________________ मृगांक // 22 // वने रणे शत्रुजलाऽग्निमध्ये, महार्णवे पर्वतमस्तके वा / चरित्रम् सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा, रक्षन्ति पुण्यानि पुराकृतानि // 99 // अर्थः-वनमां, रणमां, शत्रुओमां, जलमां, अग्निमां, मोटा समुद्रमां, पर्वतना शिखर उपर सुतेलाने, प्रमाद करनारने, दुस्सह स्थितिमा रहेलाने पूर्वे करेलां पुण्य-कार्यो रक्षण करे छे. // 99 // अतो बबन्ध सा बाला पर्वतोपरि सद्ध्वजम् / विदृश्यैनं यतः कोऽप्यत्रागच्छति वजन्पथि // 10 // _ अर्थः-हवे ते पद्मावतीए त्यां पर्वतपर एक ध्वजा बांधी, केमके ते जोइने रस्ते चालतो वटेमा कोइ आवे. // क्रमेण कोऽपि तन्मार्गे गच्छंश्च व्यावहारिकः। ध्वजं दृष्ट्वा च तद्द्वीपे तरण्डो रक्षितस्ततः // 1 // ___ अर्थः-अनुक्रमे ते मार्गे कोइ व्यवहारी जतो हतो तेणे ध्वजा जोइने त्यां वहाण थोभाव्यु. // 1 // उत्तीर्य वणिजां मुख्यो जवात् तत्र नगे गतः / अर्हद्भक्तिपरां बालां ददर्श रूपसुन्दरीम् // 2 // ___अर्थः-तुरतज ते मुख्य वणिक् उतरीने पर्वतपर गयो, त्यां सुंदर रुपवाळी एवी बाळाने अर्हद्भक्तिमां लीन थयेली दीठी. इति पप्रच्छ तां श्रेष्ठी त्वं तिष्ठसि कथं वने / देवी वा किन्नरो वा त्वं भद्रे कथय मां प्रति // 3 // अर्थः - तेणीने ते वणिके पूछ्यु के हे भद्रे ! तुं देवी छो, किन्नरी छो, अथवा कोण छो ? अने आ वनमा केम रहे || // 22 // छे ते तुं मने कहे ? // 3 // Jun Gun Padhak Trust R -RD.AC.Gunratnasuri M.S.