Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मग // 45 // इत्यूचे सहसाङ्कोऽसो कुसुमसारनन्दनम् | तवाननं निरीक्ष्याहं हर्षितः पूर्वरागतः // 9 // चरित्रम् - अर्थः-बाद कुसुमसारना पुत्र मृगांकने सहसांके की, के तारुं मुख जोइने पूर्वरागथी हुं हर्षित थाउं छु // 9 // तत्कारणाद् मया मुक्तं तवार्द्धदाणमेव च / त्वां वारयाम्यहं श्रेष्ठिन् ! न कार्या दाणतस्करी // 10 // - अर्थः-अने ते कारणथी हुँ तारु अर्ध दाण माफ कर छु, पण हे शेठ! हुं आपने स्पष्ट कहुं छु के दाण-चौरी करशो नहिं. // 10 // लेखं विलिख्य वस्तुनि जग्राह शौल्किकः शुभः। लिखनादधिकं पोते, दृष्ट्वा बभूव कोपभाक् // 11 // ___ अर्थ:-तेना कहेवा प्रमाणे सर्व वस्तुओ नोंधीने जगात लीधो, पण. लखाव्याथी वहाणमां वधारे वस्तुओ जोइने सहस्रांक कोपायमान थयो. // 11 // . सयेनं बन्धयध्वं च श्रेष्ठिनं दाणतस्करम्। शोल्किकश्च हि भो लोकाः! इत्यादिशत् समानुषान् // 12 // ___ अर्थः-अरे माणसो ! दाणचोरी करनार आ शेठने तुरतज बांधो ? एम ते दाणना अधिकारी सहस्रांके पोताना माण सोने हुकम कर्यो. // 12 // M दृढं बध्वा तदादेशाद् मृगाकं तस्य सेवकैः / खगृहे च समानीतं मुषित्वा तत्तरण्डकम् // 13 // ||| // 45 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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