्गीचकार निश्चितम् / शुभ मुहूर्तमालोक्य विवाहः क्रियते ध्रुवम् // 54 // ___अर्थः-धनंजयशेठे पण तेनुं वचन अंगीकार करीने शुभ मुहूर्त जोइने विवाह करवानो निश्चय कर्यो. // 54 // तयोः शुभेऽह्नि विप्रेण विवाहस्तत्र मेलितः / पञ्चशब्दादिवादित्रैः गीतनृत्यैः पुरस्सरम् // 55 // ____ अर्थः बाद ब्राह्मणे शुभ दिवस जीइने तेओनो विवाह मेळव्यो. अने पंचशब्दादि वाजिंत्रो वागते तथा गीत अने // नृत्य थते छते, // 55 // M.P.P.AC. Gunrainasuri M.S. // 124) // 12 // Jun Gun Aaradhak Trust Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् // 13 // गज़तुरगसङ्घातैः सुखासनैश्च सध्वजेः / याचकवजसदानैः तुर्यसन्दोहसुन्दरैः // 56 // . अर्थः- हाथी, घोडा, सुखपाल अने उत्तम ध्वजाओवाळा वाहनोथी युक्त, याचकोना समूहने दान देते छते, अने सुंदर एवी शरणाइओ वागते छते, // 56 // अनेकोत्सवसन्दोहेश्चक्रतुः श्रेष्टिशेखरौ / तयोर्नूनं शुभे लग्न पाणिग्रहणमद्भुतम् // 57 // युग्मम् / ... अर्थः-इत्यादि अनेक उत्सवोथी ते श्रेष्टिवर्योए तेमनु शुभ लग्ने अद्भुत एवं पाणिग्रहण कराव्यु. // 57 // कृतोद्वाहं मनोऽभीष्टं समानीता स्वसद्मनि / हर्ष प्रापेति स शावः फलितं मम वाञ्छितम् // 58 // ___ अर्थः-मन इच्छित विवाह करीने तेणीने पोताने घरे लावीने मृगांककुमार हर्षित थयो थको विचारवा लाग्यो के मारुं वंछित फल्यु खलं. // 58 // तावेव दम्पती तत्र भोजयामासतुः सुखम् / प्रसुप्तावेकदा स्वैरं रजन्यां सप्तमे गृहे // 59 // ___ अर्थ:-बाद एक दिवसे तेओ बन्ने सखेथी भोजन करीने रात्रिए सातमी मेडीए सता हत्ता..॥५९ // मृगाको वचनं तस्याः सस्मार हृदि तत्क्षणे / मारयाम्यहमेनां किम् अबलां बलवर्जिताम् // 6 // L: अर्थः-ते वखते मृगांककुमारने तेणीनुं वचन याद आववाथी ते विचारतो हवो के आ बलरहित एवी अबलाने हुँ A // 13 // P.P. Ac. Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 14 // | गच्छाम्यपरदेशेष्वेनां मुक्त्वाऽत्रैव साम्प्रतम् / येनैषा लभते सद्यः स्वकीयवचसः फलम् // यतः- I ___ अर्थः -पण हाल तो तेणीने अत्रेज मूकीने हुँ परदेश जउं, के जेथी पोताना वचननुं फल तेणीने मळे. का छे केआज्ञाभङ्गो नरेन्द्राणां गुरूणां मानमर्दनम् / पृथक् शय्या च नारीणामशस्त्रवध उच्यते // 62 / / ___ अर्थः-राजानी आज्ञानो भंग, गुरुनु अपमान अने स्त्रीथी जुदी शय्या ते शस्त्र विनानो वध कहेवाय छे. // 62 // आपृच्छय पितरो प्रातर्मगाडो गमनोत्सकः।चकार पोतसामग्री वाणिज्यार्थं च सत्त्ववान॥ यतः___ अर्थः - व्यापारार्थे परदेश जवाने उत्सुक बलवान् एवो मृगांककुमार सवारमा मात-पिताने पूछीने वहाणनी तैयारी करवा लाग्यो. // 63 // केमकेलक्ष्मीर्वसति वाणिज्ये किंचिदस्ति च कर्षणे / अस्ति नास्ति च सेवायां भिक्षायां न कदाचन // 6 // - अर्थः-लक्ष्मी वेपारमा वसे छे, अने थोडी खेतीमां रहे छे, सेवामा छे अने नहिं, पण भिक्षामां कोइ दिवस रहेती नथी. // 64 // . प्रत्युवाच मृगाङ्कस्तामिति मे वचनं कुरु / भद्रे ! त्वयात्र स्थातव्यं देशान्तरे व्रजाम्यहम् // यतः अर्थः-बाद मृगांककुमारे पोतानी स्त्री पद्मावतीने कीधुं के हे भद्रे! हु परदेश जाउं तारे अहिं रहीने हुं कहुं ते ||| // 14 // करजे? // 65 / / कयुं छे केP.P. Ac Gynratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 15 // વકી - શાહનને પંડિતન્નઝેક - दीसह विविहचरिअंजाणिजइ सजणदुजणविसेसो / अप्पाणं च कलिज्जइ हिंडिजइ तेण पोहवीए॥ ___ अर्थः-पृथ्वीपर फरवाथी विविध कारनां चरित्रो जोवाय, सज्जन अने दुर्जन समजी शकाय अने पोतार्नु पराक्रम फोरची शकाय. // 66 // गृहकार्यं च कर्तव्यं शोभा रक्षेस्ततः पराम् / सुभ्र ! कार्या त्वया पित्रोर्भक्तिर्देवगुरौ तथा // 67 // अर्थः-तारे घर-काम करवू, शीयलने साचवतुं अने हे सुभ्र! तारे मात-पितानी तथा देवगुरुनी भक्ति करवी. // 67 // आकर्ण्य वचनं तस्य प्रत्यूचे निजवल्लभम् / आगमिष्ये भवत्सार्धं छायेव वपुषः सदा // 68 // __ अर्थः-ए प्रमाणे मृगांककुमारनां वचन सांभळीने तेणी कहेवा लागी के, हुं तो छायानी पेठे आपनी साथेज आवीश. गृहे स्थातुं न युक्तं हि योषितां पतिना विना / प्राणान्ते न हि मुश्चामि समीपं भवतस्ततः // 69 // __ अर्थः-कारणके स्त्रीओने पति विना घरे रहे युक्त नथी, माटे पाणांत सुधि तमाराथी हुँ खसीस नहि. // 69 // तया सार्धं मृगाकोऽसौ प्रणम्य चरणं पितुः। अम्बुधी यानपात्रं च व्यारुरोह शुभे दिने // 70 // __ अर्थः-बाद मृगांककुमार तेणीने साथे लेइने मात-पिताने नमस्कार करीने शुभ दिवसे समुद्रमा रहेला वहाणमा || | बेठो. // 70 // .. // // 15 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 16 // ततश्चचाल पोतस्थो भृगाको जलवम॑नि / क्रीडां कुर्वन् तया सार्धमनेकगुणसंयुतः // 71 // || __ अर्थः-अने जल-मार्गमां गुणवान् एवो मृगांककुमार पद्मावतीनी साथे विविध प्रकारनी क्रीडा करतो आगळ चाल्यो. क्रमेण राक्षसद्वीपं तरण्डः प्राप तस्य सन् / तं द्रष्टुं रक्षितस्तत्र मृगालेनैव लीलया // 72 // ___ अर्थः-अनुक्रमे ते वहाण राक्षसद्वीप आगळ आव्यु, त्यां सहेज जोवा माटे मृगांककुमारे वहाणने थोभाव्यु // 72 // उत्तेरुः पोततः सर्वे चक्रुः कार्याणि ते जनाः / केचिद् गीतानि गायन्ति केचित् क्रीडन्ति निर्भरम् // ___अर्थः-वहाणमांथी बधा माणसो उतर्या, तेमां कोइ गीतो गावा लाग्या, कोइ स्वेच्छापूर्वक क्रीडा करवा लाग्या, अर्थात् सर्व माणसो इच्छानुसार कार्यो करवा लाग्या. // 73 / / / आनयन्ति जलं केचित् केचित् कुर्वन्ति भोजनम् / केचित् स्नानं प्रकुर्वन्ति दीर्घिकासु विशेषतः // __ अर्थः-कोइ जल लाव्या, कोइ भोजन करवा लाग्या, कोइ वावमा विशेष प्रकारे स्नान करवा लाग्या. // 74 // केचिद् बन्धून् समाहूय दर्शयन्ति च कौतुकम् / इत्यादिक्रीडया सर्वे तिष्ठन्ति तत्र निर्भयम् // 75 // ___ अर्थः-कोइ मित्रोने बोलावीने कौतुक बताववा लाग्या, इत्यादि क्रीडाओ करता सर्वे माणसो भयरहित थया थका त्यां रह्या. // 75 // ... // 16 // P.P.A. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 17 // / उत्ततार मृगाकोऽपि कान्तया कान्तया युतः / दर्शयित्वा वनं सर्व सुष्वाप केलिमन्दिरे // 76 // || अर्थ:-मृगांककुमार पण पोतानी स्त्रीसहित वननुं निरीक्षण करीने केळनो मंडप बनावीने सुतो. // 76 // घोरनिद्रा वधूं दृष्ट्वा कुमारश्वोत्थितस्ततः / स्मृत्वा च वचनं पूर्व मन्युनाऽरुणलोचनः // 77 // अर्थः-बाद पदमावतीनुं वचन याद करीने क्रोधथी लाल आंखोवालो थयो थको तेणीने घोर निद्रावाळी जोइने मृगांककुमार उठ्यो. / / 77 // मध्यरात्रौ प्रगतायां लेखाऽशीतिकपर्दकान् / प्रबध्ध्वा च मृगाठून पद्मावत्यञ्चले ततः // 78 // ____ अर्थः-अने मध्यरात्रि गयाबाद एंसी कोडीओ लेख सहित पद्मावतीना वस्त्रने छेडे बांधी / / 78 / / तल्लेखे लिखितं तेन मयोदरं च पूरितम् / अथैतान् कपर्दान् भद्रे ! गृहीत्वा कुरु भूषणम् // 79 // isa- अर्थः-ते लेखमां तेणे लख्यु के हे भद्रे ! एंसी कोडीथी में तो पेट भयु, पण हवे ते कोडीओथी तुं काननुं भूषण करजे? // 79 // स्वप्रियां तत्र मुक्त्वा च चलितः पोतसन्मुखम् / पूत्कारमिति चक्रे स राक्षसभैक्षिता वधूः // 80 // अर्थः-एवी रीते पोतानी पियाने त्यांज मूकीने पोते वहाणपासे आवीने पोकार करवा लाग्यो के मारी स्त्रीने राक्षसे खाधी. // 8 // // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // // 18 // या हक्कारितं मृगाड्रेनोपविश्य पोतमङ्गतम् , क्रमेण गच्छता मागें संजातस्तपनोदयः // 81 // ___ अर्थः - बाद पोते वहाणमा बेसोने वहाण हकार्यु, क्रमे क्रमे मार्गमां जता सूर्योदय थयो. // 81 // धनञ्जयसुना तत्र जागृता केलिमन्दिरे / मां मुक्त्वा च गतः कुत्र चिन्तितमिति मे पतिः // 2 // __ अर्थ:-हवे कदली-मंडपमा रहेली धनंजयनी पुत्री पद्मावती जागी, अने विचारवा लागी के मारो पति मने मूकीने क्यां गयो ? // 82 // अर्पिताहं च भर्तारं मिलित्वा मातृपितृभिः / न मुञ्चति वनेऽसो मां यानपात्रे भविष्यति // 3 // ___ अर्थः–मने मात-पिताए मलीने भर्तारने सोपो छे तो ते मने वनमा मूकीदे नहि, ते वहाणमां हशे. // 83 // साऽपि जगाम तत्पोतं गत्वा तत्र विलोकितम् / न यानं न च भर्ता हि धरित्र्यां पतिता ततः॥ ___ अर्थ:-बाद तेणी वहाणपासे जइने जुए छे तो वहाण अने भर्तारने न जोवाथी पोते जमीनपर पडी गइ. // 84 // चकार रोदनं तस्मिन् पद्मावती वियोगिनी। किं करोमि के गच्छामि रमणेन विनाऽधुना? // 5 // __ अर्थः-अने वियोगिनी एवी तेणी रुदन करवा लागी के हवे शुं करूं ? भर्तार विना हवे हु क्यां जउं ? // 85 // "सुख गयां सवि सासरइ पीहर टलीउं मान / कंतविहणी गोरडी जिंहा जाइ तिहा रान // 86 // // 18 // Navigns.P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Compagain Jun Gun Aaradhak Trust Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ अर्थः-सासरेथी सर्व सुख गयु, पीयरमां मान गयुं, पति विनानी स्त्री ज्या जाय त्यां रान (अर्थात् आधार रहित || जंगल जेवू ) छे // 86 // // 19 // हियडा ! झूर म मुष्टिकर झूरत नयणे हाणि / कवण सुणेस्यइ रानमां रोयुं कंठ पराण // 8 // ___ अर्थः-माटे हे हृदय ! हवे रोवु अने झुरवू नका, छे कारणके रोवाथी नयनने अने कंठने हानिज छे, आ निर्जन वनमां कोण सांभळशे? // 87 // दैवें कीधां दूरि दोहिलं केतुं आणीह / हीयडा करि संतोस करम लिख्युं फल पाई // 8 // यतः. अर्थ:-माटे हे हियडा ! दैवे वियोग कराव्यो एमां कोने ओलंभो दइए ? माटे संतोष राख कर्ममा लख्युं फळ मळे छे. / / 88 // केमकेउदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्निः / विकसति यदि पद्मं पर्वताग्रे शिलायां, न चलति विधिवशानां भाविनी कमरेखा // 89 // .. अर्थः-कदाच सूर्य पश्चिम दिशामां उगे, कदाच मेरु चलायमान थाय, कदाच अग्निमां शीतलता आवे, कदाच पर्व- / / तनी शिलामां पच उगे, पण विधिने वश एवी भावी कमरेखा चलायमान थती नथी.॥८९॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // चरित्रम् मृगांक || बभूव सावधाना सा प्रसरच्छीतवायुना / तदेव स्वाञ्चले दृष्ट्वा लेखान्वितकपर्दकान् // 90 // ___ अर्थः-बाद शीतल वायुथी तेणी सावधान थइ त्यारे पोताना कपडाने छेडे लेख सहित कोडीओ दीठी. // 9 // // 20 // वाचयामास तल्लेखं पद्मावती वने स्थिता / प्रत्युवाचेति भर्तारं युक्तः कोपोऽत्र ते न भोः!॥९१॥ . अर्थः-ते पत्र पद्मावतीए त्यां वनमांज वांच्यो, अने भर्तारने उद्देशीने बोली के अरे ! आवी रीते कोप करवो युक्त नहोतो ! // 91 / / उत्तमैन कदा कार्य योषितां वनमोचनम् / विललाप स्थिता तत्र सीतेवाऽरण्यमध्यगा // 92 // अर्थः-केमके उत्तम माणसोए स्त्रीने वनमा मूकी देवी न जोइए. एम विलाप करती सीतानी पेठे अरण्यमां तेणी रही. भवतु तव कल्याणं त्वं मां मुक्त्वा गतः परम् / इत्याशीः प्रददो श्रेष्ठिनन्दनी निजवल्लभम् // 13 // अर्थः-त्यां रही थकी पदमावती पोताना पतिने संभारीने आशीष आपवा लागी के आप मने मूकीने गया, तो पण आपर्नु कल्याण थाओ ? / / 93 // . भविष्यतीह त्वत्सङ्गो मया साधं यदा धव! / तदाहं तव दास्यामि कांचित् शिक्षां च निश्चितम् // ____ अर्थ:-वळी हे स्वामिन् ! ज्यारे आपनी साथे हुँ मळीश त्यारे खरेखर काईक पण आपने शिक्षा करीश // 9 // // // 20 // KumAPP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ जिनप्रभावाच्च कष्टोघो यास्यति क्षयम् / आदितीर्थकृतो मुर्ति चकाराऽतो मृगेक्षणा // 95 // // मृगांक ____ अर्थ:-हवे जिनमथुना प्रभावथी दुःखनो समूह दूर थशे एम विचारी आदिनाथमभुनी मूर्ति तेणीए बनावी // 95 // चरित्रम् ..|निवेश्य प्रतिमां शैले प्रानर्च सततं वधुः / तदने श्रीनमस्कारान् सा च जपति भावतः॥ यतः॥२१|||||| अर्थ:-ते पतिमाने तुरत शिखरपर स्थापन करीने तेणी श्री नवकारमंत्रने भावथी जपवा लागी. // 96 // कयु छ के संग्राम-सागर-करीन्द्र-भुजङ्ग-सिंह-दुर्व्याधि-वह्नि-रिपु-बन्धनसंभवानि // ___चोर-ग्रह-भ्रम-निशाचर-शाकिनीनां, नश्यन्ति पञ्चपरमेष्ठिपदैर्भयानि // 97 // अर्थः-संग्राम, समुद्र. हाथी, सर्प, सिंह, दुस्सह व्याधि, अग्नि, शत्रु बंधन, चोर, ग्रह, भ्रांति, राक्षस अने डाकिनी विगेरेनो भय पंचपरमेष्टिनां स्मरणथी नाश पामे छे. // 97 // यो लक्षं जिनबद्धलक्ष्यसुमनाः सुव्यक्तवर्णक्रमं श्रद्धावान् विजितेन्द्रियो भवहरं मंत्रं जपेत् श्रावकः। पुष्पैः श्वेतसुगन्धिभिश्च विधिना लक्षप्रमाणैर्जिनं यःसंपूजयते स विश्वविदितः श्रीतीर्थराजो भवेत् // अर्थ:- लाखवार जिनेंद्रने विषे जोडयु छे लक्ष अर्थात् मन जेणे, तथा साफ हृदयवाळो, श्रद्धावान तेमज इंद्रिओने जीतनारो श्रावक भवने हरवावाला मंत्रनो जाप करे, तथा सफेद अने सुंगंधो एवां लक्षममाण पुष्पोथी विधिपूर्वक जिनेवरमभुने पूजे ते जगत्मा प्रख्यात एवं तीर्थकरनामगोत्र बांधे. // 98 // // 26 // P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 22 // वने रणे शत्रुजलाऽग्निमध्ये, महार्णवे पर्वतमस्तके वा / चरित्रम् सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा, रक्षन्ति पुण्यानि पुराकृतानि // 99 // अर्थः-वनमां, रणमां, शत्रुओमां, जलमां, अग्निमां, मोटा समुद्रमां, पर्वतना शिखर उपर सुतेलाने, प्रमाद करनारने, दुस्सह स्थितिमा रहेलाने पूर्वे करेलां पुण्य-कार्यो रक्षण करे छे. // 99 // अतो बबन्ध सा बाला पर्वतोपरि सद्ध्वजम् / विदृश्यैनं यतः कोऽप्यत्रागच्छति वजन्पथि // 10 // _ अर्थः-हवे ते पद्मावतीए त्यां पर्वतपर एक ध्वजा बांधी, केमके ते जोइने रस्ते चालतो वटेमा कोइ आवे. // क्रमेण कोऽपि तन्मार्गे गच्छंश्च व्यावहारिकः। ध्वजं दृष्ट्वा च तद्द्वीपे तरण्डो रक्षितस्ततः // 1 // ___ अर्थः-अनुक्रमे ते मार्गे कोइ व्यवहारी जतो हतो तेणे ध्वजा जोइने त्यां वहाण थोभाव्यु. // 1 // उत्तीर्य वणिजां मुख्यो जवात् तत्र नगे गतः / अर्हद्भक्तिपरां बालां ददर्श रूपसुन्दरीम् // 2 // ___अर्थः-तुरतज ते मुख्य वणिक् उतरीने पर्वतपर गयो, त्यां सुंदर रुपवाळी एवी बाळाने अर्हद्भक्तिमां लीन थयेली दीठी. इति पप्रच्छ तां श्रेष्ठी त्वं तिष्ठसि कथं वने / देवी वा किन्नरो वा त्वं भद्रे कथय मां प्रति // 3 // अर्थः - तेणीने ते वणिके पूछ्यु के हे भद्रे ! तुं देवी छो, किन्नरी छो, अथवा कोण छो ? अने आ वनमा केम रहे || // 22 // छे ते तुं मने कहे ? // 3 // Jun Gun Padhak Trust R -RD.AC.Gunratnasuri M.S. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // चरित्रम् // 23 // 33D पूण ध्यानं च कृत्वा सा, श्रुत्वेति तद्वचोऽवदत्। भ्रातोऽहं श्रेष्ठिनः पत्नी यानभङ्गादिहागता // 4 // || अर्थः-ते शेउनुं वचन सांभळीने ध्यानमाथी निवृत्त थइने तेणी बोली के हे भाइ ! हुं श्रेष्टिपत्नी छु अने वहाणना भांगवाथी अत्रे आवी छु.॥४॥ उवाच तां पुनः श्रेष्ठी भगिनि मे वचः शृणु। आगच्छ त्वं मया साधैं मोचयिष्ये शुभस्थले // 5 // ___ अर्थः-त्यारे शेठे वळी कीg के हे बहेन ! मारुं वचन सांभळ ? मारी साथे तुं चाल, तने योग्य ठेकाणे हुं मूकीश // सा विधायार्हतः पूजां चचाल श्रेष्ठिना सह / चलितं श्रेष्ठिनश्चित्तं वधूपरि व्रजन्पथि // 106 // यतः____ अर्थः-तेणी पण प्रभु-पूजा करीने शेठनी साथे चाली. मार्गे चालतां तेणी मत्ये शेठनुं चित्त चलित थयु.॥६॥ केमकेपुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा दृष्ट्वा नारी सुशोभिताम् / तानि त्रीणि वने दृष्ट्वा कस्य न चलति मनः॥७॥ ____ अर्थः-पुष्प, फल अने सुंदर स्त्री ए त्रणेने वगडामां जोवाथी कोनुं मन चलित थतुं नथी ? // 7 // भगिनी कथयित्वेमा वचनाचलितः शठः / ज्ञात्वेति शासनदेव्या तत्पोतः खण्डशः कृतः॥८॥ _ अर्थ:-ते शठ अर्थात् लुच्चा एवा शेठे भगिनि कहीने मन चलित कयु तेथी शासनदेवीए तेना वहाणना कटका | करी नाख्या. // 8 // // 23 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 24 // || सा वधूः फलक लब्ध्वा प्रोत्तरन्ती पयोनिधिम् | उल्लालिता गजेन्द्रेण शुण्डया सुरवर्त्मनि // 9 // मृगांक ____ अर्थः–ते पद्मावतीने पाटीयुं हाथ आववाथी समुद्र तरती हती, तेवामां एक हाथीए आवीने तेणीने सुंढ वडे || आकाशमा उडाडी. // 9 // विद्याधरविमाने सा पतितातीव सुन्दरी / उवाच कार्मुकं वाक्यं तस्या विद्याधराधिपः // 10 // ___ अर्थ:-एटले तेणी विद्याधरना विमानमां पड़ी, तेणीने सुंदर स्वरुपवाळी जोइने विद्याधराधिपत्ति कामोत्तेजक वाक्यो कहेवा लाग्यो. // 10 // विद्याधरं च सा बाला वचसा प्रत्यबोधयत् / स शीलादिगुणैस्तुष्टस्तिस्रो विद्या ददी वराः॥ यतः____ अर्थः-पण ते विद्याधरने तेणीए वचनोवडे प्रतियोधवाथी शील विगेरे गुणोथी खुशी थइने विद्याधरे उत्तम त्रण विद्याओ तेणीने आपी. // 11 // केमके सीलं उत्तमं वित्तं सीलं आरोग्गकारणं परमं / सीलं भोगनिहाणं सीलं ठाणं गुणगणाणं // 12 // ____ अर्थः-शील छे ते उत्तम धन छे, शील छे ते आरोग्यना कारणभूत छे, शील छे ते संपत्ति देवावाळु छ, अर्थात // 24 // // शील गुणना समूहना स्थानरुष छे. // 12 // R.B.AC.Sunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 25 // अदृष्टकरणी विद्यां परविद्याविनाशनीम् / अन्यरूपकरी चैव सापि जग्राह तत्क्षणे // 13 // .. अर्थः-ते विद्याधर पासेथी तेणीए अदृष्टीकरणी, बीजाओनी विद्यानो विनाश करवावाळी अने अन्यरुपकरी ए त्रणे || विधाओ तुरतज ग्रहण करी. // 13 // अहं मुश्चामि कुत्र त्वां बाले ! कथय मत्पुरः / तयोक्तं सुसुमाराख्यपुरे मुश्च महाशय ! // 14 // ___ अर्थ:-हे बाळा ! हुं तने क्यां मूकुं ? ते मने कहे ? एम विद्याधरे पूछवाथी तेणीए को, के हे महाशय ! मने मुसुमारपुर नामे नगरमां मूक ? // 14 // स बालां तत्पुरोधाने मुक्त्वा स्वसदने गतः। साऽन्यरूपपरावर्त्या विद्यया पुरुषोऽभवत् // 15 // ____ अर्थः-बाद तेणीने ते नगरना उद्यानमा मूकीने विद्याधर पोताने स्थानके गयो, पछी पद्मावती रूपपरावर्तिनी विद्याथी पुरुषरूपे थइ. // 15 // सहस्राङ्केति नाम्नाऽसौ भूत्वाजगाम तत्पुरे। पुष्पलावीगृहे तस्थौ लीलया क्रीडयन् भृशम् // 16 // अर्थः-सहस्रांक नाम धरीने तेणी गाममा गइ अने मालीने घरे उतरीने अत्यंत क्रीडा करवा लागी. // 16 // नगरस्य जनाः सर्वे आयान्ति तस्य संनिधौ / सोऽपि समस्तशास्त्राणि सर्वेषां वदति स्फुटम् // 17 // // 25 // A.. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् // 26 // // अर्थ:-ते सहस्रांक पासे नगरना घणा माणसो आववा लाग्या, अने ते पण तेओनी पासे सर्व शास्त्रोनो हकीकत || कहेतो हवो. // 17 // मालिनीसदने तिष्ठन्मे जाता बहवो दिनाः / विना द्रव्येण मद्भक्तिरनया क्रियते भृशम् // 18 // ___ अर्थः-आ मालणने घरे हुँ घणा दिवसो थयां रहुं छु, छतां द्रव्य विना तेणी मारी घणी भक्ति करे छे, // 18 // कयाचित् कलया कृत्वा द्रव्यं ददामि तत्करे / इति मत्वा करे तस्या आर्पयच्च कपर्दकान् // 19 // ___ अर्थः-तो काइंक कळा करी तेणीने द्रव्य आपुं. एम विचारीने मालणने तेणे कोडीओ आपी. // 19 // . उवाचेति शं श्रेष्टिनन्दनो मारविग्रहः / मत् कपर्दान गृहीत्वा त्वं बर्हाण्यानय मालिनि ! // 20 // ___ अर्थः-अने कामदेवजेवा देहवाळा श्रेष्टिपुत्र सहस्रांके कीधुं के हे मालिनि ! आ कोडीओ लेइने तुं मोरना पीछां लाव ? सद्बर्हाणि समानीय कुमाराय च सा ददौ / कृतस्तेन नरब्रह्मनामाङ्कितः सुव्यञ्जनः // 21 // ___ अर्थ-मालणे ते पीछां लावीने सहस्रांकने आप्यां, तेणे "नरब्रह्म" एवा अक्षरो अंदर गोठवीने एक पंखो बनाव्यो.॥ इत्युक्त्वा स ददो तस्या हस्ते व्यञ्जनकं मुदा / पंचशतैश्च दीनारैः विक्रेयः षोडशाधिकः // 22 // ___अर्थः-अने मालणने हर्षपूर्वक ते पंखो आपीने कीg के तारे (516) सोनामहोरोथी आ पंखो वेंचवो. // 22 // // 26 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयांक // 27 // विक्रेयाथै गृहीत्वा सा गता व्यञ्जनकं मुदा / वदन्ती मालिनी मूल्यं चतुष्पथे जनाकुले // 23 // // ____ अर्थः-मालण पण ते पंखो वेचवा माटे बजारमा गइ, अने माणसोथी भरपूर बजारमा बेसीने तेणी किंमत कहेवा लागी. // 23 // जनाः पुरस्य तत्पावे दर्शनार्थ समागताः / एकः करे गृहीत्वा तं पश्यतिस्म निरर्थकम् // 24 // ___ अर्थ:-नगरना लोको ते पंखो जोवा माटे त्यां एकठा थया, कोइ हाथमा लेइ फोकट जोवा लाग्या. // 24 // पप्रच्छैकस्तस्य मूल्यं वायुं क्षिपति कश्चन / वदत्येको न गृह्णामि हास्यमेके प्रकुर्वति // 25 // अर्थः-कोइ तेनुं मूल्य पूछवा लाग्या, कोइ तेनाथी पवन नाखवा लाग्या, कोइ हास्यपूर्वक कहेवा लाग्या के आ तो || आपणे न लइ शकीए ? // 25 // इयं जाता हि यथिला वदन्त्येते मिथो जनाः। यदास्ति द्रव्यमेतच्च प्राप्यन्ते व्यञ्जनोत्कराः // 26 // ____ अर्थः-कोइ कहे आ गांडी थइ गइ लागे छे, जो एटलं द्रव्य होय तो पंखाना ढगला आवी पडे ! // 26 // || एकस्य हृदये जातमाश्चर्य बहुमूल्यतः / कथितस्तेन वृत्तान्तः नरब्रह्मनृपाय च // 27 // // अर्थः-बहु मूल्य होवाथी एक माणसने आश्चर्य थयुं तेथी तेणे ते हकीकत नरब्रह्म राजाने कही. // 27 // . // 27 // P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक श्रम // 28 // स तामाकारयामास कोतुकाद् नृपतिर्जवात् / साऽपि गत्वा स्थिता पार्श्वे प्रणम्य नृपतिं च तम् // _____ अर्थः-कौतुकथी राजाए तुरतज तेणीने बोलावो त्यारे तेणी जइने राजाने प्रणाम करीने उभी. // 28 // तं स्वनामाभितं दृष्ट्वा व्यञ्जनं हर्षितो नृपः। आपृच्छय मालिनी मूल्यं द्विगुणं दत्तवान नृपः // ___ अर्थ:-पोतानुं नाम गोठवेलो पंखो जोइने राजाए हर्पित थइने मूल्य पूछ्युं, तेथी बम[ राजाए तेणीने आप्यु. // 29 // पुनः पप्रच्छ तां राजा निर्मितः केन व्यअनः। मालिन्यूचे महोनाथ! वैदेशिकोऽस्ति मदगृहे // 30 // ____ अर्थः-वळी फरीने राजाए पूछयु के आ कोणे गोठव्यु ? त्यारे मालणे कीधुं के हे पृथ्वीपति ! मारे घेर एक वैदेशिक आवेल छे, // 30 // रूपलावण्यसंपन्नो विद्यया कलितो युवा / तेनायं निर्मितो रम्यस्तव नामसमन्वितः॥ युग्मम // ___ अर्थः - ते रूप, लावण्य अने विद्याथी युक्त एवो युवान छे, तेणे आपना नाम सहितनो आ सुंदर पंखो बनान्यो छे.॥ श्रुत्वेत्याकारयामास तं कुमारं नराधिपः / पुष्पलावीगृहात्सोऽप्यागत्याननाम तं शिरः // 32 // ___ अर्थ:-ते सांभळीने राजाए मालणने घरेथी ते कुमारने बोलाव्यो, कुमारे पण आवीने राजाने मस्तक नमावीने ITRan प्रणाम कर्या. // 32 // .P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक IM चरित्रम् // 29 // विद्यावन्तं विदित्वा तं नरब्रह्मनराधिपः / मुमोचात्माङ्गजान सद्यस्तपार्श्वे पठनाय च // 33 // __ अर्थः- बाद ते नरब्रह्मराजाए तेने विद्वान जाणीने तुरतज पोताना पुत्रोने. तेना पासे भणवा मोकल्या, // 33 // | शब्दनीतिलसत्काव्य-शास्त्रछन्दांसि भूरिशः। एतानि सर्वशास्त्राणि पाठयैतान् ममाज्ञया // यतः___ अर्थः-अने आज्ञा करी के आ मारा पुत्रोने शब्द, नीति, उत्तम काव्यो, छंदशास्त्र, विगेरे सर्व शास्त्रोनो अभ्यास कराव ? // 34 // कयुं छे केविद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं, विद्या भोगकरी यशःसुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः / विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता, विद्या राजसु पूज्यते नहि धनं विद्याविहीनः पशुः॥ ____ अर्थ:-विद्या पुरुषतुं अधिक रुप छे, विद्या गुप्त धन छे, विद्या भोगने करवावाळी तथा यश अने सुख करवावाळी तथा गुरुनी पण गुरू छे, वळी विद्या छे ते परदेशने विषे बंधुसमान अने इष्ट देवता जेवी छे, राजसभामा पण विद्या पूजाय छे धन पूजातुं नथी अर्थात् विद्या रहित माणस पशु समान छे. // 35 // .. उवाच सहसाङ्कोऽसो नरब्रह्ममिति स्फुटम् / एतेषां पाठनकृते मन्दिरं मे समर्पय // 36 // - अर्थ-त्यारे सहस्रांके ते नरब्रह्म राजाने कीg के कुमारोने भणाववा माटे मने एक महेल आपो? // 36 // / राज्ञा तस्मै गृहं दत्तं तस्थिवान सोऽपि निर्भयः। कुमारान् पाठयामास तान् सर्वान् हि निरन्तरम् // // 29 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक |30|| // अर्थ:-राजाए तेमने महेल आप्यो, त्यां निर्भयपणे रह्यो थको सहस्रांक राज-कुमारोने हमेशां भणावतो हतो. // 37 // || चरित्रम् |.छन्दोऽलङ्कारसङ्गीतगूढार्थन्यायनीतयः / एतानि सर्वशास्त्राणि पेठुस्ते च विशेषतः // 38 // __ अर्थः-छंद, अलंकार, संगीत, गूढार्थ छे जेमां एवं न्यायशास्त्र, तथा नीतिशास्त्र ए सर्व शास्त्रो तेओ विशेषप्रकारे भणता हवा. // 38 // कलासु कुशलाः सर्वे जाताः स्तोकदिनैरपि / राज्ञोऽये सहसाङ्केन मुक्तास्तेऽपि च बालकाः // 39 // ____ अर्थः-थोडा दिवसोमां पण तेओ सर्वे कळामां पारंगत थंया त्यारे सहस्रांके ते कुमारोने राजा पासे मोकल्या. // 39 // तान् कुमारान् नृपेणोक्तं परीक्षार्थमिति ध्रुवम् / दर्शयन्तु विनोदं भोः! पुत्राः! शास्त्रस्य मत्परः // 40 // एक एकं प्रत्युवाच____ अर्थ:-ते कुमारोनी परीक्षा माटे राजाए कीधुं के हे पुत्रो ! शास्त्रनो विनोद तमे खरेखर मारापासे मगट करो? // 40 // राजपुत्रो परस्पर कहे छे केकिं जीविअस्स चिढं ? का भज्जा होइ मयणरायस्स ? किं पुप्फाणं पहाणे ? परिणीआ किं कुणह। // 30 // | वाला? // 1 // अपरेणोत्तरं दत्तमिति-'सासरइजाई'। पुनः द्वितीयेनोक्तम् A P.P.AC.Sunratnasuri M.S. VIRA Jun Gun Aaradhak Trust Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाळा शुं करे ? // 41 // चरित्रम् मृगांक अर्थः-जीवित, चिन्ह शृं? कामदेवनी स्त्री कोण ? पुष्पमा प्रधान पुष्प कयु ? अने परणेली बाळा शुं करे ? // 41 // // बीजाए उत्तर आप्यो के "सासुरइजाइ" वळो वीजाए पूछयु के - शरीरं विगताकारमनुखारविवर्जितम् / यदिदं जायते रूपं तत्ते भवतु सर्वदा // 42 // अपरेणोक्तम्॥