________________ मृगांक // 48 // - दुग्धं गोधूमचूर्ण घृतगुडसहितं नालिकेरस्य खण्ड, द्राक्षा-खजूर-सुण्ठि-तज-मरिचयुतं / पेशलं नागपुष्पम् / पक्कं ताने कटाहे तलवितमतुलं पावके मंदकान्तो, धन्या हेमंतकाले प्रचुरघृतयुता भुञ्जतेलापनश्रीः॥ 22 // अर्थः-दूध, घउंनो लोट, घी, गोळसहित नालीएरनुं खमण, द्राक्ष, खजुर, सुंठ, तज, मरी अने नागकेसरना पुष्पोए करी युक्त, नथी देखातुं तळं जेनुं एवी तांबानी कडाइमां मंदाग्निथी पकावेली अने घणा घीथी युक्त लापसी हेमंतऋतुमा जे माणसो खाय छे ते माणसो धन्य छे. / / 22 // निर्मलक्षीरसत्खण्ड-प्राज्याज्यपूर्विकान्वितम् / प्रविष्टाऽन्धो-विदालिभ्यां राजितं दोषवर्जितम् // ___ अर्थः-निर्मल क्षीरथी साफ करेल छे खांड तथा घीथी परिपूर्ण करेल छे एवा मालपुडा, मीठो भात तथा चडी दाळ | विगेरे दोषवर्जित रसोइथी तेने रंजित कर्यो. // 23 // इत्थम्भूते मनोज्ञे च क्रियमाणे सुभोजने / पूर्वः स्वादस्तदा प्राप्तः मृगाङ्केनाऽतिबुद्धिना // 24 // ___ अर्थः-एवी रोतर्नु उत्तम भोजन करवाथी बुद्धिशाली मृगांकने प्रथमना वखतनो स्वाद आन्यो. // 24 // // तेनास्वादेन चित्ते च कुमारोऽवगमत्तदा / इयं पद्मावती चास्ति किंवा नास्ति च वल्लभा // 25 // // 48 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust