Book Title: Mruganka Charitram
Author(s): Ruddhichandraji
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 7
________________ चरित्रम् मृगांक ||| तस्यां वसति दाता हि श्रेष्ठी कुसुमसारकः / परिवारेण संयुक्तः विख्यातः क्षितिमण्डले॥ 21 // // . - अर्थः - ते नगरमां परिवारथी वीटलायेलो अने जगत्मां सुप्रसिद्ध तथा खरेखर दानेश्वरी एवो कुसुमसार नामे शेठ वसतो हतो. // 21 // जनबजेषु कल्पद्रुर्द्रव्येण धनदोपमः / धर्मकर्मविधो दक्षः रूपेण रतिवल्लभः // 22 // ___ अर्थः-वळी ते शेठ माणसोना समूहमां कल्पवृक्षजेवो, द्रव्यमा कुबेरजेवो, धर्मकार्यमां दक्ष अने रुपमा कामदेवजेवो हतो. // 22 // - - तस्यास्ति रमणी रम्या स्वयंप्रभाभिधा शुभा। केलीवत्कोमलाङ्गी च कलाकलापधारिका // 23 // . अर्थः–ते शेठनी कदलीजेवा कोमल अंगवाळी अने शुभ कळाओमां पारंगत तथा सुंदर स्वयंमभा नामे पत्नी हती. विराजते मुखं तस्या विकखरकजप्रभम् / सद्दन्तनयनैर्युक्तमर्चितं जनंदक्कः // 24 // . अर्थः -तेणीनुं मुख दांत अने चक्षुथी युक्त विकस्वर कमळना जेवू माणसोनी दृष्टिरुपी कमळोथी अर्चित थयु थकुं शोभतुं हतुं. // 24 // . तस्याः कुक्षौ समुत्पन्नो मृगाको मृगनेत्रजित् / गत्या तर्जितमत्तेभो वक्त्रेण यामिनीपतिः // 25 // .P.P.AC. GunratnasuriM.S. . : Jun Gun Aaradhak Trust

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