Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक. // 38 // | पुनरूचे नृपस्याग्रे सहसाङ्कः खबुद्धिना। चौरस्य बन्धनं कृत्वा-नेिष्यामि हि तवात्मजाम् // यतः चरित्रम् ____ अर्थः-वळी ते सहस्रांके बुद्धिपूर्वक राजाने कीधुं के ते चोरने बांधोने तारो पुत्री सहित खरेखर लावू छु. // केमकेयस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् / वने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः॥७६ // - अर्थ:-जेनी पसे बुद्धि-बल छे तेज खलं बल छे. बुद्धि रहितने बल क्याथी होय ? कारण के वनमा मदोन्मत्त एवा सिंहने पण शीयाळे ( कुवामां ) पाडयो. // 76 // उद्यमः साहसं धैर्य बलं बुद्धिपराक्रमम् / षडेते यस्य विद्यन्ते, तस्य देवोऽपि शङ्कते // 77 // ___ अर्थः-वळी उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि अने पराक्रम, ए छ जेना पासे छे तेनाथी देवताओ पण शंकित रहे छे.॥ उदित्वेति कुमारस्तं स्वसदने समागतः। प्रत्युद्घाट्य स्वभण्डारान् प्रच्छन्नः संस्थितो निशि // 7 // ____ अर्थः-ए प्रमाणे राजाने कहीने ते सहस्रांके पोताने स्थानके आवीने पोताना भंडारो उघाडा राख्या अने रात्रिए पोते गुप्तपणे उभो रह्यो. / / 78 // परविद्याविनाशनी स्मरन् चित्ते स हर्षितः। स्वकीयमदृश्यरूपं कृत्वा तत्र च तस्थिवान् // 79 // // an // अर्थः-अन्यनी विद्यानो नाश करवावाळी विद्या स्मरण करीने तथा पोतार्नु अदृश्य रुप करीने ते सहस्रांक उभो.॥ Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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