Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ // 24 // || सा वधूः फलक लब्ध्वा प्रोत्तरन्ती पयोनिधिम् | उल्लालिता गजेन्द्रेण शुण्डया सुरवर्त्मनि // 9 // मृगांक ____ अर्थः–ते पद्मावतीने पाटीयुं हाथ आववाथी समुद्र तरती हती, तेवामां एक हाथीए आवीने तेणीने सुंढ वडे || आकाशमा उडाडी. // 9 // विद्याधरविमाने सा पतितातीव सुन्दरी / उवाच कार्मुकं वाक्यं तस्या विद्याधराधिपः // 10 // ___ अर्थ:-एटले तेणी विद्याधरना विमानमां पड़ी, तेणीने सुंदर स्वरुपवाळी जोइने विद्याधराधिपत्ति कामोत्तेजक वाक्यो कहेवा लाग्यो. // 10 // विद्याधरं च सा बाला वचसा प्रत्यबोधयत् / स शीलादिगुणैस्तुष्टस्तिस्रो विद्या ददी वराः॥ यतः____ अर्थः-पण ते विद्याधरने तेणीए वचनोवडे प्रतियोधवाथी शील विगेरे गुणोथी खुशी थइने विद्याधरे उत्तम त्रण विद्याओ तेणीने आपी. // 11 // केमके सीलं उत्तमं वित्तं सीलं आरोग्गकारणं परमं / सीलं भोगनिहाणं सीलं ठाणं गुणगणाणं // 12 // ____ अर्थः-शील छे ते उत्तम धन छे, शील छे ते आरोग्यना कारणभूत छे, शील छे ते संपत्ति देवावाळु छ, अर्थात // 24 // // शील गुणना समूहना स्थानरुष छे. // 12 // R.B.AC.Sunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64