Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 19
________________ मृगांक // // 18 // या हक्कारितं मृगाड्रेनोपविश्य पोतमङ्गतम् , क्रमेण गच्छता मागें संजातस्तपनोदयः // 81 // ___ अर्थः - बाद पोते वहाणमा बेसोने वहाण हकार्यु, क्रमे क्रमे मार्गमां जता सूर्योदय थयो. // 81 // धनञ्जयसुना तत्र जागृता केलिमन्दिरे / मां मुक्त्वा च गतः कुत्र चिन्तितमिति मे पतिः // 2 // __ अर्थ:-हवे कदली-मंडपमा रहेली धनंजयनी पुत्री पद्मावती जागी, अने विचारवा लागी के मारो पति मने मूकीने क्यां गयो ? // 82 // अर्पिताहं च भर्तारं मिलित्वा मातृपितृभिः / न मुञ्चति वनेऽसो मां यानपात्रे भविष्यति // 3 // ___ अर्थः–मने मात-पिताए मलीने भर्तारने सोपो छे तो ते मने वनमा मूकीदे नहि, ते वहाणमां हशे. // 83 // साऽपि जगाम तत्पोतं गत्वा तत्र विलोकितम् / न यानं न च भर्ता हि धरित्र्यां पतिता ततः॥ ___ अर्थ:-बाद तेणी वहाणपासे जइने जुए छे तो वहाण अने भर्तारने न जोवाथी पोते जमीनपर पडी गइ. // 84 // चकार रोदनं तस्मिन् पद्मावती वियोगिनी। किं करोमि के गच्छामि रमणेन विनाऽधुना? // 5 // __ अर्थः-अने वियोगिनी एवी तेणी रुदन करवा लागी के हवे शुं करूं ? भर्तार विना हवे हु क्यां जउं ? // 85 // "सुख गयां सवि सासरइ पीहर टलीउं मान / कंतविहणी गोरडी जिंहा जाइ तिहा रान // 86 // // 18 // Navigns.P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Compagain Jun Gun Aaradhak Trust

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