Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक IM चरित्रम् // 29 // विद्यावन्तं विदित्वा तं नरब्रह्मनराधिपः / मुमोचात्माङ्गजान सद्यस्तपार्श्वे पठनाय च // 33 // __ अर्थः- बाद ते नरब्रह्मराजाए तेने विद्वान जाणीने तुरतज पोताना पुत्रोने. तेना पासे भणवा मोकल्या, // 33 // | शब्दनीतिलसत्काव्य-शास्त्रछन्दांसि भूरिशः। एतानि सर्वशास्त्राणि पाठयैतान् ममाज्ञया // यतः___ अर्थः-अने आज्ञा करी के आ मारा पुत्रोने शब्द, नीति, उत्तम काव्यो, छंदशास्त्र, विगेरे सर्व शास्त्रोनो अभ्यास कराव ? // 34 // कयुं छे केविद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं, विद्या भोगकरी यशःसुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः / विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता, विद्या राजसु पूज्यते नहि धनं विद्याविहीनः पशुः॥ ____ अर्थ:-विद्या पुरुषतुं अधिक रुप छे, विद्या गुप्त धन छे, विद्या भोगने करवावाळी तथा यश अने सुख करवावाळी तथा गुरुनी पण गुरू छे, वळी विद्या छे ते परदेशने विषे बंधुसमान अने इष्ट देवता जेवी छे, राजसभामा पण विद्या पूजाय छे धन पूजातुं नथी अर्थात् विद्या रहित माणस पशु समान छे. // 35 // .. उवाच सहसाङ्कोऽसो नरब्रह्ममिति स्फुटम् / एतेषां पाठनकृते मन्दिरं मे समर्पय // 36 // - अर्थ-त्यारे सहस्रांके ते नरब्रह्म राजाने कीg के कुमारोने भणाववा माटे मने एक महेल आपो? // 36 // / राज्ञा तस्मै गृहं दत्तं तस्थिवान सोऽपि निर्भयः। कुमारान् पाठयामास तान् सर्वान् हि निरन्तरम् // // 29 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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