Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 53
________________ // MI सहसाड्रेन सद्यस्कं ततः क्रोधेन जल्पितम् / रे! रे! रङ्क महारङ्क ! जठरस्यैव पूरकः // 42 // मृगांक . अर्थः-त्यारे सहस्रांके क्रोध करीने कीधुं के अरे रंक! महा रंक ! तुं तो पेटभरोज छे. // 42 // // 52 // बध्वाञ्जलिं मृगाको हि जल्पति प्रतिदुःखतः। तेऽहं महापराधीनो यथा रुचिस्तथा कुरु // 43 // . अर्थ:-हाथ जोडी मृगांक दुःखथी बोल्यो के हुं आपनो महान् अपराधी छु तो आपने योग्य लागे तेम करो? // 43 // सहसांकस्तदा जातः पद्मावती मनोहरा / रचयित्वा च शृङ्गारं नवसतादिकमद्भतम् // 44 // यतः ___ अर्थः-बाद सहस्रांक पण शोळे शणगार सजीने मनोहर पद्मावतीरूपे थयो. // 44 // कयु छ केteam आदौ मजनचारुचीरतिलकं नेत्राञ्जनं कुण्डले। नासामौक्तिकपुष्पहारधवलं झंकारको नपुरौ॥ अङ्गे चन्दनलेपकं कुचमणिः क्षुद्रावली घण्टिका। ताम्बूलं करकंकणं चतुरता शृङ्गारकाः षोडश॥४५॥ * अर्थः-प्रथम नहावं, सारां लुगडां, तिलक, आंखमां अंजन, बे कुंडलो, नाकमां मोती, पुष्पनो हार, बे झांझरो, अंगे चंदननो लेप, कांचळी, नानी नानी घुघरीओ, नागरवेलनां पान, हाथमां कंकण अने चतुराइ ए शोळ शणगार स्त्रीओना छे. पश्चात्प्रणम्य सा बाला मृगांकमिति जल्पिवान्। तेऽहं महापराधीनी पादोपानहसदृशी // 46 // // 52 // " . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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