Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ मेरी मेवाड़यात्रा अन्य अनेक कारणों से मेवाड़ में विचरने की बात से मन पीछे हटता था । फिर भी उदयपुर संघ तथा श्री जैनमहासभा के नेताओं की हार्दिकभावना ने अन्त में विजय प्राप्त की और हमने सारे मेवाड़ में तो नहीं, किन्तु कुछ खास खास स्थानों में भ्रमण करना निश्चित किया तथा इसके लिये पौष शुक्ला ५ के दिन प्रस्थान किया । नक्शे देख देखकर अनेक मार्ग पसन्द किये गये । किन्तु विचरने का समय कम होने से, हमने केवल उत्तर में होकर पश्चिम दिशा से मारवाड़ में उतर जाने का निश्चय किया । हमें मालूम था कि जहाँ सकड़ों वर्षों से अन्धकार फैल रहा है, जहाँ रातदिन दूसरे लोगों का उपदेश मिल रहा है और जहाँ मूर्तिपूजादि सत्यमार्ग की तरफ कर विरोध प्रदर्शित किया जा रहा है, वहाँ हमारे थोड़े से प्रयास से कोई विशेष लाभ नहीं हो सकता । इस अचेतनप्राय बनी हुई जनता में जीवन उत्पन्न करने के लिये बड़ी तपस्या की ज़रूरत है । इस अज्ञान में फँसी हुई प्रजा को प्रकाश में लाने के लिये बड़े प्रयत्न की आवश्यकता है । बहुत समय तथा वर्षो तक बारंबार सिंचन होता रहे तो ही इस प्रजा में कुछ जीवन उत्पन्न हो सकता है । तभी इस जंग खाये हुए लोहे पर का कुछ जंग उतर सकता है । किन्तु हमें तो समय थोड़ा था और कार्य करना था अधिक । रात थोड़ी थी और वेश वहुत थे । फिर भी उदयपुर श्री संघ के सहयोग से जितना हो सके उतना कर लिया जाय, ऐसा सोचकर हमने प्रस्थान किया । • For Private And Personal Use Only

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