Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 28
________________ मयांक // 27 // विक्रेयाथै गृहीत्वा सा गता व्यञ्जनकं मुदा / वदन्ती मालिनी मूल्यं चतुष्पथे जनाकुले // 23 // // ____ अर्थः-मालण पण ते पंखो वेचवा माटे बजारमा गइ, अने माणसोथी भरपूर बजारमा बेसीने तेणी किंमत कहेवा लागी. // 23 // जनाः पुरस्य तत्पावे दर्शनार्थ समागताः / एकः करे गृहीत्वा तं पश्यतिस्म निरर्थकम् // 24 // ___ अर्थ:-नगरना लोको ते पंखो जोवा माटे त्यां एकठा थया, कोइ हाथमा लेइ फोकट जोवा लाग्या. // 24 // पप्रच्छैकस्तस्य मूल्यं वायुं क्षिपति कश्चन / वदत्येको न गृह्णामि हास्यमेके प्रकुर्वति // 25 // अर्थः-कोइ तेनुं मूल्य पूछवा लाग्या, कोइ तेनाथी पवन नाखवा लाग्या, कोइ हास्यपूर्वक कहेवा लाग्या के आ तो || आपणे न लइ शकीए ? // 25 // इयं जाता हि यथिला वदन्त्येते मिथो जनाः। यदास्ति द्रव्यमेतच्च प्राप्यन्ते व्यञ्जनोत्कराः // 26 // ____ अर्थः-कोइ कहे आ गांडी थइ गइ लागे छे, जो एटलं द्रव्य होय तो पंखाना ढगला आवी पडे ! // 26 // || एकस्य हृदये जातमाश्चर्य बहुमूल्यतः / कथितस्तेन वृत्तान्तः नरब्रह्मनृपाय च // 27 // // अर्थः-बहु मूल्य होवाथी एक माणसने आश्चर्य थयुं तेथी तेणे ते हकीकत नरब्रह्म राजाने कही. // 27 // . // 27 // P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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