Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 10
________________ मृगांक अर्थ-ते समये कुसुमसार शेठनो पुत्र मृगांक क्रीडा करवाने घरे गयेलो त्यांची पावतीने संभारीने स्नेहथी स्फुरित | || थयो धको चाल्यो. // 35 // . वजन् मागे च मिलितः धनञ्जयो धनैर्भूतः / अशीतिकपर्दान् तस्मै स ददौ स्वसुताकृते // 36 // // 9 // ___ अर्थः-मार्गे चालतां धनवान् शेठ धनंजय मल्या, तेणे मृगांकने एंसी कोडीओ पोतानी पुत्री पद्मावती माटे आपी. गृहीतस्तेन कूष्माण्डपाको वर्त्मनि गच्छता। कथयिष्यति सा कि मामिति विचिन्त्य भक्षितः // 37 // ___- अर्थः-रस्ते चालतां ते कोडीओ वेचीने मने ते शुं कहेवानी हती एम विचारीने कोलां-पाक लइने खाइ गयो. // 37 // पद्मावतीसमीपे स भक्षयित्वा गतस्ततः। तया प्रश्नः कृतस्तस्य, भक्षितं भोस्त्वयाय किम् ? // 38 // ____ अर्थः-ते खाइने पद्मावती पासे गयो त्यारे तेणीए पूछ्यु के अरे! ते आजे | खाधुं छे ? // 38 // कुमारस्तामुवाचैवं दत्ताशीतिकपर्दकाः / तव पित्रा त्वदर्थं च मम हस्तेऽतिरागतः // 39 // ___ अर्थः-त्यारे कुमारे कीधुं के तारा पिताए स्नेहथी मने तारा माटे एसी कोडी आपेल, // 39 // | विक्रीय तान् मया सर्वान लात्वा कूष्माण्डपाककम् / भक्षितः स्वादतो नूनं भुक्त्वा चाहमिहायतः॥ In अर्थ:-ते सर्व कोडीओ वेचीने में कोलां-पाक लीयो अने स्वादपूर्वक खाइने हुँ अहिं आव्यो मु. // 40 // P.P: Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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