Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 16
________________ मृगांक // 15 // વકી - શાહનને પંડિતન્નઝેક - दीसह विविहचरिअंजाणिजइ सजणदुजणविसेसो / अप्पाणं च कलिज्जइ हिंडिजइ तेण पोहवीए॥ ___ अर्थः-पृथ्वीपर फरवाथी विविध कारनां चरित्रो जोवाय, सज्जन अने दुर्जन समजी शकाय अने पोतार्नु पराक्रम फोरची शकाय. // 66 // गृहकार्यं च कर्तव्यं शोभा रक्षेस्ततः पराम् / सुभ्र ! कार्या त्वया पित्रोर्भक्तिर्देवगुरौ तथा // 67 // अर्थः-तारे घर-काम करवू, शीयलने साचवतुं अने हे सुभ्र! तारे मात-पितानी तथा देवगुरुनी भक्ति करवी. // 67 // आकर्ण्य वचनं तस्य प्रत्यूचे निजवल्लभम् / आगमिष्ये भवत्सार्धं छायेव वपुषः सदा // 68 // __ अर्थः-ए प्रमाणे मृगांककुमारनां वचन सांभळीने तेणी कहेवा लागी के, हुं तो छायानी पेठे आपनी साथेज आवीश. गृहे स्थातुं न युक्तं हि योषितां पतिना विना / प्राणान्ते न हि मुश्चामि समीपं भवतस्ततः // 69 // __ अर्थः-कारणके स्त्रीओने पति विना घरे रहे युक्त नथी, माटे पाणांत सुधि तमाराथी हुँ खसीस नहि. // 69 // तया सार्धं मृगाकोऽसौ प्रणम्य चरणं पितुः। अम्बुधी यानपात्रं च व्यारुरोह शुभे दिने // 70 // __ अर्थः-बाद मृगांककुमार तेणीने साथे लेइने मात-पिताने नमस्कार करीने शुभ दिवसे समुद्रमा रहेला वहाणमा || | बेठो. // 70 // .. // // 15 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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