Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक चरित्रम् // 44 // // अर्थः-त्यारे सहस्रांकना नोकरे खवर आपी के कुसुमसारनो पुत्र मृगांककुमार अहिं आवेल छे. / / 4 // मृगाङ्ककुमरः सोऽप्युपायनं गृहीत्वा ततः / आगतो विनयं कुर्वन् गत्या तर्जितवारणः // 5 // ___ अर्थः-बाद ते मृगांककुमार भेटणुं लेइने हस्तिनी गतिने तिरस्कारतो विनयपूर्वक त्यां आव्योः // 5 // सहसाङ्कः स्वभर्तारं दृष्ट्वासनात्समुत्थितः। सन्मुखोऽपि गतस्तस्य विनयार्थं च शुद्धधीः // 6 // यतःअर्थ:-शुद्ध बुद्धिवाळो सहलांक पण पोताना भर्तारने जोइने विनयथी उठीने सामो गयो. // 6 // कबुं छे के केनाञ्जितानि नयनानि मृगाङ्गनानां, कश्चोत्पलेषु दलसञ्चयमातनोति ? / को वा करोति रुचिराङ्गरुहान् मयूरान्, को वा करोति विनयं कुलजेषु पुंसु ?. // 7 // अर्थ:-मगलीओनां नयनो कोणे आंज्यां छे ? कमळमां दळ-संचय कोणे कर्यो छे ? मयूरोना पीछाने कोण सुंदर बनावे छे ? अने सत्कुलमा उत्पन्न थयेला पुरुषोमां विनय कोण उत्पन्न करे छे ? (आ बधुं स्वतः सिद्ध होय छे कोइ करवा जतुं नथी) // 7 // विनयं राजपुत्रेभ्यः पण्डितेभ्यः सुभाषितम् / अनृतं यतकारेभ्यः स्त्रीभ्यः शिक्षेत कैतवम् // 8 // ____ अर्थः- राजपुत्रोथी विनय, पंडितोथी सद्वचनो, जुगारीओयी जुलु अने स्त्रीओथी कपट शोखाय छे. // 8 // // 44 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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