Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 21
________________ // चरित्रम् मृगांक || बभूव सावधाना सा प्रसरच्छीतवायुना / तदेव स्वाञ्चले दृष्ट्वा लेखान्वितकपर्दकान् // 90 // ___ अर्थः-बाद शीतल वायुथी तेणी सावधान थइ त्यारे पोताना कपडाने छेडे लेख सहित कोडीओ दीठी. // 9 // // 20 // वाचयामास तल्लेखं पद्मावती वने स्थिता / प्रत्युवाचेति भर्तारं युक्तः कोपोऽत्र ते न भोः!॥९१॥ . अर्थः-ते पत्र पद्मावतीए त्यां वनमांज वांच्यो, अने भर्तारने उद्देशीने बोली के अरे ! आवी रीते कोप करवो युक्त नहोतो ! // 91 / / उत्तमैन कदा कार्य योषितां वनमोचनम् / विललाप स्थिता तत्र सीतेवाऽरण्यमध्यगा // 92 // अर्थः-केमके उत्तम माणसोए स्त्रीने वनमा मूकी देवी न जोइए. एम विलाप करती सीतानी पेठे अरण्यमां तेणी रही. भवतु तव कल्याणं त्वं मां मुक्त्वा गतः परम् / इत्याशीः प्रददो श्रेष्ठिनन्दनी निजवल्लभम् // 13 // अर्थः-त्यां रही थकी पदमावती पोताना पतिने संभारीने आशीष आपवा लागी के आप मने मूकीने गया, तो पण आपर्नु कल्याण थाओ ? / / 93 // . भविष्यतीह त्वत्सङ्गो मया साधं यदा धव! / तदाहं तव दास्यामि कांचित् शिक्षां च निश्चितम् // ____ अर्थ:-वळी हे स्वामिन् ! ज्यारे आपनी साथे हुँ मळीश त्यारे खरेखर काईक पण आपने शिक्षा करीश // 9 // // // 20 // KumAPP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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