Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 27
________________ मृगांक चरित्रम् // 26 // // अर्थ:-ते सहस्रांक पासे नगरना घणा माणसो आववा लाग्या, अने ते पण तेओनी पासे सर्व शास्त्रोनो हकीकत || कहेतो हवो. // 17 // मालिनीसदने तिष्ठन्मे जाता बहवो दिनाः / विना द्रव्येण मद्भक्तिरनया क्रियते भृशम् // 18 // ___ अर्थः-आ मालणने घरे हुँ घणा दिवसो थयां रहुं छु, छतां द्रव्य विना तेणी मारी घणी भक्ति करे छे, // 18 // कयाचित् कलया कृत्वा द्रव्यं ददामि तत्करे / इति मत्वा करे तस्या आर्पयच्च कपर्दकान् // 19 // ___ अर्थः-तो काइंक कळा करी तेणीने द्रव्य आपुं. एम विचारीने मालणने तेणे कोडीओ आपी. // 19 // . उवाचेति शं श्रेष्टिनन्दनो मारविग्रहः / मत् कपर्दान गृहीत्वा त्वं बर्हाण्यानय मालिनि ! // 20 // ___ अर्थः-अने कामदेवजेवा देहवाळा श्रेष्टिपुत्र सहस्रांके कीधुं के हे मालिनि ! आ कोडीओ लेइने तुं मोरना पीछां लाव ? सद्बर्हाणि समानीय कुमाराय च सा ददौ / कृतस्तेन नरब्रह्मनामाङ्कितः सुव्यञ्जनः // 21 // ___ अर्थ-मालणे ते पीछां लावीने सहस्रांकने आप्यां, तेणे "नरब्रह्म" एवा अक्षरो अंदर गोठवीने एक पंखो बनाव्यो.॥ इत्युक्त्वा स ददो तस्या हस्ते व्यञ्जनकं मुदा / पंचशतैश्च दीनारैः विक्रेयः षोडशाधिकः // 22 // ___अर्थः-अने मालणने हर्षपूर्वक ते पंखो आपीने कीg के तारे (516) सोनामहोरोथी आ पंखो वेंचवो. // 22 // // 26 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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