Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 42
________________ मृगांक // 4 || तथाप्येको रामः सकलमवधीद्राक्षसकुलं, क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे // 90 // | __अर्थः-लकाने जीतवी, चरणथी समुद्र तरवो अने रावण जेवा शत्रुने जीतवा माटे सहायक फक्त वांदरा हता. छतां // चरित्रम् // एक एवा रामे आखा रावणना कुळने हणी नाख्यु, माटे महान् माणसोनी क्रिया-सिद्धि सत्त्वमा रहेली छे, उपकरण (साधन) मां नहि. // 9 // घटो जन्मस्थानं मृगपरिजनो भूर्जवसनो, वने वासः कन्दाशनमपि च दुःस्थं वपुरिदम् / तथाऽप्येकोऽगस्त्यः सकलमपिबद् वारिधिजलं, क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे // 9 // ___ अर्थः-घट छे जन्मस्थान जेनु. मृग छे सहचारिओ जेना, भोज-पत्र छे वस्त्रो जेनां, वनमा छ वास जेनो, फळाहार छे जेनो तथा अत्यंत दुर्बल छे शरीर जेजें, एवो एक अगस्ति सघळं समुद्र-जल पी गयो, माटे महान माणसोनी सत्त्वमांज क्रियासिद्धि रहेली छे, उपकरणमां नहिं. // 91 // .. सुभटश्रेणिकोटीरः कुमारो नृपसन्निधौ / प्रत्यूषसमये गत्वा सद्यस्तावार्पयद् भृषम् // 92 // अर्थ:-बाद सहस्रांक घणा सुभटोथी परिवरेलो सवारे तुरतज राजापासे जइने (सर्व वस्तु ) अर्पण करतो हवो. // यत्तस्करेण तद्बामे गृहीतं वस्तु विश्रुतम् / तत्सर्वं जनतावृन्दैर्गृहीतं श्रीनृपाज्ञया / / 93 // R // 41 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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