Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक // 46 // अर्थ-ते हुकमथी तेना नोकरोए मृगांकने मजबूत बांध्यो अने वहाणमाथी लँटीने ( सर्व वस्तु) घरे लाव्या. // 13 // || // चरित्रम् क्रोधेनाऽरुणमाकृत्य लोचनमवदत्पुनः / यष्टिमुष्टिप्रहारैश्चैनं मारयत भो जनाः! // 14 // ___ अर्थ:-क्रोधावेशथी लाल आंखो बतावीने सहस्रांक वारंवार कहेवा लाग्यो के अरे माणसो ! आ शेठने लाकडी मुष्टि विगेरे प्रहारथी मारो? // 14 // मम चित्ते महान्कोपो वर्त्तते भो विचक्षण! किं करोमि परं स्वामि-न्न मोक्ष्ये त्वामतः परम् // ___ अर्थ:-हे विचक्षण ! मारा हृदयमां अति कोप आव्यो छे तेथी शुं करूं के तने छोडी शकुं तेम नथी. // 15 // .. इत्युक्त्वा सहसाकोऽसो चचाल निजमन्दिरे ! पोतेश ! भोजनं रम्यं करिष्यसे हि मगृहे // 16 // अर्थः-एम कहीने सहस्रांके पोताने घरे चालवा जतां पूज्यु के हे वहाणपति ! तमो मारे त्यां मनोहर भोजन करशो ? // तेनोक्तं मांडवीनाथ ! वाञ्छितं कथितं त्वया। ततः सोऽपि च तत्साई भोजनाय गतः खलु // यतः__ अर्थः-शेठे कीधुं के हे दाणना अधिकारी ! बहु सारं, आपे योग्य की , एम कही शेठ पण तेना साथे भोजनमाटे गयो. // 17 // कयुं छे केअभिमतमहामानग्रन्थिप्रभेदपटीयसी, गुरुतरगुणग्रामाम्भोजस्फुटोज्ज्वलचन्द्रिका / // 46 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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