________________ मृगांक // 16 // ततश्चचाल पोतस्थो भृगाको जलवम॑नि / क्रीडां कुर्वन् तया सार्धमनेकगुणसंयुतः // 71 // || __ अर्थः-अने जल-मार्गमां गुणवान् एवो मृगांककुमार पद्मावतीनी साथे विविध प्रकारनी क्रीडा करतो आगळ चाल्यो. क्रमेण राक्षसद्वीपं तरण्डः प्राप तस्य सन् / तं द्रष्टुं रक्षितस्तत्र मृगालेनैव लीलया // 72 // ___ अर्थः-अनुक्रमे ते वहाण राक्षसद्वीप आगळ आव्यु, त्यां सहेज जोवा माटे मृगांककुमारे वहाणने थोभाव्यु // 72 // उत्तेरुः पोततः सर्वे चक्रुः कार्याणि ते जनाः / केचिद् गीतानि गायन्ति केचित् क्रीडन्ति निर्भरम् // ___अर्थः-वहाणमांथी बधा माणसो उतर्या, तेमां कोइ गीतो गावा लाग्या, कोइ स्वेच्छापूर्वक क्रीडा करवा लाग्या, अर्थात् सर्व माणसो इच्छानुसार कार्यो करवा लाग्या. // 73 / / / आनयन्ति जलं केचित् केचित् कुर्वन्ति भोजनम् / केचित् स्नानं प्रकुर्वन्ति दीर्घिकासु विशेषतः // __ अर्थः-कोइ जल लाव्या, कोइ भोजन करवा लाग्या, कोइ वावमा विशेष प्रकारे स्नान करवा लाग्या. // 74 // केचिद् बन्धून् समाहूय दर्शयन्ति च कौतुकम् / इत्यादिक्रीडया सर्वे तिष्ठन्ति तत्र निर्भयम् // 75 // ___ अर्थः-कोइ मित्रोने बोलावीने कौतुक बताववा लाग्या, इत्यादि क्रीडाओ करता सर्वे माणसो भयरहित थया थका त्यां रह्या. // 75 // ... // 16 // P.P.A. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust