Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 56
________________ मृगांक चरित्रम् // 55 // ___ अर्थः-सघळां कार्यमा दक्ष अने सत्त्ववान एक पुत्र पण घणा पुत्रो करतां सारो, केमके असमर्थ एवा ताराओना || समूह करतां एकज चंद्र दिशाओने प्रकाशित करे छे. // 56 // तेन राज्ञा मृगास्य वृत्तान्तो मूलतः श्रुतः। तदेति चिन्तितं चित्ते मत्पुत्रीशो भवत्वयं // 57 // ___ अर्थः-ते राजाए मृगांकनुं वृत्तांत अथथी इति सुधी सांभळीने मनमां चिंतव्यु के आ मारी पुत्रीनो पति थाय तो सारु, विचिन्त्येनि नृपेणैव स्वराज्यं च निजां सुताम् / अत्याडम्बरतो दत्वा स्वयं हि व्रतमाददे // 58 // ___ अर्थः- एम विचारीने राजाए पोतानुं राज्य पुत्रीसहित घणा आडंबरपूर्वक मृगांकने देइने पोते व्रत अंगीकार कर्यु पश्चान्मृगाङ्कभूपालः पालयामास राज्यतां / अनेकभटसन्दो हैः संयुतः सारविक्रमः // 59 // , अर्थः-बाद मृगांकभूपाल पण पराक्रमी एवा अनेक सामंतोथी परिवर्या थका राज्य करता हवा. // 59 // कियत्यपि गते वर्षे ग्रामोपान्तवनान्तरे। आगता मतिपूर्णाश्च मतिसागरसूरयः // 60 // _____ अर्थ:-केटलाक वर्षों व्यतीत थये ते नगरीना वनमा पूर्ण मतिवाळा मतिसागर नामे सूरीश्वर पधार्या. // 6 // तदेत्युक्तं वनाधीशैर्गत्वा मृगाःसन्निधौ / उत्तरिता वने सन्ति मतिसागरसूरयः // 61 // अर्थः-त्यारे वनपाले मृगांकभूपाल पासे आवीने कयु के वनमां मतिसागर नामे सूरिमहाराज आवेला छे. // 61 15 // P.P.AC. Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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