Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगांक // 14 // | गच्छाम्यपरदेशेष्वेनां मुक्त्वाऽत्रैव साम्प्रतम् / येनैषा लभते सद्यः स्वकीयवचसः फलम् // यतः- I ___ अर्थः -पण हाल तो तेणीने अत्रेज मूकीने हुँ परदेश जउं, के जेथी पोताना वचननुं फल तेणीने मळे. का छे केआज्ञाभङ्गो नरेन्द्राणां गुरूणां मानमर्दनम् / पृथक् शय्या च नारीणामशस्त्रवध उच्यते // 62 / / ___ अर्थः-राजानी आज्ञानो भंग, गुरुनु अपमान अने स्त्रीथी जुदी शय्या ते शस्त्र विनानो वध कहेवाय छे. // 62 // आपृच्छय पितरो प्रातर्मगाडो गमनोत्सकः।चकार पोतसामग्री वाणिज्यार्थं च सत्त्ववान॥ यतः___ अर्थः - व्यापारार्थे परदेश जवाने उत्सुक बलवान् एवो मृगांककुमार सवारमा मात-पिताने पूछीने वहाणनी तैयारी करवा लाग्यो. // 63 // केमकेलक्ष्मीर्वसति वाणिज्ये किंचिदस्ति च कर्षणे / अस्ति नास्ति च सेवायां भिक्षायां न कदाचन // 6 // - अर्थः-लक्ष्मी वेपारमा वसे छे, अने थोडी खेतीमां रहे छे, सेवामा छे अने नहिं, पण भिक्षामां कोइ दिवस रहेती नथी. // 64 // . प्रत्युवाच मृगाङ्कस्तामिति मे वचनं कुरु / भद्रे ! त्वयात्र स्थातव्यं देशान्तरे व्रजाम्यहम् // यतः अर्थः-बाद मृगांककुमारे पोतानी स्त्री पद्मावतीने कीधुं के हे भद्रे! हु परदेश जाउं तारे अहिं रहीने हुं कहुं ते ||| // 14 // करजे? // 65 / / कयुं छे केP.P. Ac Gynratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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