________________ पगनी मोजडा मृगांक चरित्रम् . // 53 // अर्थः-पछी ते बाळाए मृगांकने प्रणाम करीने कीg के हुँ आपनी मोटी अपराधिनी छु अने तमारा पगनी मोजडी || जेवी छु. // 46 // परस्परं स्ववृत्तान्तं श्रुत्वा सन्तोषमापतुः / नृपोऽप्येति प्रवृत्तिं च श्रुत्वा हर्षमुपागतः॥४८॥ .. ___ अर्थः-वाद परस्पर पोतपोतानुं वृत्तांत सांभळीने तेओ हर्षित थया, अने राजा पण आ हकीकत सांभळीने खुशी थयो. हर्षेण तो सुखं पश्चाद् भोजयामासतुर्मिथः / नृपेण चिन्तितं चित्ते सुतां ददामि संप्रति // 49 // __ अर्थः-अहिं तेओ हर्षपूर्वक सुख भोगववा लाग्या, बाद राजाए विचार्य के हवे हुँ आने मारी पुत्री आपुं. // 49 // धराधीशेन पुत्री सा समं तेन विवाहिता। अर्द्धराज्यं च रत्नानि स्वर्णानि च ददो ततः // 50 // अर्थः-त्यारपछी राजाए पोतानी पुत्रीने मृगांक साथे परणावी अने रत्न, सुवर्ण सहित अर्ध राज्य आप्यु. // 50 / / | दिनानि कयपि स्थित्वा वाराणसी चचाल सः / प्रातं च तत्पुरं रम्यं स्तोकैरेव दिनैरपि // 51 // अर्थः-त्यां केटलाक दिवसो रहीने ते मृगांककुमार वाराणसी नगरी प्रत्ये चाल्यो अने थोडा दिवसमा ते मनोहर नगरीमा आव्यो. // 5 // | मातृपित्रोः पदद्वन्द्वं नत्वा नत्वाऽतिरागतः / चकार मिलनं पश्चात् मृगांको हि परस्परम् // 52 // // 53 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust