Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक // चरित्रम् // 50 // ___अर्थः-" आ शेठने उंचे टांगो अने मारो" एवी बीक मोढेथी वारंवार आपवा लाग्यो. // 30 // नृपेण निजकर्णान्ते एतत्सर्वं यदा श्रुतम् / मुञ्चापितश्च वेगेन मृगाङ्कः कृपया तदा // 31 // ___ अर्थः - राजाना कर्णसुधी आ वात ज्यारे पहोंची त्यारे तुरतज मृगांकने दया लावीने छोडाव्यो. // 31 // नृपस्य वचनान्मुक्तो मुत्कलो व्यावहारिकः। प्रतिज्ञामिति निश्चित्य न गन्तव्यं मया विना // 32 // ___ अर्थः-राजानी आज्ञाथी छुटा करेला ते शेठ साथे एवी प्रतिज्ञा करावी के मारा विना तारे (क्यांय) जq नहिं. // 32 // दासो भूत्वा मृगाको हि स दैन्यमदधत् तदा। अन्यत्कृत्यानि नीचानि चकार सोऽपि सर्वदा // 33 // अर्थः-मृगांक पण दीनपणे सेवक थइने रह्यो अने बीजां हलकां काम पण हमेशां ते करवा लाग्यो. // 33 // एकस्मिन् दिवसे श्रेष्ठी करौ नियोज्य संस्थितः। शौल्किकेन तदा दृष्टो नयनोत्पन्नरागतः // 34 // अर्थः-एक दिवसे हाथ जोडीने ते शेठ उभो, त्यारे दाणना अधिकारीए तेना तरफ राग-मिश्रित नयनोथी दृष्टी करी. प्रसन्नचित्तं विज्ञाय विज्ञप्तिमिति सोऽकरोत् / त्वमाशु दीनसंस्त्याय-मधुना मुश्च मां प्रति // 35 // ___ अर्थ:-तेवु प्रसन्न चित्त जाणीने मृगांके विनंति करो के, हवे आप आ दीनने जवा माटे तुरत छोडी मुको ? // 35 // अहं यावत् चिरंजीवी त्वां न मुञ्चामि तावतः। मन्तुमन्दिरमध्यस्थं दुष्टधीधनधारकम् // 36 // " HA PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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