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मेरी मेवाड़यात्रा
६ आवश्यकता जान पड़े और सम्भव हो, वहाँ पाठशालाओं तथा मण्डलों की स्थापना करवाना।
७ सच्चे धर्म के सम्मुख होनेवालों को विधिपूर्वक नियम करवाना । इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर, इसकी पूर्ति के निमित्त, अपने उचित साधन सहित हमने मेवाड़ के अनेक स्थानों का परिभ्रमण करने के लिये प्रस्थान किया ।
उदयपुर से प्रस्थान करने के पश्चात्, हमने मेवाड़ के विहार का क्रम बनाया था, वह यों है :-बेदला, भुवाना, एकलिंगजी (अदबदजी) देलवाड़ा, घासा, पलाणा, मावली, सनवाड़, फतेहनगर, करेरा, कपासण, डीडोली, राशमी, पउँना, गाडरमाला, पुर, भीलवाड़ा, आरणी, लाखोला, गंगापुर, सहाड़ा, पोटला, गिलुंड, जाशमा, दरीबा, रेलमगरा, पीपली, काँकरोली, राजनगर (दयालशाह का किला), केलवा, पडावली, चारभुजा (गडबोर), साथिया, झीलवाड़ा, मझेरा और केरवाड़ा । अन्त में, केरवाड़ा से हम घाणेराव की नाल में होकर मारवाड़ (गोलवाड़) में आये। कुल सवादो अढाई महीनों में हमने ३६ ग्रामों का परिभ्रमण तथा प्रचारकार्य कर पाया। भ्रमण और उससे लाभ।
ज्यों-ज्यों हमारा विहार आगे बढ़ता गया, त्यों ही त्यों हमारी प्रारम्भ की निराशा आशा के रूप में, हमारा निरुत्साह उत्साह के रूप में और उदासीनता प्रसन्नता के रूप में बदलती
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