Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक चरित्रम् // 37 // ..अर्थ:-वळी कोइ सारे दिवसे चोरे विचार कर्यो के आ राजानी अति खुबसुरत एवी तेनी पुत्रीने लइ आ // 70 // // // मध्यरात्री समागत्य गृहीता नृपनन्दनी। गत्वा स्वसदने मुक्ता पुत्रीमतीव सुन्दराम // 71. // . ___ अर्थः-मध्य रात्रिए चोरे निर्भयपणे आवीने ते सुंदरतर राज-पुत्रीने लेइने पोताने घरे मूकी. // 71 // .. प्रातस्तस्या गृहे चेटी समायाता शुभानना। नो दृष्ट्वा तत्र तां बाला-मित्यवोचन्नृपान्तिके // 72 // . अर्थः-सवारे ते राज-पुत्रीना महेलमां सुंदर चहेरावाली दासी आवीने जुए छे तो तेणीने न जोवाथी. राजापासे आवीने ते दासीए निवेदन कयु. // 72 // वपुत्रीहरणं ज्ञात्वा पटहोद्घोषणं कृतम् / यो ह्यानयति मत्पुत्री लभते तो सलक्ष्मीकाम् // 73 // - अर्थ:--पोतानी पुत्री पण गुम थयाना खबर सांभळोने राजाए पटह वजडाव्यो के जे कोइ मारी पुत्रीने लावशे ते, ते कन्या लक्ष्मीसहित मेळवशे. // 73 // . . सहसाङ्केन तं श्रुत्वा गृहीतः पटहस्ततः / नृपते! स्मर जिनाधीश-मागच्छति यथा सुता // 4 // // अर्थ:-ते सांभळोने सहस्रांके बीहूं लीधुं अने कीधुं के हे राजन् ! जिनेश्वरमसुनु स्मरण कर के जेथी तारी // 37 // पुत्री आव.॥७४।। .. .... .. ...... . ... . . . ..... .. 6. .... ... // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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