Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ // चरित्रम् // नरब्रह्मोऽपि सः पश्चात् सहसाएं च जल्पिवान् / त्वमुद्राहय सल्लग्ने मे पुत्रीं श्रीसमन्विताम् // 99 // / मृगांक | अर्थः-बाद नरब्रह्मराजाए सहस्रांकने कीधु के शुभ लग्ने लक्ष्मी सहित तुं मारी पुत्रीने परण ? // 99 // // 43 // राजानं सहसाङ्कश्च प्रोचे भाग्यपुरन्दरः / साम्प्रतं नियमः सम्यग् मया कृतोऽस्ति भावतः // 200 // ___ अर्थः-त्यारे भाग्यवान सहस्रांके कीधुं के हाल में भावथी नियम ग्रहण कर्यो छे. // 20 // . एकदा चिन्तयामास सहसाङ्कः स्वचेतसि / मृगाङ्को मे पतिर्वर्यः समेष्यति कदाऽत्र वै? // 1 // ___ अर्थ:-हवे एक दिवसे स्त्रीरूपधारी सहस्रांक मनमा विचारतो हवो के मारो उत्तम एवो पति मृगांक क्यारे अहिं आवशे ? // 1 // क्रमेण सिंहलद्वीपात् सन्मृगाङ्कः समागतः / उपविश्य तरण्डे हि भृते वस्तुविशेषकैः // 2 // अर्थः-अनुक्रमे सिंहलद्वीपथी अनेक वस्तुओ भरीने ते सज्जन एवो मृगांक वहाणमां बेसीने आव्यो. // 2 // सुसुमारपुरं ज्ञात्वा रक्षयित्वा च पोतकम् / तस्मादुत्तरितः श्रेष्ठी मृगाको गुणनीरधिः // 3 // : अर्थः-अने सुसुमारपुर जाणीने अहिं वहाणने योभावीने ते गुणनिधान मृगांककुमार त्यां उतो. // 3 // || कुसुमसारस्य पुत्रो मृगाङ्कोऽत्र समागतः / कथितं सहसाङ्काम इति स्वानुचरेण च // 4 // - . // 43 // .P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64