Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 37
________________ मृगांक .. अर्थः-हमणां तारे एक शून्य ओरडामां जइने निर्वस्त्र थइने रहेवू, अने ज्यारे हुं कहुं त्यारे आ अद्भुत प्रभाववालो || जडोचुटी तारे मुंघवी. / / 65 // . स नायिकां गृहे. क्षिप्त्वा कपाटं दत्तवान् ततः / पश्चात्सर्वाणि वस्तूनि मुषित्वा तस्करीऽवदत् // ___ // 36 // || | अर्थ:-ए प्रमाणे नायिकाने ओरडामा राखी माथे आगळीओ देइने सर्व वस्तुओ चोरी लेइने चोर बोल्यो के, // 66 // गन्धस्व गुटिकां वृद्धे ! इत्युक्त्वा तस्करो ययो। सापि वारत्रयं मूलीगन्धिताऽमृच्च रासभी // 17 // - अर्थ:-हे वृद्धा! ते गुटिकाने हवे सुंघ ? एम कहीने ते चोर चालतो थयो. तेणीए प्रणवार ते गुटिका मुंघवाथी / गडीरुपे थइ गइ. // 67 // प्रातःकालो यदा जातस्तदा दासी समागता | वृद्धां च रासभी दृष्ट्वा गत्वा राज्ञे न्यवेदयत // 6 // ___ अर्थ:--सवार थतां दासी आवीने जुए छे तो नायिकाने गधेडीरुपे जोइने तेणीए राजा पासे जइने निवेदन कर्य. / / .: / तत् श्रुत्वा सुभटाः सर्वे तस्मिन्पुरेऽपि हारिताः / तद् बीडकं हि केनापि चौरभीत्या च नाहतम् // 19 // अर्थ:-ते सांभळीने राजाए आखा नगरमा लश्कर गोठवी दीधुं, पण चोरनी बीकयो कोइए बीईं लीधुं नहि. // 69 // | चिन्तितमिति चौरेण कस्मिन् सुवासरे हृदि / अथानयामि भूपस्य पुत्रीमतीव सुन्दराम् // 7 // // 36 // Jun Gun Aaradhak Trust A PP.AC.Gunratnasuri M.S. MEMAIL

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