Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक // 17 // / उत्ततार मृगाकोऽपि कान्तया कान्तया युतः / दर्शयित्वा वनं सर्व सुष्वाप केलिमन्दिरे // 76 // || अर्थ:-मृगांककुमार पण पोतानी स्त्रीसहित वननुं निरीक्षण करीने केळनो मंडप बनावीने सुतो. // 76 // घोरनिद्रा वधूं दृष्ट्वा कुमारश्वोत्थितस्ततः / स्मृत्वा च वचनं पूर्व मन्युनाऽरुणलोचनः // 77 // अर्थः-बाद पदमावतीनुं वचन याद करीने क्रोधथी लाल आंखोवालो थयो थको तेणीने घोर निद्रावाळी जोइने मृगांककुमार उठ्यो. / / 77 // मध्यरात्रौ प्रगतायां लेखाऽशीतिकपर्दकान् / प्रबध्ध्वा च मृगाठून पद्मावत्यञ्चले ततः // 78 // ____ अर्थः-अने मध्यरात्रि गयाबाद एंसी कोडीओ लेख सहित पद्मावतीना वस्त्रने छेडे बांधी / / 78 / / तल्लेखे लिखितं तेन मयोदरं च पूरितम् / अथैतान् कपर्दान् भद्रे ! गृहीत्वा कुरु भूषणम् // 79 // isa- अर्थः-ते लेखमां तेणे लख्यु के हे भद्रे ! एंसी कोडीथी में तो पेट भयु, पण हवे ते कोडीओथी तुं काननुं भूषण करजे? // 79 // स्वप्रियां तत्र मुक्त्वा च चलितः पोतसन्मुखम् / पूत्कारमिति चक्रे स राक्षसभैक्षिता वधूः // 80 // अर्थः-एवी रीते पोतानी पियाने त्यांज मूकीने पोते वहाणपासे आवीने पोकार करवा लाग्यो के मारी स्त्रीने राक्षसे खाधी. // 8 // // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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