Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ ___ अर्थः-सासरेथी सर्व सुख गयु, पीयरमां मान गयुं, पति विनानी स्त्री ज्या जाय त्यां रान (अर्थात् आधार रहित || जंगल जेवू ) छे // 86 // // 19 // हियडा ! झूर म मुष्टिकर झूरत नयणे हाणि / कवण सुणेस्यइ रानमां रोयुं कंठ पराण // 8 // ___ अर्थः-माटे हे हृदय ! हवे रोवु अने झुरवू नका, छे कारणके रोवाथी नयनने अने कंठने हानिज छे, आ निर्जन वनमां कोण सांभळशे? // 87 // दैवें कीधां दूरि दोहिलं केतुं आणीह / हीयडा करि संतोस करम लिख्युं फल पाई // 8 // यतः. अर्थ:-माटे हे हियडा ! दैवे वियोग कराव्यो एमां कोने ओलंभो दइए ? माटे संतोष राख कर्ममा लख्युं फळ मळे छे. / / 88 // केमकेउदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्निः / विकसति यदि पद्मं पर्वताग्रे शिलायां, न चलति विधिवशानां भाविनी कमरेखा // 89 // .. अर्थः-कदाच सूर्य पश्चिम दिशामां उगे, कदाच मेरु चलायमान थाय, कदाच अग्निमां शीतलता आवे, कदाच पर्व- / / तनी शिलामां पच उगे, पण विधिने वश एवी भावी कमरेखा चलायमान थती नथी.॥८९॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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