Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 48
________________ // 47 // गा। विपुलविलसल्लज्जावल्लीवितानकुठारिका, जठरपिठरी दुष्पूरेयं करोति विडम्बनाम् // 18 // .. || . अर्थः -जेथी अभिमत मोटा मानरुप ग्रंथिना भेदनमां चतुर, अति मोटा गुणना समुदायरुप कमळने विकसित करवामां | उज्वल चंद्रिकासरखी, मोटी सुशोभिन लज्जारूप वल्लिने विदारण करवामां कुहाडीरुप, आ दुःखें पूराय एवी पेटरुप पेटी विडंबना करे छे. // 18 // सहसाङ्कः खहस्तेन चकाराऽथ सुभोजनम् / घृतपूरैः समायुक्तं प्राणिनां मधुरैः सदा // 19 // ___ अर्थः-बाद सहस्रांके पोताने हाथे प्राणिओने हमेशां मधुर एवं घृतथी तरबोळ करेलुं भोजन बनाव्यु. // 19 // तप्तिहरैश्च सत्तारैः कुष्माण्डपाककैर्वरम् / मोददं सततं रम्यं सिंहकेसरमोदकैः // 20 // अर्थः-तापने हरवावालो एवो उत्तम कोळांपाक तथा अनुपम सिंहकेसरीआ लाडु ताजा अने खुश करे एवा तुरत बनाव्या. // 20 // सर्वपक्वान्नसंयुक्तं सुराणां सुरभि ध्रुवम् / हरमशेषरोगाणां कलितं लापनश्रिया // 21 // यतः___ अर्थ:-सर्व पक्वानोथी मिश्रित करेल तथा खरेखर देवताओने पण सुगंधि आपनार, तेमज सर्व रोगने हरवावाळी | // 47 // / / एवी लापसी पण बनावी. // 21 // कयुं छे के P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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