३१॥ श्रीरिति / पुनरेकेनोक्तम्. अर्थः-विगताकार शरीरवालं, अनुस्वारथी रहित, ए, जे रूप थाय ते हमेशां तमोने याओ? // 42 // बोजाए जवाब आप्यो के "श्री" लक्ष्मी. वळी बीजाए पूछयु केआयेन हीनं जलधावदृश्य, मध्येन हीनं भुवि वर्णनीयम् / अन्त्येन हीनं धिनुते शरीरं, यस्याभिः धानं स जिनः श्रिये वः // 43 // अन्येनोत्तरं दत्तम्-शीतल इति. पुनः कश्चिदुवाच अर्थ:-जे नामनो पहेलो अक्षर हीन करीए तो ते समुद्रथी अदृश्य रहे छे, मध्य अक्षर हीन करीए तो पृथ्वीमा मशंसनीय छे, अंत्य अक्षर हीन करीए तो ते शरीरने कंपाववावाळु थाय छे, ते जिनेश्वर आपणा कल्याण माटे थाओ?|| // 43 // बीजाए उत्तर आप्यो के "शीतल" शीतलनाथ मभु. वळी कोइ बोल्यो के-. | जटिलोऽपि न च ब्रह्मा त्रिनेत्रो नैव शंकरः / अम्बुधरो नैव मेघो वनवासी नैव तापसः // 44 // I चतुर्थेनोत्तरं दत्तम्-नालिकेरमिति / ..... // 31 // PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 32 // ___ अर्थः-जटावाळो छे पण ब्रह्मा नथी, त्रण चक्षुओवाळो छतां शंकर नहि, जलने धारण करवावाळो छतां मेघ नहि, / अने वनवासी छतां तापस नथी. (त्यारे ते कोण ?) // 44 // चोथाए उत्तर आप्यो के " नालिकेर." नाळीएर.. चरित्रम् इति शास्त्रविनोदं स दृष्ट्वा निजाङ्गजन्मनाम् / हर्षितस्तमुवाचैवं सहसाङ्घ धराधवः // 45 // . ___ अर्थः-ए प्रमाणे पोताना पुत्रोने शास्त्र-विनोद करता जोइने हर्षित थयेला राजाए सहस्रांकने कोधु के-॥४५॥ तुष्टोऽहं त्वयि सत्प्राज्ञ ! याचस्व वरमोप्सितम् | ययाचे शौल्किकत्वं स ददो राजापि तत्क्षणम् // अर्थः-हे सत्पुरूष ! हुँ तारामत्ये तुष्टमान थयो छु तो इच्छित माग ? त्यारे सहस्रांके दाण. लेवान अधिकारीपणुं माग्यु. त्यारे राजाए पण तुरत तेने ते काम सोप्यु. // 46 // शौल्किकत्वं गृहीत्वा स खानुचरान् प्रजल्पति / अर्द्धदाणं मया मुक्तं तच्चौर्य त्याज्यमडिभिः॥४७॥ ____ अर्थ:-तेणे जगात, काम ग्रहण करीने पोताना नोकरोने ज़णाव्यु के हुं अरधो जगात माफ करुं छु, माटे कोइ. पण माणसे दाण चोरी करवी नहि. // 47 // इत्यादिघोषणां कृत्वा कुमारस्तत्र तस्थिवान् / सुखेन स्वाधिकारं च पालयामास तत्पुरे // 48 // ___ अर्थ:-एम ढंढेरो पीमवीने ते कुमार ल्यां रह्यो थको सुखे करी पोतानो अधिकार पाळतो हतो, 48 // ... || ३सा // 32 // ... AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || अथ तस्मिन्पुरे चौरः समागत्य निरन्तरम् / चौय्य करोति निःशङ्को दुर्जयो दिव्यविद्यया // 49 // // मृगांक __. अर्थ:-हवे ते नगरमां दुर्जय एवो कोई चोर हमेशां आवीने दिव्य विद्याथी चोरी करतो हतो. // 49 // चरित्रम् एकदेति महीपालो विज्ञप्तो पुरवासिभिः। अस्माभिश्चौरभीत्या च पुरे स्थातुं न शक्यते // 50 // ____ अर्थः-तेथी एक दिवसे नगरना लोकोए राजाने विनंति करी के अमे चोरनी बीकथी आ नगरमा रहेवाने असमर्थ छीए. // 50 // .. नृपः श्रुत्वा तलारक्षमाहूयेत्यवदत् ततः। चौरं कर्षय त्वं सयो यथाऽत्र स्यात् सुखं नृणाम् // 51 // ____ अर्थ:-एम सांभळीने राजाए कोटवाळने बोलान्यो अने कीधुं के तुं चोरने तुरत पकड ? के जेथी आलोकोने मुख थाय. इत्युवाच तलारक्षो नरब्रह्ममहानृपम् / विलोकितो मया चौरः परं क्वापि न लभ्यते // 52 // ___ अर्थः-कोटवाळे नरब्रह्मराजाने कयुं के में चोरने घणो जोयो पण क्यांय मलतो नथी. // 52 // ततो मन्त्री लसबुद्धिर्नरब्रह्ममुवाच तम् / अथाऽहं तस्करं कर्षे उदित्वा बीडकं धृतम् // 53 // _ अर्थ-त्यारे लसत्बुद्धि नामना मंत्रीए राजाने कीg के आजेज हुँ चोरने पकड़ एम कही बीडु लीधुं. // 53 // इति श्रुत्वापि स चोरः प्रधानसदने गतः। दत्वाऽवखापिनी निद्रां सर्वेषां गृहवासिनाम् // 54 // // 33 // PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक AL: अर्थः-ए हकीकत सांभळीने चोरे ते प्रधानने घेर जइने घरना सर्व माणसोने अवस्वापिनी निद्रा आपी. // 54 // कृत्वा च पश्चिमे द्वारं प्रविष्टस्तत्र तस्करः / गृहनेतेव सर्वत्र ददर्श निर्भयो बली // 55 // ____ अर्थः-अने पछवाडेना बारणेथी प्रवेश करीने बळबान अने निर्भय एवो ते चोर घरना धणीनी पेठे बधुं जोवा लाग्यो. // 34 // मुक्ताफलानि रत्नानि वस्त्राणि भूषणानि च / अन्यान्यपि च वस्तुनि मुषित्वा तस्करो गतः // 56 // ____अर्थः-बाद रत्नोनो समूह, मुक्ताफल, वस्त्राभूषण विगेरे घणी वस्तुओ चोरीने ते चोर चाल्यो गयो. // 56 / / प्रभातसमये जाते प्रधानो जागृतस्ततः / तदैव खगृहे खात्रं दृष्ट्वा मनसि विस्मितः // 57 // . ___ अर्थ:-सवार थतां प्रधान जागीने जुए छे तो पोतानाज घरमां चोरो थयेली जोइने मनमां विस्मित थयो. // 57 // स प्रधानो नृपासन्ने गत्वाऽवदत् पुनः पुनः / न मुक्तं मगृहे किञ्चित् चौरेण स्फारबुद्धिना // 5 // ___अर्थ:-ते प्रधान राजा पासे आवीने वारंवार कहेचा लाग्यो के चतुर बुद्धिवाळा एवा चोरे मारा घरमांकरदेव दीधुं नथी. // 58 // ततोऽवदज्जराजीपर्णा नृपं नगरनायिका / वशीकार्यों मया चौरः क्षणेन कपटाद् भृशम् // 59 // . अर्थः-त्यारे घडपणथी वृद्ध थयेली नगरनी नायिकाए राजाने कर्दा के हुं एक क्षणमां कपटथी चोरने वश करी || // 34 // / लेइश. // 59 / / PRAC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 35 // | रूपमद्भुतमा ! धृत्वा श्रुत्वा चोरः स बीडकम् | क्रीडां कुर्वन् सुयामिन्यामागतो नायिकागृहे // 60 // | चरित्रम् ___ अर्थ:-ए वात सांभळीने अद्भुत रुप करीने चोर क्रीडा करतो रात्रिए नायिकाने घरे आव्यो. // 6 // कब्जरूपधरां दासी दृष्टा चौरेण तत्र च / मष्टिघातेन सा दासी सरला विहिता तदा // 61 // ___ अर्थः-त्यां चोरे कुबडी एवी एक दासीने जोइने मुष्टि-महारथी ते कुबडीने सरल करी दीधी. // 61 // . साऽपि स्वखामिनीपावें गत्वा नत्वा च संस्थिता / द्वारस्थितेन केनापि सरला विहिता मुदा // ___ अर्थः-ते दासी पण पोतानी बाइ पासे जइने प्रणामपूर्वक कहेवा लागी के बहार उभेला कोइके मने सरल करी दीधी. नायिकोवाच तं श्रुत्वा दासीमिति पुनः पुनः / त्वमाकारय तं भद्रे ! शीघ्रं सोऽपि समागतः // 63 / / ___ अर्थः-ते सांभळीने नायिका दासीने वारंवार कहेवा लागी के हे भद्रे ! तेने तुं तुरत बोलाव ? तेथी ते पण आव्यो. || नायिकोवाच भो विद्वन् ! मां कुरु नवयौवनाम् / अर्पिता गुटिका तस्यै शिक्षयित्वेति तेन वै // 6 // _ अर्थः-त्यारे नायिकाए लेने कीधुं के हे विद्वान ! मने नव-यौवना बनाव ? त्यारे ते चोरे तेने जडीबुटी आपीने | शीखव्यु के, // 64 // .. शुन्यसद्मनि निर्वस्त्रं स्थातव्यं त्वयकाऽधुना / त्वां यदा कथयिष्येऽहं गन्धनीयेयमद्भुता // 65 // // 35 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक .. अर्थः-हमणां तारे एक शून्य ओरडामां जइने निर्वस्त्र थइने रहेवू, अने ज्यारे हुं कहुं त्यारे आ अद्भुत प्रभाववालो || जडोचुटी तारे मुंघवी. / / 65 // . स नायिकां गृहे. क्षिप्त्वा कपाटं दत्तवान् ततः / पश्चात्सर्वाणि वस्तूनि मुषित्वा तस्करीऽवदत् // ___ // 36 // || | अर्थ:-ए प्रमाणे नायिकाने ओरडामा राखी माथे आगळीओ देइने सर्व वस्तुओ चोरी लेइने चोर बोल्यो के, // 66 // गन्धस्व गुटिकां वृद्धे ! इत्युक्त्वा तस्करो ययो। सापि वारत्रयं मूलीगन्धिताऽमृच्च रासभी // 17 // - अर्थ:-हे वृद्धा! ते गुटिकाने हवे सुंघ ? एम कहीने ते चोर चालतो थयो. तेणीए प्रणवार ते गुटिका मुंघवाथी / गडीरुपे थइ गइ. // 67 // प्रातःकालो यदा जातस्तदा दासी समागता | वृद्धां च रासभी दृष्ट्वा गत्वा राज्ञे न्यवेदयत // 6 // ___ अर्थ:--सवार थतां दासी आवीने जुए छे तो नायिकाने गधेडीरुपे जोइने तेणीए राजा पासे जइने निवेदन कर्य. / / .: / तत् श्रुत्वा सुभटाः सर्वे तस्मिन्पुरेऽपि हारिताः / तद् बीडकं हि केनापि चौरभीत्या च नाहतम् // 19 // अर्थ:-ते सांभळीने राजाए आखा नगरमा लश्कर गोठवी दीधुं, पण चोरनी बीकयो कोइए बीईं लीधुं नहि. // 69 // | चिन्तितमिति चौरेण कस्मिन् सुवासरे हृदि / अथानयामि भूपस्य पुत्रीमतीव सुन्दराम् // 7 // // 36 // Jun Gun Aaradhak Trust A PP.AC.Gunratnasuri M.S. MEMAIL Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् // 37 // ..