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ख्यालिलालजी दलाल, श्रीमान् नथमलजी दलाल, भाई वीरचन्दजी सीरोया, श्रीयुत फतेहलालजी मनावत, श्रीयुत कारूलालजी मारवाडी, भाई गोकुलचन्दजी राजनगर वाले, भाई भंवरलालजी सिंगटवाडिया इत्यादि महानुभावों की प्रेरणा और प्रयत्न विशेष साहनीय थे, इसलिये वे धन्यवाद के पात्र हैं।
श्रीमान् यतिवर्य अनूपचन्दजी ऋषिजी को भी मैं नहीं भूल सकता हूँ, जिन्होंने सारे चतुर्मास में हमारी हार्दिक भक्ति करने के अतिरिक्त मेवाड़ के विहार में भी कई दिनों तक हमारे साथ रह कर सहयोग दिया था।
'बम्बई समाचार जैन ज्योति' और 'जैन' पत्र के अधिपतियों को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने 'मेरी मेवाड़यात्रा' की गुजराती लेखमाला अपने पत्रों में प्रकट कर गुजराती प्रजा को लाभ दिया।
अन्तमें-'मेरी मेवाड़यात्रा' के वाचनसे हमारे किसी भी मुनिराज को मेवाड़ में विचरने की और उस देश में पुनः सच्चे धर्म की जागृति पैदा करने की भावना उत्पन्न हो, एवं गुरुदेव मुझे भी फिर से मेवाड़ में विचरने की, एवं वहाँ के अधूरे कार्य को पूरा करने
की शक्ति प्रदान करें, यही अन्तःकरण से चाहता हुआ यहाँ ही विराम लेता हूँ।
बरलूट (सीरोही स्टेट) 'आषाढ सुदी १, २४ ६२
-विद्याविजय धर्म सं० १४
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