Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक // 39 // | तस्मिन्नवसरे चौर आगत्य तस्य सद्मनि / सर्वेषामवस्वापिनी-निद्रा ददौ स निर्भयः // 8 // // अर्थ:-ते समये निर्भय एवा ते चोरे तेना मकानमां आवीने बधाने अवस्वापिनो निद्रा आपी. // 8 // कुमारविद्यया जाता-ऽवस्वापिनी च निष्फला। दृष्टं सर्व कुमारेण न च. चौरेण स पुमान् // 8 // ___ अर्थः-पण कुमारनी विधाथी अवस्वापिनी निद्रा निष्फल थवाथी सहस्रांक बधुं जोतो हतो पण चोरे तेने दीठो नहि.॥ ततः सर्वाणि वस्तूनि गृहीत्वा तस्करो वजन् / दृष्टस्तेन कुमारेण सोऽपि चचाल पृष्ठतः // 8 // ___ अर्थः-त्यारे सर्व वस्तुओ लेइने चोर चालवा लाग्यो ते कुमारे दीडं त्यारे ते पण तेनी पाछळ चालवा लाग्यो. // गुफामुद्घाट्य चौरोऽसौ धनं मुक्त्वा च तत्क्षणम् / इत्युवाच कुमारी तां भुंक्ष्व भोगान्मया सह // ___ अर्थः-चोरे गुफा उघाडीने अंदर धन मूकीने तुरतज राज-पुत्रीने कहेवा लाग्यो के मारी साथे भोग भोगव ? // 83 // चौरमचे कुमारी सा श्रुत्वेति वचनं कटु / बलात्कारेण सत्प्रीतिनों भवति कदाचन // 4 // यतः___ अर्थ:-ते कटुवाणी सांभळीने तेणीए चोरने कीई के कोइ दिवस बलात्कारथी सत्मीति थती नथी. // 84 // केमकेकविता वनिता गीतिः, स्वयमेवागता वरम्। बलादाकर्षमाणा हि सरसा विरसा भवेत् // 85 // / // 39 / / P.P.AC.Gunratnasuri-M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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