अर्थ:-वळी कोइ सारे दिवसे चोरे विचार कर्यो के आ राजानी अति खुबसुरत एवी तेनी पुत्रीने लइ आ // 70 // // // मध्यरात्री समागत्य गृहीता नृपनन्दनी। गत्वा स्वसदने मुक्ता पुत्रीमतीव सुन्दराम // 71. // . ___ अर्थः-मध्य रात्रिए चोरे निर्भयपणे आवीने ते सुंदरतर राज-पुत्रीने लेइने पोताने घरे मूकी. // 71 // .. प्रातस्तस्या गृहे चेटी समायाता शुभानना। नो दृष्ट्वा तत्र तां बाला-मित्यवोचन्नृपान्तिके // 72 // . अर्थः-सवारे ते राज-पुत्रीना महेलमां सुंदर चहेरावाली दासी आवीने जुए छे तो तेणीने न जोवाथी. राजापासे आवीने ते दासीए निवेदन कयु. // 72 // वपुत्रीहरणं ज्ञात्वा पटहोद्घोषणं कृतम् / यो ह्यानयति मत्पुत्री लभते तो सलक्ष्मीकाम् // 73 // - अर्थ:--पोतानी पुत्री पण गुम थयाना खबर सांभळोने राजाए पटह वजडाव्यो के जे कोइ मारी पुत्रीने लावशे ते, ते कन्या लक्ष्मीसहित मेळवशे. // 73 // . . सहसाङ्केन तं श्रुत्वा गृहीतः पटहस्ततः / नृपते! स्मर जिनाधीश-मागच्छति यथा सुता // 4 // // अर्थ:-ते सांभळोने सहस्रांके बीहूं लीधुं अने कीधुं के हे राजन् ! जिनेश्वरमसुनु स्मरण कर के जेथी तारी // 37 // पुत्री आव.॥७४।। .. .... .. ...... . ... . . . ..... .. 6. .... ... // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक. // 38 // | पुनरूचे नृपस्याग्रे सहसाङ्कः खबुद्धिना। चौरस्य बन्धनं कृत्वा-नेिष्यामि हि तवात्मजाम् // यतः चरित्रम् ____ अर्थः-वळी ते सहस्रांके बुद्धिपूर्वक राजाने कीधुं के ते चोरने बांधोने तारो पुत्री सहित खरेखर लावू छु. // केमकेयस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् / वने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः॥७६ // - अर्थ:-जेनी पसे बुद्धि-बल छे तेज खलं बल छे. बुद्धि रहितने बल क्याथी होय ? कारण के वनमा मदोन्मत्त एवा सिंहने पण शीयाळे ( कुवामां ) पाडयो. // 76 // उद्यमः साहसं धैर्य बलं बुद्धिपराक्रमम् / षडेते यस्य विद्यन्ते, तस्य देवोऽपि शङ्कते // 77 // ___ अर्थः-वळी उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि अने पराक्रम, ए छ जेना पासे छे तेनाथी देवताओ पण शंकित रहे छे.॥ उदित्वेति कुमारस्तं स्वसदने समागतः। प्रत्युद्घाट्य स्वभण्डारान् प्रच्छन्नः संस्थितो निशि // 7 // ____ अर्थः-ए प्रमाणे राजाने कहीने ते सहस्रांके पोताने स्थानके आवीने पोताना भंडारो उघाडा राख्या अने रात्रिए पोते गुप्तपणे उभो रह्यो. / / 78 // परविद्याविनाशनी स्मरन् चित्ते स हर्षितः। स्वकीयमदृश्यरूपं कृत्वा तत्र च तस्थिवान् // 79 // // an // अर्थः-अन्यनी विद्यानो नाश करवावाळी विद्या स्मरण करीने तथा पोतार्नु अदृश्य रुप करीने ते सहस्रांक उभो.॥ Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 39 // | तस्मिन्नवसरे चौर आगत्य तस्य सद्मनि / सर्वेषामवस्वापिनी-निद्रा ददौ स निर्भयः // 8 // // अर्थ:-ते समये निर्भय एवा ते चोरे तेना मकानमां आवीने बधाने अवस्वापिनो निद्रा आपी. // 8 // कुमारविद्यया जाता-ऽवस्वापिनी च निष्फला। दृष्टं सर्व कुमारेण न च. चौरेण स पुमान् // 8 // ___ अर्थः-पण कुमारनी विधाथी अवस्वापिनी निद्रा निष्फल थवाथी सहस्रांक बधुं जोतो हतो पण चोरे तेने दीठो नहि.॥ ततः सर्वाणि वस्तूनि गृहीत्वा तस्करो वजन् / दृष्टस्तेन कुमारेण सोऽपि चचाल पृष्ठतः // 8 // ___ अर्थः-त्यारे सर्व वस्तुओ लेइने चोर चालवा लाग्यो ते कुमारे दीडं त्यारे ते पण तेनी पाछळ चालवा लाग्यो. // गुफामुद्घाट्य चौरोऽसौ धनं मुक्त्वा च तत्क्षणम् / इत्युवाच कुमारी तां भुंक्ष्व भोगान्मया सह // ___ अर्थः-चोरे गुफा उघाडीने अंदर धन मूकीने तुरतज राज-पुत्रीने कहेवा लाग्यो के मारी साथे भोग भोगव ? // 83 // चौरमचे कुमारी सा श्रुत्वेति वचनं कटु / बलात्कारेण सत्प्रीतिनों भवति कदाचन // 4 // यतः___ अर्थ:-ते कटुवाणी सांभळीने तेणीए चोरने कीई के कोइ दिवस बलात्कारथी सत्मीति थती नथी. // 84 // केमकेकविता वनिता गीतिः, स्वयमेवागता वरम्। बलादाकर्षमाणा हि सरसा विरसा भवेत् // 85 // / // 39 / / P.P.AC.Gunratnasuri-M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् // 40 // अर्थः- कविता, ललना अने गीति पोतानी मेळे आवेलां सारां, पण बळजबरोथी मेळववामां आवे तो सरस होवा छतां || नीरस थइ जाय छे. // 85 // श्रुत्वा तद्वचनं चोरो भीमखड्गेन सत्वरम् / केशपाशं करे कृत्वा तां प्रहर्तुं समुत्थितः // 86 // अर्थ:-तेणीनुं ते वचन सांभळीने तुरतज चोरे तेणीनो चोटलो झालीने भयंकर खड्ग लेइने मारवा उठयो. // 86 // तद् दृष्ट्वा सहसाङ्कश्च खड्गं धृत्वा करेऽवदत् / तस्कर ! मां समागच्छ यदि त्वं बलवानसि // 7 // ___ अर्थ:-ते जोइने सहस्रांक पण तलवार हाथमा लेइने बोल्यो के हे चोर ! तुं जो बलवान छे तो मारा सामे आव ? // श्रुत्वा विमुच्य तां चौरो, गतः कुमारसन्निधो / कुमारचौरयोयुद्ध-मभूत्तत्र भयङ्करम् // 8 // ____ अर्थ:-ते सांभळीने चोर तेणीने मूकीने सहस्रांकसामे गयो, अने त्यां तेओ बन्ने बच्चे भयंकर युद्ध थयु. / / 88 // दृढं बद्धः कुमारेण तस्करो बलवानपि / करग्रहीतनिस्त्रिंशः सत्त्वात् किं लभते न हि ? // 89 // यतः___ अर्थः-चोर बळवान हतो तेने पण सहस्रांके दृढ बांध्यो, कारण के सत्त्ववान अने हस्तमा राखेल छे तलवार जेणे ए शुं नथी मेळवी शकतो? // 89 // कबुं छे केविजेतव्या लङ्का चरणतरणीयो जलनिधिविपक्षः पौलस्त्यो रणभुवि सहायाश्व कपयः। // 40 // ..P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 4 || तथाप्येको रामः सकलमवधीद्राक्षसकुलं, क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे // 90 // | __अर्थः-लकाने जीतवी, चरणथी समुद्र तरवो अने रावण जेवा शत्रुने जीतवा माटे सहायक फक्त वांदरा हता. छतां // चरित्रम् // एक एवा रामे आखा रावणना कुळने हणी नाख्यु, माटे महान् माणसोनी क्रिया-सिद्धि सत्त्वमा रहेली छे, उपकरण (साधन) मां नहि. // 9 // घटो जन्मस्थानं मृगपरिजनो भूर्जवसनो, वने वासः कन्दाशनमपि च दुःस्थं वपुरिदम् / तथाऽप्येकोऽगस्त्यः सकलमपिबद् वारिधिजलं, क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे // 9 // ___ अर्थः-घट छे जन्मस्थान जेनु. मृग छे सहचारिओ जेना, भोज-पत्र छे वस्त्रो जेनां, वनमा छ वास जेनो, फळाहार छे जेनो तथा अत्यंत दुर्बल छे शरीर जेजें, एवो एक अगस्ति सघळं समुद्र-जल पी गयो, माटे महान माणसोनी सत्त्वमांज क्रियासिद्धि रहेली छे, उपकरणमां नहिं. // 91 // .. सुभटश्रेणिकोटीरः कुमारो नृपसन्निधौ / प्रत्यूषसमये गत्वा सद्यस्तावार्पयद् भृषम् // 92 // अर्थ:-बाद सहस्रांक घणा सुभटोथी परिवरेलो सवारे तुरतज राजापासे जइने (सर्व वस्तु ) अर्पण करतो हवो. // यत्तस्करेण तद्बामे गृहीतं वस्तु विश्रुतम् / तत्सर्वं जनतावृन्दैर्गृहीतं श्रीनृपाज्ञया / / 93 // R // 41 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक IM चरित्रम् // 42 // अर्थ:-ते गाममाथी चोरे चोरेली अनेक वस्तुओं राजानी आज्ञाथी जन-समूहे लेइ लीधो. // 93 // जनाः सर्वेऽपि सन्तुष्टाः कुमारायाशिषं ददुः। दृष्ट्वा तस्य कुमारस्य कार्यमेतद्रीयसम् // 94 // ___ अर्थ:-ते सहस्रांकनु आवु मोटुं कार्य जोइने सर्व लोको संतुष्ट थया थका तेने आशीप आपवा लाग्या. // 94 // खर्यऽवस्वापिनी विद्या तालकोद्घाटनी तथा / तथा रूपकरी विद्या विदुषां वल्लभा सदा // 95 // ____ अर्थः -- उत्तम एवी आकाशगामिनी विद्या, अवस्वापिनी विद्या, तालकोद्घाटिनी विद्या तथा विद्वानोने हमेशां मिय एवी रूपपरावर्तिनी विद्या / / 95 // चतस्रस्तस्करादेता विद्या जग्राह तत्क्षणम् / कुमारसहसाङ्को हि सत्त्ववान् सुजनप्रियः // 96 // | ___अर्थः-ए चारे विद्या ते चोर पासेथी तुरतज सज्जनप्रिय अने बळवान एवा सहस्रांके खरेखर ग्रहण करी. // 96 // || कुमारानुगृहाद्राज्ञा कर्षितो देशतो बहिः। अवध्य इति निश्चित्य तस्करो निजचेतसि // 97 // ___ अर्थः-बाद राजाए ते चोरने कुमारना आग्रहथी देशपार कर्यो, अने चोर पण पोताने अवध्य मानीने निश्चित थयो. // नगर्या जयकारो हि तस्मिन् जातो विशेषतः। तस्करकर्षणादेव कुमारोऽपि स हर्षितः // 98 // II // अर्थः-चोरने देशपार थयो मानीने नगरमा विशेष प्रकारे जयजयकार थयो, अने कुमार पण हर्षित थयो. // 98 // " .. .. A PP.AC.GunratnasuriM.