Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ // 35 // | रूपमद्भुतमा ! धृत्वा श्रुत्वा चोरः स बीडकम् | क्रीडां कुर्वन् सुयामिन्यामागतो नायिकागृहे // 60 // | चरित्रम् ___ अर्थ:-ए वात सांभळीने अद्भुत रुप करीने चोर क्रीडा करतो रात्रिए नायिकाने घरे आव्यो. // 6 // कब्जरूपधरां दासी दृष्टा चौरेण तत्र च / मष्टिघातेन सा दासी सरला विहिता तदा // 61 // ___ अर्थः-त्यां चोरे कुबडी एवी एक दासीने जोइने मुष्टि-महारथी ते कुबडीने सरल करी दीधी. // 61 // . साऽपि स्वखामिनीपावें गत्वा नत्वा च संस्थिता / द्वारस्थितेन केनापि सरला विहिता मुदा // ___ अर्थः-ते दासी पण पोतानी बाइ पासे जइने प्रणामपूर्वक कहेवा लागी के बहार उभेला कोइके मने सरल करी दीधी. नायिकोवाच तं श्रुत्वा दासीमिति पुनः पुनः / त्वमाकारय तं भद्रे ! शीघ्रं सोऽपि समागतः // 63 / / ___ अर्थः-ते सांभळीने नायिका दासीने वारंवार कहेवा लागी के हे भद्रे ! तेने तुं तुरत बोलाव ? तेथी ते पण आव्यो. || नायिकोवाच भो विद्वन् ! मां कुरु नवयौवनाम् / अर्पिता गुटिका तस्यै शिक्षयित्वेति तेन वै // 6 // _ अर्थः-त्यारे नायिकाए लेने कीधुं के हे विद्वान ! मने नव-यौवना बनाव ? त्यारे ते चोरे तेने जडीबुटी आपीने | शीखव्यु के, // 64 // .. शुन्यसद्मनि निर्वस्त्रं स्थातव्यं त्वयकाऽधुना / त्वां यदा कथयिष्येऽहं गन्धनीयेयमद्भुता // 65 // // 35 // . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64