Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक श्रम // 28 // स तामाकारयामास कोतुकाद् नृपतिर्जवात् / साऽपि गत्वा स्थिता पार्श्वे प्रणम्य नृपतिं च तम् // _____ अर्थः-कौतुकथी राजाए तुरतज तेणीने बोलावो त्यारे तेणी जइने राजाने प्रणाम करीने उभी. // 28 // तं स्वनामाभितं दृष्ट्वा व्यञ्जनं हर्षितो नृपः। आपृच्छय मालिनी मूल्यं द्विगुणं दत्तवान नृपः // ___ अर्थ:-पोतानुं नाम गोठवेलो पंखो जोइने राजाए हर्पित थइने मूल्य पूछ्युं, तेथी बम[ राजाए तेणीने आप्यु. // 29 // पुनः पप्रच्छ तां राजा निर्मितः केन व्यअनः। मालिन्यूचे महोनाथ! वैदेशिकोऽस्ति मदगृहे // 30 // ____ अर्थः-वळी फरीने राजाए पूछयु के आ कोणे गोठव्यु ? त्यारे मालणे कीधुं के हे पृथ्वीपति ! मारे घेर एक वैदेशिक आवेल छे, // 30 // रूपलावण्यसंपन्नो विद्यया कलितो युवा / तेनायं निर्मितो रम्यस्तव नामसमन्वितः॥ युग्मम // ___ अर्थः - ते रूप, लावण्य अने विद्याथी युक्त एवो युवान छे, तेणे आपना नाम सहितनो आ सुंदर पंखो बनान्यो छे.॥ श्रुत्वेत्याकारयामास तं कुमारं नराधिपः / पुष्पलावीगृहात्सोऽप्यागत्याननाम तं शिरः // 32 // ___ अर्थ:-ते सांभळीने राजाए मालणने घरेथी ते कुमारने बोलाव्यो, कुमारे पण आवीने राजाने मस्तक नमावीने ITRan प्रणाम कर्या. // 32 // .P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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