Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ मृगांक चरित्रम् // 40 // अर्थः- कविता, ललना अने गीति पोतानी मेळे आवेलां सारां, पण बळजबरोथी मेळववामां आवे तो सरस होवा छतां || नीरस थइ जाय छे. // 85 // श्रुत्वा तद्वचनं चोरो भीमखड्गेन सत्वरम् / केशपाशं करे कृत्वा तां प्रहर्तुं समुत्थितः // 86 // अर्थ:-तेणीनुं ते वचन सांभळीने तुरतज चोरे तेणीनो चोटलो झालीने भयंकर खड्ग लेइने मारवा उठयो. // 86 // तद् दृष्ट्वा सहसाङ्कश्च खड्गं धृत्वा करेऽवदत् / तस्कर ! मां समागच्छ यदि त्वं बलवानसि // 7 // ___ अर्थ:-ते जोइने सहस्रांक पण तलवार हाथमा लेइने बोल्यो के हे चोर ! तुं जो बलवान छे तो मारा सामे आव ? // श्रुत्वा विमुच्य तां चौरो, गतः कुमारसन्निधो / कुमारचौरयोयुद्ध-मभूत्तत्र भयङ्करम् // 8 // ____ अर्थ:-ते सांभळीने चोर तेणीने मूकीने सहस्रांकसामे गयो, अने त्यां तेओ बन्ने बच्चे भयंकर युद्ध थयु. / / 88 // दृढं बद्धः कुमारेण तस्करो बलवानपि / करग्रहीतनिस्त्रिंशः सत्त्वात् किं लभते न हि ? // 89 // यतः___ अर्थः-चोर बळवान हतो तेने पण सहस्रांके दृढ बांध्यो, कारण के सत्त्ववान अने हस्तमा राखेल छे तलवार जेणे ए शुं नथी मेळवी शकतो? // 89 // कबुं छे केविजेतव्या लङ्का चरणतरणीयो जलनिधिविपक्षः पौलस्त्यो रणभुवि सहायाश्व कपयः। // 40 // ..P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64