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मेरी मेवाड़यात्रा यहाँ दो मन्दिर हैं। दोनों की व्यवस्था ऐसी सुन्दर है, कि जिसे देखकर मारवाड़ अथवा गुजरात के मन्दिरों की याद आजाती है। केवल चार दूकानें होने पर भी वे इतने भावुक हैं, कि यदि वहाँ कोई साधु चतुर्मास करें, तो किंचित् भी असुविधा न हो । यही नहीं, कई बार तो साधुओं ने वहाँ चतुर्मास किये भी हैं। अधिकारियों का सहयोग
हमारे मेवाड़ प्रवास के प्रचारकार्य में, श्री उदयपुर संघ के युवकों ने ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े गृहस्थों तथा यतिवर श्रीमान् अनूपचन्दजी आदि ने भी जो सहयोग दिया है, उसे कदापि नहीं भुलाया जासकता । आठ आठ दस-दस और कभी कभी इससे भी अधिक दिन तक साथ रहना, व्याख्यानों का प्रबन्ध करना, मन्दिरों में पूजा-पाठ, अंगरचना, भावना आदि करना, इत्यादि कार्यों से इन लोगों ने जिस तरह हमारा विहार सफल बनाने में सहयोग दिया है उसी तरह विभिन्न ग्राम के छोटे बड़े ऑफिसरों ने भी स्थानीय जनता को लाभ पहुँचाने में जो सहयोग दिलवाया है, वह भी सचमुच ही स्मरणीय एवं उल्लेखनीय है । बेदला में रावजो सा० के काका सा० राजसिंहजी साहब, मावली में नायब हाकिम साहब एहमतखानजी साहब, सनवाड़ के श्रीमान् महाराजा साहब, कपासन के हाकिम साहब गिरधारीसिंहजी साहब कोठारी, राशमी के हाकिम साहब उदयलालजी सा० मेहता, डॉ० मोहनसिंहजी साहब, भीलवाडा के हाकिम सा जसवन्तसिंहजी सा० मेहता,
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