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // चरित्रम् // नरब्रह्मोऽपि सः पश्चात् सहसाएं च जल्पिवान् / त्वमुद्राहय सल्लग्ने मे पुत्रीं श्रीसमन्विताम् // 99 // / मृगांक | अर्थः-बाद नरब्रह्मराजाए सहस्रांकने कीधु के शुभ लग्ने लक्ष्मी सहित तुं मारी पुत्रीने परण ? // 99 // // 43 // राजानं सहसाङ्कश्च प्रोचे भाग्यपुरन्दरः / साम्प्रतं नियमः सम्यग् मया कृतोऽस्ति भावतः // 200 // ___ अर्थः-त्यारे भाग्यवान सहस्रांके कीधुं के हाल में भावथी नियम ग्रहण कर्यो छे. // 20 // . एकदा चिन्तयामास सहसाङ्कः स्वचेतसि / मृगाङ्को मे पतिर्वर्यः समेष्यति कदाऽत्र वै? // 1 // ___ अर्थ:-हवे एक दिवसे स्त्रीरूपधारी सहस्रांक मनमा विचारतो हवो के मारो उत्तम एवो पति मृगांक क्यारे अहिं आवशे ? // 1 // क्रमेण सिंहलद्वीपात् सन्मृगाङ्कः समागतः / उपविश्य तरण्डे हि भृते वस्तुविशेषकैः // 2 // अर्थः-अनुक्रमे सिंहलद्वीपथी अनेक वस्तुओ भरीने ते सज्जन एवो मृगांक वहाणमां बेसीने आव्यो. // 2 // सुसुमारपुरं ज्ञात्वा रक्षयित्वा च पोतकम् / तस्मादुत्तरितः श्रेष्ठी मृगाको गुणनीरधिः // 3 // : अर्थः-अने सुसुमारपुर जाणीने अहिं वहाणने योभावीने ते गुणनिधान मृगांककुमार त्यां उतो. // 3 // || कुसुमसारस्य पुत्रो मृगाङ्कोऽत्र समागतः / कथितं सहसाङ्काम इति स्वानुचरेण च // 4 // - . // 43 // .P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् // 44 // // अर्थः-त्यारे सहस्रांकना नोकरे खवर आपी के कुसुमसारनो पुत्र मृगांककुमार अहिं आवेल छे. / / 4 // मृगाङ्ककुमरः सोऽप्युपायनं गृहीत्वा ततः / आगतो विनयं कुर्वन् गत्या तर्जितवारणः // 5 // ___ अर्थः-बाद ते मृगांककुमार भेटणुं लेइने हस्तिनी गतिने तिरस्कारतो विनयपूर्वक त्यां आव्योः // 5 // सहसाङ्कः स्वभर्तारं दृष्ट्वासनात्समुत्थितः। सन्मुखोऽपि गतस्तस्य विनयार्थं च शुद्धधीः // 6 // यतःअर्थ:-शुद्ध बुद्धिवाळो सहलांक पण पोताना भर्तारने जोइने विनयथी उठीने सामो गयो. // 6 // कबुं छे के केनाञ्जितानि नयनानि मृगाङ्गनानां, कश्चोत्पलेषु दलसञ्चयमातनोति ? / को वा करोति रुचिराङ्गरुहान् मयूरान्, को वा करोति विनयं कुलजेषु पुंसु ?. // 7 // अर्थ:-मगलीओनां नयनो कोणे आंज्यां छे ? कमळमां दळ-संचय कोणे कर्यो छे ? मयूरोना पीछाने कोण सुंदर बनावे छे ? अने सत्कुलमा उत्पन्न थयेला पुरुषोमां विनय कोण उत्पन्न करे छे ? (आ बधुं स्वतः सिद्ध होय छे कोइ करवा जतुं नथी) // 7 // विनयं राजपुत्रेभ्यः पण्डितेभ्यः सुभाषितम् / अनृतं यतकारेभ्यः स्त्रीभ्यः शिक्षेत कैतवम् // 8 // ____ अर्थः- राजपुत्रोथी विनय, पंडितोथी सद्वचनो, जुगारीओयी जुलु अने स्त्रीओथी कपट शोखाय छे. // 8 // // 44 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मग // 45 // इत्यूचे सहसाङ्कोऽसो कुसुमसारनन्दनम् | तवाननं निरीक्ष्याहं हर्षितः पूर्वरागतः // 9 // चरित्रम् - अर्थः-बाद कुसुमसारना पुत्र मृगांकने सहसांके की, के तारुं मुख जोइने पूर्वरागथी हुं हर्षित थाउं छु // 9 // तत्कारणाद् मया मुक्तं तवार्द्धदाणमेव च / त्वां वारयाम्यहं श्रेष्ठिन् ! न कार्या दाणतस्करी // 10 // - अर्थः-अने ते कारणथी हुँ तारु अर्ध दाण माफ कर छु, पण हे शेठ! हुं आपने स्पष्ट कहुं छु के दाण-चौरी करशो नहिं. // 10 // लेखं विलिख्य वस्तुनि जग्राह शौल्किकः शुभः। लिखनादधिकं पोते, दृष्ट्वा बभूव कोपभाक् // 11 // ___ अर्थ:-तेना कहेवा प्रमाणे सर्व वस्तुओ नोंधीने जगात लीधो, पण. लखाव्याथी वहाणमां वधारे वस्तुओ जोइने सहस्रांक कोपायमान थयो. // 11 // . सयेनं बन्धयध्वं च श्रेष्ठिनं दाणतस्करम्। शोल्किकश्च हि भो लोकाः! इत्यादिशत् समानुषान् // 12 // ___ अर्थः-अरे माणसो ! दाणचोरी करनार आ शेठने तुरतज बांधो ? एम ते दाणना अधिकारी सहस्रांके पोताना माण सोने हुकम कर्यो. // 12 // M दृढं बध्वा तदादेशाद् मृगाकं तस्य सेवकैः / खगृहे च समानीतं मुषित्वा तत्तरण्डकम् // 13 // ||| // 45 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 46 // अर्थ-ते हुकमथी तेना नोकरोए मृगांकने मजबूत बांध्यो अने वहाणमाथी लँटीने ( सर्व वस्तु) घरे लाव्या. // 13 // || // चरित्रम् क्रोधेनाऽरुणमाकृत्य लोचनमवदत्पुनः / यष्टिमुष्टिप्रहारैश्चैनं मारयत भो जनाः! // 14 // ___ अर्थ:-क्रोधावेशथी लाल आंखो बतावीने सहस्रांक वारंवार कहेवा लाग्यो के अरे माणसो ! आ शेठने लाकडी मुष्टि विगेरे प्रहारथी मारो? // 14 // मम चित्ते महान्कोपो वर्त्तते भो विचक्षण! किं करोमि परं स्वामि-न्न मोक्ष्ये त्वामतः परम् // ___ अर्थ:-हे विचक्षण ! मारा हृदयमां अति कोप आव्यो छे तेथी शुं करूं के तने छोडी शकुं तेम नथी. // 15 // .. इत्युक्त्वा सहसाकोऽसो चचाल निजमन्दिरे ! पोतेश ! भोजनं रम्यं करिष्यसे हि मगृहे // 16 // अर्थः-एम कहीने सहस्रांके पोताने घरे चालवा जतां पूज्यु के हे वहाणपति ! तमो मारे त्यां मनोहर भोजन करशो ? // तेनोक्तं मांडवीनाथ ! वाञ्छितं कथितं त्वया। ततः सोऽपि च तत्साई भोजनाय गतः खलु // यतः__ अर्थः-शेठे कीधुं के हे दाणना अधिकारी ! बहु सारं, आपे योग्य की , एम कही शेठ पण तेना साथे भोजनमाटे गयो. // 17 // कयुं छे केअभिमतमहामानग्रन्थिप्रभेदपटीयसी, गुरुतरगुणग्रामाम्भोजस्फुटोज्ज्वलचन्द्रिका / // 46 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 47 // गा। विपुलविलसल्लज्जावल्लीवितानकुठारिका, जठरपिठरी दुष्पूरेयं करोति विडम्बनाम् // 18 // .. || . अर्थः -जेथी अभिमत मोटा मानरुप ग्रंथिना भेदनमां चतुर, अति मोटा गुणना समुदायरुप कमळने विकसित करवामां | उज्वल चंद्रिकासरखी, मोटी सुशोभिन लज्जारूप वल्लिने विदारण करवामां कुहाडीरुप, आ दुःखें पूराय एवी पेटरुप पेटी विडंबना करे छे. // 18 // सहसाङ्कः खहस्तेन चकाराऽथ सुभोजनम् / घृतपूरैः समायुक्तं प्राणिनां मधुरैः सदा // 19 // ___ अर्थः-बाद सहस्रांके पोताने हाथे प्राणिओने हमेशां मधुर एवं घृतथी तरबोळ करेलुं भोजन बनाव्यु. // 19 // तप्तिहरैश्च सत्तारैः कुष्माण्डपाककैर्वरम् / मोददं सततं रम्यं सिंहकेसरमोदकैः // 20 // अर्थः-तापने हरवावालो एवो उत्तम कोळांपाक तथा अनुपम सिंहकेसरीआ लाडु ताजा अने खुश करे एवा तुरत बनाव्या. // 20 // सर्वपक्वान्नसंयुक्तं सुराणां सुरभि ध्रुवम् / हरमशेषरोगाणां कलितं लापनश्रिया // 21 // यतः___ अर्थ:-सर्व पक्वानोथी मिश्रित करेल तथा खरेखर देवताओने पण सुगंधि आपनार, तेमज सर्व रोगने हरवावाळी | // 47 // / / एवी लापसी पण बनावी. // 21 // कयुं छे के P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 48 // - दुग्धं गोधूमचूर्ण घृतगुडसहितं नालिकेरस्य खण्ड, द्राक्षा-खजूर-सुण्ठि-तज-मरिचयुतं / पेशलं नागपुष्पम् / पक्कं ताने कटाहे तलवितमतुलं पावके मंदकान्तो, धन्या हेमंतकाले प्रचुरघृतयुता भुञ्जतेलापनश्रीः॥ 22 // अर्थः-दूध, घउंनो लोट, घी, गोळसहित नालीएरनुं खमण, द्राक्ष, खजुर, सुंठ, तज, मरी अने नागकेसरना पुष्पोए करी युक्त, नथी देखातुं तळं जेनुं एवी तांबानी कडाइमां मंदाग्निथी पकावेली अने घणा घीथी युक्त लापसी हेमंतऋतुमा जे माणसो खाय छे ते माणसो धन्य छे. / / 22 // निर्मलक्षीरसत्खण्ड-प्राज्याज्यपूर्विकान्वितम् / प्रविष्टाऽन्धो-विदालिभ्यां राजितं दोषवर्जितम् // ___ अर्थः-निर्मल क्षीरथी साफ करेल छे खांड तथा घीथी परिपूर्ण करेल छे एवा मालपुडा, मीठो भात तथा चडी दाळ | विगेरे दोषवर्जित रसोइथी तेने रंजित कर्यो. // 23 // इत्थम्भूते मनोज्ञे च क्रियमाणे सुभोजने / पूर्वः स्वादस्तदा प्राप्तः मृगाङ्केनाऽतिबुद्धिना // 24 // ___ अर्थः-एवी रोतर्नु उत्तम भोजन करवाथी बुद्धिशाली मृगांकने प्रथमना वखतनो स्वाद आन्यो. // 24 // // तेनास्वादेन चित्ते च कुमारोऽवगमत्तदा / इयं पद्मावती चास्ति किंवा नास्ति च वल्लभा // 25 // // 48 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 49 // // अर्थः-ते स्वादथी मृगांक मनमां विचारता लाग्यो के आ शुं मारी स्त्री पद्मावती न होय ? // 25 // | चरित्रम् | या तु मया वने मुक्ता समायात्यत्र सा कथम् ? / एषस्तु शौल्किको नूनं नररूपेण दृश्यते // 26 // ____ अर्थः-अरे! जेणीने में वनमा छोडी दीधी छे ते अहिं क्याथी होय ? आ तो खरेखर पुरुषरूपधारी जगातनो उपरी छे. // 26 // सो भव्यं भोजनं भुक्त्वा वचसेत्यवदत्ततः / मां सहसाङ्क ! मुञ्चस्व कृपया दीनमन्दिरम् // 27 // ___अर्थः-उत्तम भोजन कर्या बाद मृगांके तेने विनंति करी के हे सहस्रांक ! गरीबाइना घररुप एवा मनें कृपा करीने छोड ? // 27 // श्रेष्ठिनं तं कलाधाम-सहसाङ्कः प्रजल्पिवान् / यावत्वं जीवसि भव्य! तावत्पाN न मुच्यते // 28 // ___ अर्थः-कलावान सहस्रांके ते शेठने कीधुं के हे भव्य! ज्यांसुधी तुं जीवे छे त्यांसुधी तारुं पडखं छोड़ी शकुंतेम नथी. मृगाङ्क! त्वं सदा दीन-मन्तुमानसि मे भृशम्। तेनाहं ताडयिष्यामि महद्दण्डेन पाणिना // 29 // अर्थ:-हे मृगांक! सदा दीन एवो तुं मारो घणो अपराधी छो, तेथी मारा हस्तरूपी मोटा दंडथी तने हुं मारीश.. श्रेष्ठिनं बन्धयित्वोव ताडयन्तु पुरो धृतम् / एतादृशी मुखे