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मेरी मेवाडयात्रा है। जिस महाराणा के समय में इस मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई है, वे अरिसिंहजी हैं। अरिसिंहजी का समय सं. १८१७ है। ये अरिसिंह तीसरे के नाम से प्रसिद्ध है। ।।
जैसा कि पहले कहा जाचुका है, उदयपुर में लगभग ३५-३६ मन्दिर हैं। बीसवर्ष पूर्व, इन मन्दिरों की जो व्यवस्थासफाई, सुन्दरता आदि थी, उसमें इस समय बहुत अधिक अन्तर पड़ गया है यह निश्चित बात हैं। अनेक मन्दिरों की व्यवस्था, सुन्दरता, सफाई आदि में वृद्धि होगई है । फिर भी अभीतक कुछ मन्दिर ऐसे हैं, कि जिनमें बहुत कुछ. असातना होती देखी जाती है । जो मन्दिर अनुभूतिवाले श्रद्धालु गृहस्थों किंवा कमेटियों के हाथः में हैं, उनमें अवश्यमेव सुधार हुआ है। किन्तु, जो मन्दिर स्थानक वासियों के हाथ में, या लगभग स्वामित्वहीन की-सी अवस्था में है, ऐसे मन्दिरों में अव्यवस्था तथा असातना अधिक देखी जाती है। किन्तु उदयपुर की जनश्वेताम्बर महासभा के उद्देश्यानुसार, शनैः शनैः ये मन्दिर महासभा के साथ सम्बधित कर दिये जायेंगे, तो यह आशा अवश्य ही की मासकती है, कि एक समय उदयपुर तथा उसके आसपास के समस्त मन्दिरों की असातनाएँ दूर होजायेंगी।
उदयपुर के समस्त मान्दरों के शिलालेखों का संग्रह यतिवर्य श्रीमान् अनूपचन्द्रजी ने किया है। यह संग्रह प्रकाशित होने से बहुत बातें जाहिर में आनेकी संभावना है।
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