Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 31
________________ मृगांक |30|| // अर्थ:-राजाए तेमने महेल आप्यो, त्यां निर्भयपणे रह्यो थको सहस्रांक राज-कुमारोने हमेशां भणावतो हतो. // 37 // || चरित्रम् |.छन्दोऽलङ्कारसङ्गीतगूढार्थन्यायनीतयः / एतानि सर्वशास्त्राणि पेठुस्ते च विशेषतः // 38 // __ अर्थः-छंद, अलंकार, संगीत, गूढार्थ छे जेमां एवं न्यायशास्त्र, तथा नीतिशास्त्र ए सर्व शास्त्रो तेओ विशेषप्रकारे भणता हवा. // 38 // कलासु कुशलाः सर्वे जाताः स्तोकदिनैरपि / राज्ञोऽये सहसाङ्केन मुक्तास्तेऽपि च बालकाः // 39 // ____ अर्थः-थोडा दिवसोमां पण तेओ सर्वे कळामां पारंगत थंया त्यारे सहस्रांके ते कुमारोने राजा पासे मोकल्या. // 39 // तान् कुमारान् नृपेणोक्तं परीक्षार्थमिति ध्रुवम् / दर्शयन्तु विनोदं भोः! पुत्राः! शास्त्रस्य मत्परः // 40 // एक एकं प्रत्युवाच____ अर्थ:-ते कुमारोनी परीक्षा माटे राजाए कीधुं के हे पुत्रो ! शास्त्रनो विनोद तमे खरेखर मारापासे मगट करो? // 40 // राजपुत्रो परस्पर कहे छे केकिं जीविअस्स चिढं ? का भज्जा होइ मयणरायस्स ? किं पुप्फाणं पहाणे ? परिणीआ किं कुणह। // 30 // | वाला? // 1 // अपरेणोत्तरं दत्तमिति-'सासरइजाई'। पुनः द्वितीयेनोक्तम् A P.P.AC.Sunratnasuri M.S. VIRA Jun Gun Aaradhak Trust

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