भीति-मदर्शयत् पुनः पुनः // 30 // 49 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // चरित्रम् // 50 // ___अर्थः-" आ शेठने उंचे टांगो अने मारो" एवी बीक मोढेथी वारंवार आपवा लाग्यो. // 30 // नृपेण निजकर्णान्ते एतत्सर्वं यदा श्रुतम् / मुञ्चापितश्च वेगेन मृगाङ्कः कृपया तदा // 31 // ___ अर्थः - राजाना कर्णसुधी आ वात ज्यारे पहोंची त्यारे तुरतज मृगांकने दया लावीने छोडाव्यो. // 31 // नृपस्य वचनान्मुक्तो मुत्कलो व्यावहारिकः। प्रतिज्ञामिति निश्चित्य न गन्तव्यं मया विना // 32 // ___ अर्थः-राजानी आज्ञाथी छुटा करेला ते शेठ साथे एवी प्रतिज्ञा करावी के मारा विना तारे (क्यांय) जq नहिं. // 32 // दासो भूत्वा मृगाको हि स दैन्यमदधत् तदा। अन्यत्कृत्यानि नीचानि चकार सोऽपि सर्वदा // 33 // अर्थः-मृगांक पण दीनपणे सेवक थइने रह्यो अने बीजां हलकां काम पण हमेशां ते करवा लाग्यो. // 33 // एकस्मिन् दिवसे श्रेष्ठी करौ नियोज्य संस्थितः। शौल्किकेन तदा दृष्टो नयनोत्पन्नरागतः // 34 // अर्थः-एक दिवसे हाथ जोडीने ते शेठ उभो, त्यारे दाणना अधिकारीए तेना तरफ राग-मिश्रित नयनोथी दृष्टी करी. प्रसन्नचित्तं विज्ञाय विज्ञप्तिमिति सोऽकरोत् / त्वमाशु दीनसंस्त्याय-मधुना मुश्च मां प्रति // 35 // ___ अर्थ:-तेवु प्रसन्न चित्त जाणीने मृगांके विनंति करो के, हवे आप आ दीनने जवा माटे तुरत छोडी मुको ? // 35 // अहं यावत् चिरंजीवी त्वां न मुञ्चामि तावतः। मन्तुमन्दिरमध्यस्थं दुष्टधीधनधारकम् // 36 // " HA PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 51 // ____ अर्थः-(सहस्रांके कीधुं के) दुष्ट बुद्धिवाळा अने मारा अपराधरुपी पांजरामां पूरायेला तने हुं जीवीश त्यांसुधी / छोडीश नहि. // 36 // || चरित्रम् मत्पदोर्यदि त्वं श्रेष्ठिन् ! शोषयेघृतसत्पलम्। सदा त्वां सादरात्सद्यो मुश्चामि ग्रामबन्धनात् // 37 // ||86644 ___ अर्थः-वळी हे शेठ ! जो तुं एक पळी घी मारे पगे चोळी आप तो हुँ तने आदरथी तुरतज ग्राम-बंधनथी छोडं. अङ्गीचकार स श्रेष्ठी पूर्वं यद् भणितं वचः। पश्चात् शय्यां महारम्यां सुप्तो हि प्रति शौल्किकः // 38 // ___ अर्थः-आ वचन शेठे अंगीकार कर्यु एटले सहस्रांक मनोहर शय्यामा सुतो. // 38 // . . ततः परं मृगाको हि चकार घृतमर्दनम् / इतः तवतस्तन्द्रा शौल्किकेन कृता परा // 39 // . .. अर्थः-अने मृगांक घीथी मर्दन करवा लाग्यो, दरम्यान (सहस्रांक) कपट-निद्राथी सुइ गयो. // 39 // | पदस्पर्शवशादाज्यं विग्यरितं च भाजने / अथ शोषमुपैति न मृगाङ्केनेति चिन्तितम् // 40 // ____ अर्थः-पगना स्पर्शथी घी उनुं थवा लाग्यु पण शोषाय नहिं, तेथी मृगांके विचायु के, // 40 // घोरनिद्रावशीभूतं ज्ञात्वा शौल्किकमुद्धतम् / पश्चाद् मृगाङ्कवेष्ठिना दत्तमाज्यं मुखे भृशम् // 4 // // अर्थः-आ दाणनो अधिकारी घोरनिद्रामा छे एम जाणीने शेठे ते घी पोताना मोढामां मुकी दीधुं. // 41 // // 1 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // MI सहसाड्रेन सद्यस्कं ततः क्रोधेन जल्पितम् / रे! रे! रङ्क महारङ्क ! जठरस्यैव पूरकः // 42 // मृगांक . अर्थः-त्यारे सहस्रांके क्रोध करीने कीधुं के अरे रंक! महा रंक ! तुं तो पेटभरोज छे. // 42 // // 52 // बध्वाञ्जलिं मृगाको हि जल्पति प्रतिदुःखतः। तेऽहं महापराधीनो यथा रुचिस्तथा कुरु // 43 // . अर्थ:-हाथ जोडी मृगांक दुःखथी बोल्यो के हुं आपनो महान् अपराधी छु तो आपने योग्य लागे तेम करो? // 43 // सहसांकस्तदा जातः पद्मावती मनोहरा / रचयित्वा च शृङ्गारं नवसतादिकमद्भतम् // 44 // यतः ___ अर्थः-बाद सहस्रांक पण शोळे शणगार सजीने मनोहर पद्मावतीरूपे थयो. // 44 // कयु छ केteam आदौ मजनचारुचीरतिलकं नेत्राञ्जनं कुण्डले। नासामौक्तिकपुष्पहारधवलं झंकारको नपुरौ॥ अङ्गे चन्दनलेपकं कुचमणिः क्षुद्रावली घण्टिका। ताम्बूलं करकंकणं चतुरता शृङ्गारकाः षोडश॥४५॥ * अर्थः-प्रथम नहावं, सारां लुगडां, तिलक, आंखमां अंजन, बे कुंडलो, नाकमां मोती, पुष्पनो हार, बे झांझरो, अंगे चंदननो लेप, कांचळी, नानी नानी घुघरीओ, नागरवेलनां पान, हाथमां कंकण अने चतुराइ ए शोळ शणगार स्त्रीओना छे. पश्चात्प्रणम्य सा बाला मृगांकमिति जल्पिवान्। तेऽहं महापराधीनी पादोपानहसदृशी // 46 // // 52 // " . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पगनी मोजडा मृगांक चरित्रम् . // 53 // अर्थः-पछी ते बाळाए मृगांकने प्रणाम करीने कीg के हुँ आपनी मोटी अपराधिनी छु अने तमारा पगनी मोजडी || जेवी छु. // 46 // परस्परं स्ववृत्तान्तं श्रुत्वा सन्तोषमापतुः / नृपोऽप्येति प्रवृत्तिं च श्रुत्वा हर्षमुपागतः॥४८॥ .. ___ अर्थः-वाद परस्पर पोतपोतानुं वृत्तांत सांभळीने तेओ हर्षित थया, अने राजा पण आ हकीकत सांभळीने खुशी थयो. हर्षेण तो सुखं पश्चाद् भोजयामासतुर्मिथः / नृपेण चिन्तितं चित्ते सुतां ददामि संप्रति // 49 // __ अर्थः-अहिं तेओ हर्षपूर्वक सुख भोगववा लाग्या, बाद राजाए विचार्य के हवे हुँ आने मारी पुत्री आपुं. // 49 // धराधीशेन पुत्री सा समं तेन विवाहिता। अर्द्धराज्यं च रत्नानि स्वर्णानि च ददो ततः // 50 // अर्थः-त्यारपछी राजाए पोतानी पुत्रीने मृगांक साथे परणावी अने रत्न, सुवर्ण सहित अर्ध राज्य आप्यु. // 50 / / | दिनानि कयपि स्थित्वा वाराणसी चचाल सः / प्रातं च तत्पुरं रम्यं स्तोकैरेव दिनैरपि // 51 // अर्थः-त्यां केटलाक दिवसो रहीने ते मृगांककुमार वाराणसी नगरी प्रत्ये चाल्यो अने थोडा दिवसमा ते मनोहर नगरीमा आव्यो. // 5 // | मातृपित्रोः पदद्वन्द्वं नत्वा नत्वाऽतिरागतः / चकार मिलनं पश्चात् मृगांको हि परस्परम् // 52 // // 53 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक - चरित्रम् // 54 // ___ अर्थः - त्यां मात-पिताना चरण-कमलने अति प्रेमथी नमीने मृगांके परस्पर मिलन कराव्यु. / / 52 / / स्ववेश्मनि सुखं भुञ्जन् श्रेष्ठः कुसुमसारसूः / तस्थिवान् ललनाद्वन्द्वैः संयुतः स्नेहभाजनैः // 53 // अर्थः-कुसमसार शेठनो पुत्र मृगांककुमार स्नेह करवाने योग्य एवी बन्ने स्त्रीओ साथे पोताना महेलमां सुख भोगवतो थको रह्यो. // 53 // इतश्च. तस्यां वाराणस्यां मकरध्वजो नृपः / वर्तते विश्वविश्वेशः पुत्ररत्नविवर्जितः // 54 // यतः- अर्थः-ते अरसामां वाणारसी नगरीमा जगत्पति एवो मकरध्वज नामे राजा पुत्ररहित हतो. // 54 // केमके ... घरअंगणंमि मसाणं जत्थ न दीसंति धूलिधूसरच्छायं / - अडंति पडंति रडतडाइं दो तिन्नि डिंभाइ न दोसंति // 55 // अर्थ:-जे घरना आंगणामां बे-त्रण छोकरा रखडतां, पडता रडतां अने धूळथी आच्छादित थतां देखातां नथी ते घर | मसाण जेवु देखाय छे. // 55 // एकोऽपि यः सकलकार्यविधी समर्थः, सत्वाधिको भवति किं बहुभिः प्रसूतैः / तारागणः समुदितोऽप्यसमर्थ एव, चन्द्रः प्रकाशयति दिग्मुखमण्डलानि // 56 // // 54 // // BP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् // 55 // ___ अर्थः-सघळां कार्यमा दक्ष अने सत्त्ववान एक पुत्र पण घणा पुत्रो करतां सारो, केमके असमर्थ एवा ताराओना || समूह करतां एकज चंद्र दिशाओने प्रकाशित करे छे. // 56 // तेन राज्ञा मृगास्य वृत्तान्तो मूलतः श्रुतः। तदेति चिन्तितं चित्ते मत्पुत्रीशो भवत्वयं // 57 // ___ अर्थः-ते राजाए मृगांकनुं वृत्तांत अथथी इति सुधी सांभळीने मनमां चिंतव्यु के आ मारी पुत्रीनो पति थाय तो सारु, विचिन्त्येनि नृपेणैव स्वराज्यं च निजां सुताम् / अत्याडम्बरतो दत्वा स्वयं हि व्रतमाददे // 58 // ___ अर्थः- एम विचारीने राजाए पोतानुं राज्य पुत्रीसहित घणा आडंबरपूर्वक मृगांकने देइने पोते व्रत अंगीकार कर्यु पश्चान्मृगाङ्कभूपालः पालयामास राज्यतां / अनेकभटसन्दो हैः संयुतः सारविक्रमः // 59 // , अर्थः-बाद मृगांकभूपाल पण पराक्रमी एवा अनेक सामंतोथी परिवर्या थका राज्य करता हवा. // 59 // कियत्यपि गते वर्षे ग्रामोपान्तवनान्तरे। आगता मतिपूर्णाश्च मतिसागरसूरयः // 60 // _____ अर्थ:-केटलाक वर्षों व्यतीत थये ते नगरीना वनमा पूर्ण मतिवाळा मतिसागर नामे सूरीश्वर पधार्या. // 6 // तदेत्युक्तं वनाधीशैर्गत्वा मृगाःसन्निधौ / उत्तरिता वने सन्ति मतिसागरसूरयः // 61 // अर्थः-त्यारे वनपाले मृगांकभूपाल पासे आवीने कयु के वनमां मतिसागर नामे सूरिमहाराज आवेला छे. // 61 15 // P.P.AC. Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मांक | तत्श्रुत्वा हृष्टमनसा मृगालेनैव सत्वरम् / दत्तानि वनपालाय वस्त्राणि भूषणानि च // 62 // | चरित्रम् ___ अर्थ:-ते सांभळीने हर्षित थयेलुं छे मन जेनुं एवा मृगांकभूपाले तुरतज वस्त्र अने आभूपणो वनपालने आप्या. || // 56 // ततश्चचाल तत्स्थानात भूपालोऽद्भुतभावतः। संयुतः सर्वलोकांपैर्वन्दित्वा निषसाद सः // 63 // ___ अर्थ:-त्यारबाद मृगांकभूपाल अति भावथी अने घणा लोको सहित त्यां जइने भूरिमहाराजने वांदीने यथास्थाने बेठो. / / 63 // पश्चात्सूरिमहारम्या-मारेभे धर्मदेशनाम् / श्रोत्रयोः सुखदां नित्यं भव्याम्भोरुहभासिनीम् // 64 // ___ अर्थः-बाद सूरिमहाराजे पण उत्तम, कर्णने सुख आफ्नारी अने भविकजनरूपी कमळने विकसावनारी धर्म-देशना आपवा मांडी. // 64 // देशनान्ते मृगाङ्गोऽपि पप्रच्छ स्वामिनं प्रति। कथं लब्धा गता लक्ष्मीः पुनः प्राप्तेति कारणं // 65 // ___ अर्थः-देशना बाद मृगांकभूषाले सूरिमहाराजने पूछ्यु के शुं कारणथी मने मळेली. लक्ष्मी गइ अने पाछी फरीने ते प्राप्त थइ ? // 65 // खाम्यूचे भववृत्तान्तं पुरे गुणपुराभिधे / हंसपालाभिधो क्षत्री पत्नी लीलावती वरा // 66 // Jun Gun Aaradhak Trust || // 56 // P.P.AC. Sunratnasuri M.S. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // 57|| ___ अर्थः-त्यारे गुरुमहाराजे पण तेना पूर्वभवतुं वृत्तांत कोई के-गुणपुर नामे नगरमां हंसपाल नामे क्षत्री रहेतो हतो, IL तेनी लीलावती नामे उत्तम स्त्री हती. // 66 // एकस्मिन् वासरे त्वं हि परदेशेषु जग्मिवान् / धनोपार्जनकार्यार्थ-मुत्कलाप्य मृगेक्षणाम् // 67 // __ अर्थः-एक दिवसे हंसपाल स्त्रीने कहीने धन उपार्जन करवामाटे परदेशमा गयो. // 67 // भ्रमितः सर्वदेशे त्वं नातं किंचिद् धनं त्वया। पश्चात् त्वं प्रतिसंस्त्यायं चलितः प्रेमप्रेरितः // 6 // ___ अर्थः-सर्व देशमा फर्यो, पण तेने क्यांय धन प्राप्त न थवाथी मेमथी मेरायेलो एवो ते पोताना घर तरफ पाछो वळ्यो. मार्गेऽप्यागच्छता दृष्टः श्वेतपुष्पलाशकः / तन्मुले खनिते आप्तं भाण्डं द्रव्यसमन्वितम् // 69 // __ अर्थः-मार्गगां चालतां तेणे धोळां पुष्पोवाळु खाखरानुं झाड दीखें, तेना मूळमां खोदवाथी द्रव्यथी भरेलुं एक ठाम मल्यु. / / 69 // क्रमेण सदने गत्वा कान्तायै भाण्डमर्पितम् / सा प्राप परमानन्दं विवेकविनयान्विता // 7 // __ अर्थः-अनुक्रमे पोताने घरे जइने स्त्रीने ते ठाम आप्यु तेथी तेणी पण विवेक अने विनयपूर्वक परम आनंदित थइ. तया हि परमान्नं च कृतं भोजनमुत्तमम् / तस्मिन् मासोपवासी चा-जगतः सद्मनि पुण्यतः॥॥॥५॥ P.P.Ac, GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक - // 58 // अर्थ:-तेणीए दूधपाकनु उत्तम भोजन बनाव्यु, ते अरसामां तेमना पुण्योदयथी मासोपवासी साधु तेमने घरे || आवी चड्या. // 71 // ततो भूयोऽर्थयित्वा च प्रदत्तं क्षीरभोजनम् / पश्चादिति कुभावश्च जातो दत्तं मया वृथा // 72 // ____ अर्थः-त्यारे लीलावतीए वारंवार प्रार्थना करीने ते दूधपाक वोरावी दीधो. पाछळथी तेणीने कुमनोरथ थयो के में फोगट आ (उत्तम भोजन ) आपी दीधुं. // 72 // हंसपालेन तेनापि कुभाव इति चिन्ततः / धिक् कान्ते ! मां हि मुक्त्वा च प्रदत्तं भोजनं मुनेः॥ अर्थः- बाद हंसपाले पण कुमनोरथ चिंतवतां थकां कीधुं के हे भिया ! तने धिक्कार छे के मने मूकीने तें बधुं भोजन साधुने आपी दीधुं. // 73 // : .... पुनर्द्वन्द्वस्य सद्भावः समुत्पन्नः समं हृदि / इदं वयं कृतं कान्ते ! परस्परं प्रशंसतः // 74 // . अर्थ:-वळी फरीने बन्नेना हृदयमा सद्भाव आव्यो के हे पिया ! आ उत्तम काम थयुं, एम परस्पर प्रशंसा करवा लाग्या. सम्यक्त्वमूलमापन्नो क्रमेण गुरुसन्निधो / धर्मकृत्यान्वितो जातो द्वावपि सततं तदा // 75 // ____ अर्थ:-त्यारवाद अनुक्रमे ते बन्नेए गुरुपासेथी सम्यक्त्व अंगीकार कयु, अने बन्ने हमेशां धर्म-कृत्यमा तत्पर थया. " // 58 // P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक / ततस्तो च सुरागारे पालयित्वा निजायुषम् / जग्मतुर्दो सदाकारो पूर्वपुण्यानुभावतः // 76 // // .... अर्थ:- बाद ते बन्ने स्वायुः पूर्ण करीने पूर्व करेलां पुण्योदयथी देवलोकमां उत्पन्न थया. // 76 // .. // 59 // देवलोकान्मृगाङ्कत्वे-नोत्पन्नः श्रेष्टिनो गृहे / लीलावत्यपि संजाता श्रेष्ठिनः सदने सुता // 77 // .. अर्थः-देवलोकमांथी चवीने तुं (कुसुमसार ) शेठने घरे मृगांकपणे थयो, अने लीलावती पण श्रेष्टि-गृहे पुत्रीरूपे थइ. पूर्वरागेण सम्बन्धो मिलितो हि परस्परम् / पात्रदानात्सुखमाप्त-मसुखं तु कुभावतः // 78 // ___ अर्थः-पूर्वना रागथी तमारो संबंध परस्पर मल्यो, पात्र-दानथी सुख मल्यु अने कुमनोरथथी असुख प्राप्त थयु.॥७८॥ पुनः सुखं हि सद्भावात् संप्राप्तं वसुधाधिप ! / देशनामिति श्रुत्वा स धर्म चकार भावतः // 79 // . अर्थः-वळी हे राजन ! उत्तम भावथी फरीने मुख मल्यु. एवी रीतनी धर्म-देशना सांभलीने ते मृगांकभूपाल भावपूर्वक धर्मोद्यम करतो हवो. // 79 // .. जीर्णोद्धारप्रतिष्ठादि जिनबिम्ब-जिनालयम् / इत्यादिधर्मकृत्यानि चकार धरणीपतिः // 8 // ___ अर्थ:-जीर्णोद्धार, जिन-बिंब, जिन-प्रतिष्ठा अने जिन-मंदिर विगेरे धर्म-कृत्यो मृगांकभूपाल करतो हवो. // 8 // || एकस्मिन् समये च्युत्वा द्वादशे हि दिवालये / द्वावपि दुष्टसंसाराद् जग्मतुः सुखहेतवे // 81 // || // 19 // P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. मृगांक // 6 // . अर्थ:-समयांतरे मृगांकभूपाल अने तेनी सी आ दुष्ट संसारथी चवीने मुखमाटे बारमे देवलोके गया. // 81 // | चरित्रम् पुनः खर्गात् समागत्य भुक्त्वा च मानुषं भनं / मृगाको मुक्तिगेहे हि मानिन्या सह यास्यति // 2 // अथे:-वळी स्वगेथी चवीने मनुष्यभव भोगवीने मृगांकनो जीव स्त्री सहित मोक्षे जशे. // 82 / / / एवं विभाव्य भो भव्याः ! दानं दत्त सुभावतः / पात्रापात्रे यथा शक्त्या निदानं सुखसन्ततः // अर्थः-ए प्रमाणे जाणीने हे भव्य लोको! पात्रापात्रनो विचार करीने शक्ति प्रमाणे सुख-संततिना कारणभूत एवं दान सद्भावथी आपq / / 83 // श्रीमत्तपगणगगने गगनमणिविजयसेनसूरीशः / तस्यानुक्रमपट्टे गुरुर्विजदेवसूरिवरः // 84 // ' अर्थ:-श्रीमत्तपागच्छरूपी आकाशमां सूर्यसमान विजयसेनसूरीश्वर नामे आचार्य थया, तेनी पाटे अनुक्रमे विजयदेवसूरीश्वर थया. // 84 // तद्गच्छे सततं जयन्तु सुखदाः श्रीभानुचन्द्राश्चिरम् / षण्मासाऽभयदायकाः क्षितिपतिं दिल्लीपति पेशलम् // सदाग्भिः प्रतिबोध्य शास्त्रजलधेः पारंगता भूतले। तीर्थेशाऽकरकारका गतगदाः प्राग्भा // // 60 // रपुण्योत्कराः // 5 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक चरित्रम् // 6 // :-तेमनी पाटे उत्तम एवा दिल्लीपति ( अकबर ) ने मनोहर वाणीथी बोधीने छ मासमधि अमारी पळावनार, शास्त्ररूपी समुद्रनो पार पामेला, पृथ्वीपर रहेला तीर्थोना करने छोडावनारा, गया छे रोगों जेना अने महोटा पुण्यना उत्क-! र्षने करवावाळा तेमज सुख आपनारा श्री भानुचंद्रोपाध्याय हमेशां जयवंता वर्तो ? / / 85 // .. .. "तस्य वर्यपदाम्भोज-शिलीमुखानुकारिणा / सपर्यासक्तचित्तेन ऋद्धिचन्द्रेण निर्मितम् // 86 // अर्थः-तेमना उत्तम एवा चरणकमळमां आसक्त चित्ते भ्रमरचं अनुकरण करनार श्री ऋद्धिचंद्र (महाराजे ) आ|| चरित्र रच्यु. // 86 // इदं विश्वे प्रसिद्धस्य भावांम्मोरुहभाखतः / सच्चरित्रं मृगाङ्कस्य श्लोकाभ्यासनहेतवे // 87 // __ अर्थ:-आ जगत्मसिद्ध एबुं अने भावरूपी कमळने विकसावनारुं श्री मृगांकनुं चरित्र श्लोकना अभ्यास माटे बनाव्यु. पण्डितव्राजकोटी रैरुदयचन्द्रधीधनैः। शुद्धीकृतमिदं सम्यक् चरित्रं चित्तसात्कृतम् // 8 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगांक // अर्थः-पंडितोना समूहमा मुकुटसमान, बुद्धिरूपी धनवाळा एवा श्री उदयचंद्र (महाराजे ) चित्तने शांत करनारं आ || चरित्रम् चरित्र सम्यकप्रकारे शुद्ध कयु छे. // 88 // // इति श्री मृगाङ्कचरित्रं सार्थ समाप्तम् // // 62 // आ ग्रंथनी मूळ प्रति तथा अर्थनी एक चोपडी मुनिमहाराज श्रीविनोदविजयजीना शिष्य मुनिश्री वीरविजयजी महाराज पासेथी मळेल तेथी तेमनो आभार मानी ते उपरथी यथामति अर्थ करीने प्रत आकारे अमारा "सूर्योदय पिन्टिंग प्रेस-जामनगर"मां स्वपरना श्रेयाथै छापी प्रसिद्ध कर्यो छे.॥ श्रीरस्तु / ली. विठलजी हीरालाल हंसराज.. // // 6 // . P.PAC.Gunratnasuri M.S. Jun Sun Aaradhak Trust Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ge o teo 25636636736************ // इति श्री मृगांकचरित्रं साथ समाप्तम् // REFENCE SORRECTOCOCKINCEST-KOREGLECRECORRECICC PARMAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust