Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक AL: अर्थः-ए हकीकत सांभळीने चोरे ते प्रधानने घेर जइने घरना सर्व माणसोने अवस्वापिनी निद्रा आपी. // 54 // कृत्वा च पश्चिमे द्वारं प्रविष्टस्तत्र तस्करः / गृहनेतेव सर्वत्र ददर्श निर्भयो बली // 55 // ____ अर्थः-अने पछवाडेना बारणेथी प्रवेश करीने बळबान अने निर्भय एवो ते चोर घरना धणीनी पेठे बधुं जोवा लाग्यो. // 34 // मुक्ताफलानि रत्नानि वस्त्राणि भूषणानि च / अन्यान्यपि च वस्तुनि मुषित्वा तस्करो गतः // 56 // ____अर्थः-बाद रत्नोनो समूह, मुक्ताफल, वस्त्राभूषण विगेरे घणी वस्तुओ चोरीने ते चोर चाल्यो गयो. // 56 / / प्रभातसमये जाते प्रधानो जागृतस्ततः / तदैव खगृहे खात्रं दृष्ट्वा मनसि विस्मितः // 57 // . ___ अर्थ:-सवार थतां प्रधान जागीने जुए छे तो पोतानाज घरमां चोरो थयेली जोइने मनमां विस्मित थयो. // 57 // स प्रधानो नृपासन्ने गत्वाऽवदत् पुनः पुनः / न मुक्तं मगृहे किञ्चित् चौरेण स्फारबुद्धिना // 5 // ___अर्थ:-ते प्रधान राजा पासे आवीने वारंवार कहेचा लाग्यो के चतुर बुद्धिवाळा एवा चोरे मारा घरमांकरदेव दीधुं नथी. // 58 // ततोऽवदज्जराजीपर्णा नृपं नगरनायिका / वशीकार्यों मया चौरः क्षणेन कपटाद् भृशम् // 59 // . अर्थः-त्यारे घडपणथी वृद्ध थयेली नगरनी नायिकाए राजाने कर्दा के हुं एक क्षणमां कपटथी चोरने वश करी || // 34 // / लेइश. // 59 / / PRAC. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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