Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ अथ जिनप्रभावाच्च कष्टोघो यास्यति क्षयम् / आदितीर्थकृतो मुर्ति चकाराऽतो मृगेक्षणा // 95 // // मृगांक ____ अर्थ:-हवे जिनमथुना प्रभावथी दुःखनो समूह दूर थशे एम विचारी आदिनाथमभुनी मूर्ति तेणीए बनावी // 95 // चरित्रम् ..|निवेश्य प्रतिमां शैले प्रानर्च सततं वधुः / तदने श्रीनमस्कारान् सा च जपति भावतः॥ यतः॥२१|||||| अर्थ:-ते पतिमाने तुरत शिखरपर स्थापन करीने तेणी श्री नवकारमंत्रने भावथी जपवा लागी. // 96 // कयु छ के संग्राम-सागर-करीन्द्र-भुजङ्ग-सिंह-दुर्व्याधि-वह्नि-रिपु-बन्धनसंभवानि // ___चोर-ग्रह-भ्रम-निशाचर-शाकिनीनां, नश्यन्ति पञ्चपरमेष्ठिपदैर्भयानि // 97 // अर्थः-संग्राम, समुद्र. हाथी, सर्प, सिंह, दुस्सह व्याधि, अग्नि, शत्रु बंधन, चोर, ग्रह, भ्रांति, राक्षस अने डाकिनी विगेरेनो भय पंचपरमेष्टिनां स्मरणथी नाश पामे छे. // 97 // यो लक्षं जिनबद्धलक्ष्यसुमनाः सुव्यक्तवर्णक्रमं श्रद्धावान् विजितेन्द्रियो भवहरं मंत्रं जपेत् श्रावकः। पुष्पैः श्वेतसुगन्धिभिश्च विधिना लक्षप्रमाणैर्जिनं यःसंपूजयते स विश्वविदितः श्रीतीर्थराजो भवेत् // अर्थ:- लाखवार जिनेंद्रने विषे जोडयु छे लक्ष अर्थात् मन जेणे, तथा साफ हृदयवाळो, श्रद्धावान तेमज इंद्रिओने जीतनारो श्रावक भवने हरवावाला मंत्रनो जाप करे, तथा सफेद अने सुंगंधो एवां लक्षममाण पुष्पोथी विधिपूर्वक जिनेवरमभुने पूजे ते जगत्मा प्रख्यात एवं तीर्थकरनामगोत्र बांधे. // 98 // // 26 // P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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