Book Title: Meri Mevad Yatra
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 115
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरी मेवाड़यात्रा उनका नाम था-लल्लूभाई। इस बार उदयपुर में मालूम हुआ, कि वे तो अब नहीं रहे, उनका स्वर्गवास हो चुका है। किन्तु उदयपुर छोड़ कर, हम ज्यों ज्यों उत्तर-पश्चिम मेवाड़ में आगे बढ़ते गये, त्यों-ही-त्यों हमें यह बात मालम होती गई, कि उस अमरआत्मा का नाम तो मेवाड़ के प्रत्येक जैन की जबान पर मौजूद है । मेवाड़ के लगभग प्रत्येक मन्दिर के हर पत्थर में उनका नाम जीता-जागता रम रहा है । चाहे जिस गाम में जाइये, स्थानकवासी और तेरहपन्थी, त्योंही सेठ और महात्मा, प्रत्येक मनुष्य इन्हीं लल्लूभाई का नाम रट रहा है। 'यदि ललूभाई न होते, तो हमारे गाम में मन्दिर न बन पाता' । 'यदि लल्लूभाई न होते, तो हमारे यहां प्रतिष्ठा नहीं हो सकती थी। ' 'इस तीर्थ के गौरव में इतनी वृद्धि हुई, यह लल्लभाई के पुरुषार्थ का ही परिणाम है '। यह धर्मशाला तो लल्लभाई ने बनवानी प्रारम्भ की थी, किन्तु उस आत्मा के चले जाने के कारण यह कार्य अधूरा ही रह गया' | यों भिन्न भिन्न रूपों में इस त्यागी, अपना सर्वस्व धर्म के निमित्त न्यौछावर कर देनेवाले लल्लूभाई का नाम लोग स्मरण कर रहे हैं। गुजरात में जन्म ले कर मी, मेवाड में धर्म को कायम रखने के लिये शहीद हो जाने वाले ये लल्लूभाई, मेवाड के जैन इतिहास में अमर हो गये हैं । मेवाड़ के इतिहास में, इन लल्लूभाई का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। पहाडों तथा जंगलों में भटक भटक कर जैन For Private And Personal Use Only

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