Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक // 32 // ___ अर्थः-जटावाळो छे पण ब्रह्मा नथी, त्रण चक्षुओवाळो छतां शंकर नहि, जलने धारण करवावाळो छतां मेघ नहि, / अने वनवासी छतां तापस नथी. (त्यारे ते कोण ?) // 44 // चोथाए उत्तर आप्यो के " नालिकेर." नाळीएर.. चरित्रम् इति शास्त्रविनोदं स दृष्ट्वा निजाङ्गजन्मनाम् / हर्षितस्तमुवाचैवं सहसाङ्घ धराधवः // 45 // . ___ अर्थः-ए प्रमाणे पोताना पुत्रोने शास्त्र-विनोद करता जोइने हर्षित थयेला राजाए सहस्रांकने कोधु के-॥४५॥ तुष्टोऽहं त्वयि सत्प्राज्ञ ! याचस्व वरमोप्सितम् | ययाचे शौल्किकत्वं स ददो राजापि तत्क्षणम् // अर्थः-हे सत्पुरूष ! हुँ तारामत्ये तुष्टमान थयो छु तो इच्छित माग ? त्यारे सहस्रांके दाण. लेवान अधिकारीपणुं माग्यु. त्यारे राजाए पण तुरत तेने ते काम सोप्यु. // 46 // शौल्किकत्वं गृहीत्वा स खानुचरान् प्रजल्पति / अर्द्धदाणं मया मुक्तं तच्चौर्य त्याज्यमडिभिः॥४७॥ ____ अर्थ:-तेणे जगात, काम ग्रहण करीने पोताना नोकरोने ज़णाव्यु के हुं अरधो जगात माफ करुं छु, माटे कोइ. पण माणसे दाण चोरी करवी नहि. // 47 // इत्यादिघोषणां कृत्वा कुमारस्तत्र तस्थिवान् / सुखेन स्वाधिकारं च पालयामास तत्पुरे // 48 // ___ अर्थ:-एम ढंढेरो पीमवीने ते कुमार ल्यां रह्यो थको सुखे करी पोतानो अधिकार पाळतो हतो, 48 // ... || ३सा // 32 // ... AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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