Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ .. अर्थः-एम विचारोंने मुंगांककुमार मौन रहीने विचार्य के ज्यारे ते मारी थशे त्यारे तेणीने शिक्षा आपीश. // 46 // // मृगांक // इति चिन्तयतः प्रीतिर्बभूव मनसा विना / कलाकुशलतां सम्यक् तो प्राप्ती गुरुभक्तितः // यतः॥११॥ ___ अर्थः-एवी रीते तेओ वच्चे मन विनानी प्रीति थइ, अने गुरुभक्तिथी तेओ बन्ने सारीरीते कळा-कुशल थया. // 47 // कयं छे के- सना R agani Kap Apr . YAYA Hौर, // .... "वाति कीइं कवण गुण जिहां नवि मलिडं मन्नं / मन्नविहुणो प्रेमरस जाणे अलुणो अन्न // 48 // ___ अर्थः-ज्यां मन नथी मल्युं त्यां वात करवाथी शुं ? केमके मनविनानो प्रेम ते लुण विनानी रसवती जेबो थाय छे. मनु तोलो तनु ताजवी हे सखी ! नेह केता मण होय। लंगते लेखं नहीं टूटइ टांक न होय” // ____ अर्थ:-हे सखि ! मनरुप तोलांथी तनरुप कांटामां स्नेहने तोळीए तो केटला मण थाय ? लाखे लेखु नहि, पण स्नेह टुटथे एक टांक पण थाय नहिं. // 49 // . पद्मावतीमृगाको तौ स्वस्वधानि गतावुभौ / पठित्वा सर्वशास्त्राणि गुरुनिर्देशतो मुदा // 50 // - अर्थः-बाद पद्मावती अने मृगांककुमार सर्व शास्त्रोनी अभ्यास करीने गुरुनी रजा लेइने हर्षथी पोतपोवाने घेर गया.॥ // क्रमेण यौवनं प्राप कुमारः कमलेक्षणः 1 पिता तस्य कृते कन्या लोकयामास तत्पुरे // 5 // PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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