Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 24
________________ मृगांक // चरित्रम् // 23 // 33D पूण ध्यानं च कृत्वा सा, श्रुत्वेति तद्वचोऽवदत्। भ्रातोऽहं श्रेष्ठिनः पत्नी यानभङ्गादिहागता // 4 // || अर्थः-ते शेउनुं वचन सांभळीने ध्यानमाथी निवृत्त थइने तेणी बोली के हे भाइ ! हुं श्रेष्टिपत्नी छु अने वहाणना भांगवाथी अत्रे आवी छु.॥४॥ उवाच तां पुनः श्रेष्ठी भगिनि मे वचः शृणु। आगच्छ त्वं मया साधैं मोचयिष्ये शुभस्थले // 5 // ___ अर्थः-त्यारे शेठे वळी कीg के हे बहेन ! मारुं वचन सांभळ ? मारी साथे तुं चाल, तने योग्य ठेकाणे हुं मूकीश // सा विधायार्हतः पूजां चचाल श्रेष्ठिना सह / चलितं श्रेष्ठिनश्चित्तं वधूपरि व्रजन्पथि // 106 // यतः____ अर्थः-तेणी पण प्रभु-पूजा करीने शेठनी साथे चाली. मार्गे चालतां तेणी मत्ये शेठनुं चित्त चलित थयु.॥६॥ केमकेपुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा दृष्ट्वा नारी सुशोभिताम् / तानि त्रीणि वने दृष्ट्वा कस्य न चलति मनः॥७॥ ____ अर्थः-पुष्प, फल अने सुंदर स्त्री ए त्रणेने वगडामां जोवाथी कोनुं मन चलित थतुं नथी ? // 7 // भगिनी कथयित्वेमा वचनाचलितः शठः / ज्ञात्वेति शासनदेव्या तत्पोतः खण्डशः कृतः॥८॥ _ अर्थ:-ते शठ अर्थात् लुच्चा एवा शेठे भगिनि कहीने मन चलित कयु तेथी शासनदेवीए तेना वहाणना कटका | करी नाख्या. // 8 // // 23 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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